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Monsoon impact on Economy: एक कमजोर मानसून कैसे RBI Monetary Policy को करेगा प्रभावित, जानें यहां - Monsoon impact on Economy

मानसून और आरबीआई की मौद्रिक नीति का बड़ा गहरा संबंध है. कमजोर मानसून या एक सूखा साल देश की मौद्रिक नीति निर्माण को हमेशा प्रभावित करता आया है. पिछले साल के मानसून आकड़ें क्या कहते है और कैसे मानसून आरबीआई की मौद्रिक नीति को प्रभावित करता है? जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

Monsoon impact on Economy
अर्थव्यवस्था पर मानसून का प्रभाव
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Published : May 28, 2023, 4:11 PM IST

नई दिल्ली: भारत का केंद्रीय बैंक और मुद्रा प्रबंधक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अगले महीने की शुरुआत में नीतिगत दरों को तय करने के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित करने जा रहा है, जिसे रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट के रूप में जाना जाता है. जो आमतौर पर बैंकिंग क्षेत्र में प्रचलित ब्याज दरों को निर्धारित करते हैं. भविष्य में इंटरेस्ट रेट कैसा रहेगा, यह बहुत हद तक मानसून पर निर्भर करता है. कैसे आइए समझते हैं इस रिपोर्ट में...

कमजोर मानसून या एक सूखा साल देश की मौद्रिक नीति निर्माण को हमेशा प्रभावित करता आया है. क्योंकि खाद्यान्न, फल और सब्जियां, खाद्य तेल, मसाले और अन्य दैनिक उपयोग की जाने वाली खाद्य वस्तुओं की कीमतें मौसम के प्रतिकूल प्रभाव के कारण महंगी हो जाती हैं. जिस वजह से आरबीआई को सख्त मौद्रिक नीति का पालन करना होता है. बढ़ती खुदरा मुद्रास्फीति को कम करने के लिए RBI ब्याज दरों को बढ़ा देती है. जैसा कि आरबीआई मई 2022 से कर रहा है.

आरबीआई को महंगाई एक निर्धारित लक्ष्य तक रखने की चुनौती
RBI अधिनियम की धारा 45ZA के तहत, आरबीआई को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यबैंड तक महंगाई को काबू में रखना होता है. जो कि 4-6 फीसदी है, अगर महंगाई इसके बीच रहती है तो ठीक है वरना RBI को सख्त मौद्रिक नीति अपनाती पड़ती है. वर्तमान समय में महंगाई 4.7 फीसदी है. यह ज्यादा भी हो सकती है है या फिर कम भी. हालांकि नीति निर्माता सतर्क हैं. रेपो रेट बढ़ने या घटने के बारे में RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने जमीनी स्थिति का संकेत दिया, विशेष रूप से अल नीनो प्रभाव अगले चार महीनों में भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश को कैसे प्रभावित करेगा, यह नीतिगत दरों को तय करने में एक महत्वपूर्ण कारक होगा.

इस साल की शुरुआत के बाद से मौसम की बड़ी घटनाएं
केवल अल-नीनो कारक नहीं है जो कम मानसून का कारण बन सकता है. भारत इस साल की शुरुआत से ही खराब मौसम की स्थिति से जूझ रहा है. उदाहरण के लिए, 1901 में रिकॉर्ड-कीपिंग शुरू होने के बाद से भारत ने 2023 में सबसे गर्म फरवरी का सामना किया है. इसका असर भारत के खाद्य कटोरे- पंजाब राज्य में गेहूं की फसलों पर देखने को मिला. दूसरा कारण- इस साल मार्च में, देश के बड़े हिस्से में बेमौसम ओलावृष्टि और मूसलाधार बारिश हुई, जिससे खड़ी फसलों को व्यापक नुकसान हुआ है.

Monsoon impact on Economy
मानसून का इंटरेस्ट रेट पर असर

2022 में मौसम के कारण होने वाले नुकसान
पिछले साल चरम मौसम की स्थिति के कारण भारत को पहले ही आर्थिक नुकसान हो चुका था, जिसके कारण मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच RBI को नीतिगत दर में 250 आधार अंकों की बढ़ोतरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. भारत के सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के अनुसार, देश ने 2022 के 365 दिनों में से 314 पर चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव किया, जिसमें 3,026 लोगों की जान गई, 1.96 मिलियन हेक्टेयर फसल क्षेत्र और 4,23,249 घर प्रभावित हुए और लगभग 70,000 से अधिक जानवरों की मौत हुई. मध्य प्रदेश (MP), हिमाचल प्रदेश (HP) और असम सबसे अधिक प्रभावित राज्य रहें.

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अल-नीनो के चलते सख्त मौद्रिक नीति की संभावना
दक्षिण में, कर्नाटक ने वर्ष के दौरान 91 दिनों में अत्यधिक मौसम की घटनाओं का अनुभव किया और देश भर में प्रभावित कुल फसल क्षेत्र का 53 प्रतिशत हिस्सा कर्नाटक में रहा. अगर पिछले साल रिकॉर्ड किए गए इन चरम मौसम पैटर्न को अल-नीनो कारक के कारण इस साल भी दोहराया जाता है तो यह नीति निर्माताओं और रिजर्व बैंक के लिए कम ब्याज दर व्यवस्था का पालन करना बेहद कठिन बना देगा. जिसका परिणाम होम लोन, व्हिकल लोन या दूसरे कामों के लिए लोन लेने वालों को भुगतना पड़ेगा. लोन 1 फीसदी से बढ़कर 1.7 फीसदी तक महंगे हो गए है. अब देखना ये होगा कि जून माह के बैठक में आरबीआई क्या फैसले लेती है.

नई दिल्ली: भारत का केंद्रीय बैंक और मुद्रा प्रबंधक भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अगले महीने की शुरुआत में नीतिगत दरों को तय करने के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित करने जा रहा है, जिसे रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट के रूप में जाना जाता है. जो आमतौर पर बैंकिंग क्षेत्र में प्रचलित ब्याज दरों को निर्धारित करते हैं. भविष्य में इंटरेस्ट रेट कैसा रहेगा, यह बहुत हद तक मानसून पर निर्भर करता है. कैसे आइए समझते हैं इस रिपोर्ट में...

कमजोर मानसून या एक सूखा साल देश की मौद्रिक नीति निर्माण को हमेशा प्रभावित करता आया है. क्योंकि खाद्यान्न, फल और सब्जियां, खाद्य तेल, मसाले और अन्य दैनिक उपयोग की जाने वाली खाद्य वस्तुओं की कीमतें मौसम के प्रतिकूल प्रभाव के कारण महंगी हो जाती हैं. जिस वजह से आरबीआई को सख्त मौद्रिक नीति का पालन करना होता है. बढ़ती खुदरा मुद्रास्फीति को कम करने के लिए RBI ब्याज दरों को बढ़ा देती है. जैसा कि आरबीआई मई 2022 से कर रहा है.

आरबीआई को महंगाई एक निर्धारित लक्ष्य तक रखने की चुनौती
RBI अधिनियम की धारा 45ZA के तहत, आरबीआई को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यबैंड तक महंगाई को काबू में रखना होता है. जो कि 4-6 फीसदी है, अगर महंगाई इसके बीच रहती है तो ठीक है वरना RBI को सख्त मौद्रिक नीति अपनाती पड़ती है. वर्तमान समय में महंगाई 4.7 फीसदी है. यह ज्यादा भी हो सकती है है या फिर कम भी. हालांकि नीति निर्माता सतर्क हैं. रेपो रेट बढ़ने या घटने के बारे में RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने जमीनी स्थिति का संकेत दिया, विशेष रूप से अल नीनो प्रभाव अगले चार महीनों में भारत के दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश को कैसे प्रभावित करेगा, यह नीतिगत दरों को तय करने में एक महत्वपूर्ण कारक होगा.

इस साल की शुरुआत के बाद से मौसम की बड़ी घटनाएं
केवल अल-नीनो कारक नहीं है जो कम मानसून का कारण बन सकता है. भारत इस साल की शुरुआत से ही खराब मौसम की स्थिति से जूझ रहा है. उदाहरण के लिए, 1901 में रिकॉर्ड-कीपिंग शुरू होने के बाद से भारत ने 2023 में सबसे गर्म फरवरी का सामना किया है. इसका असर भारत के खाद्य कटोरे- पंजाब राज्य में गेहूं की फसलों पर देखने को मिला. दूसरा कारण- इस साल मार्च में, देश के बड़े हिस्से में बेमौसम ओलावृष्टि और मूसलाधार बारिश हुई, जिससे खड़ी फसलों को व्यापक नुकसान हुआ है.

Monsoon impact on Economy
मानसून का इंटरेस्ट रेट पर असर

2022 में मौसम के कारण होने वाले नुकसान
पिछले साल चरम मौसम की स्थिति के कारण भारत को पहले ही आर्थिक नुकसान हो चुका था, जिसके कारण मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच RBI को नीतिगत दर में 250 आधार अंकों की बढ़ोतरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. भारत के सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के अनुसार, देश ने 2022 के 365 दिनों में से 314 पर चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव किया, जिसमें 3,026 लोगों की जान गई, 1.96 मिलियन हेक्टेयर फसल क्षेत्र और 4,23,249 घर प्रभावित हुए और लगभग 70,000 से अधिक जानवरों की मौत हुई. मध्य प्रदेश (MP), हिमाचल प्रदेश (HP) और असम सबसे अधिक प्रभावित राज्य रहें.

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अल-नीनो के चलते सख्त मौद्रिक नीति की संभावना
दक्षिण में, कर्नाटक ने वर्ष के दौरान 91 दिनों में अत्यधिक मौसम की घटनाओं का अनुभव किया और देश भर में प्रभावित कुल फसल क्षेत्र का 53 प्रतिशत हिस्सा कर्नाटक में रहा. अगर पिछले साल रिकॉर्ड किए गए इन चरम मौसम पैटर्न को अल-नीनो कारक के कारण इस साल भी दोहराया जाता है तो यह नीति निर्माताओं और रिजर्व बैंक के लिए कम ब्याज दर व्यवस्था का पालन करना बेहद कठिन बना देगा. जिसका परिणाम होम लोन, व्हिकल लोन या दूसरे कामों के लिए लोन लेने वालों को भुगतना पड़ेगा. लोन 1 फीसदी से बढ़कर 1.7 फीसदी तक महंगे हो गए है. अब देखना ये होगा कि जून माह के बैठक में आरबीआई क्या फैसले लेती है.

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