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केदारनाथ में अंधाधुंध निर्माण, बढ़ता कार्बन फुटप्रिंट बन रहा एवलॉन्च का कारण, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता

केदार घाटी में 11 दिन में 4 बार हिमस्खलन (Avalanche in Kedar Valley) हुआ है. जिसके कारण सरकार और शासन की चिताएं बढ़ गई हैं. पर्यावरणविद् से लेकर वैज्ञानिक सभी केदार घाटी में हो रही एवलॉन्च की इन घटनाओं पर अपनी नजर बनाये हुए हैं. वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों (Scientists at Wadia Institute) ने केदारनाथ में हो रहे पुनर्निर्माण कार्यों और बढ़ते कॉर्बेट फुटप्रिंट को केदारघाटी में आर रहे एवलॉन्च की वजह बताया है.

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Published : Oct 3, 2022, 9:34 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड और खासकर केदारनाथ में बार बार बड़े बर्फ के तूफान (Avalanche in Kedar Valley) आ रहे हैं. इसके पीछे की वजहों का पता लगाने के लिए उत्तराखंड सरकार ने एक टीम गठित की है. ये टीम केदारनाथ जाकर यहां हो रहे हिमस्खलन के कारणों का स्थलीय निरीक्षण करेगी. साथ ही ये हिमस्खलन क्यों हो रहे हैं? इसके पीछे की क्या वजहें हैं? टीम इन सभी पहलुओं की जांच करेगी. वहीं, केदारनाथ में हो रही इन घटनाओं के लिए वैज्ञानिक किसी और को नहीं बल्कि खुद केदारनाथ को बता रहे हैं.

केदारनाथ की पहाड़ियों पर भूस्खलन ने आम लोगों के साथ सरकार की चिंताएं भी बढ़ा दी हैं. वहीं, जब इस बारे में वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने बात की गई तो उन्होंने केदारनाथ धाम को इसकी वजह बताया. वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने कहा ये तूफान केदारनाथ में अंधाधुंध हो रहे कार्यों के कारण आ रहा है. वैज्ञानिक ये मान रहे हैं की ये तो सिर्फ ट्रेलर है. अभी कुछ ऐसा हो सकता है जिसकी हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं. इसलिए विकास के साथ-साथ हमें पहाड़ों का भी ध्यान रखना होगा.

कार्बन फुटप्रिंट बन रहा एवलॉन्च का कारण, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता.

पढ़ें-केदार घाटी में 11 दिन में 4 बार हुआ हिमस्खलन, आज निरीक्षण के लिए पहुंचेगी विशेषज्ञों की टीम

वाडिया इंस्टीट्यूट (Scientists at Wadia Institute) के रिटायर्ड हिम वैज्ञानिक डीपी डोभाल (Retired snow scientist DP Doval of Wadia Institute) हिमालय पर लंबे से शोध करते रहे हैं. वे खुद कई बार चौराबाड़ी ग्लेशियर और उसके आसपास का अध्यन कर चुके हैं. वे कहते हैं हिम क्षेत्र में इस तरह बर्फीले तूफान आना आम बात है. जहां भी बर्फबारी होती है या जो ग्लेशियर के क्षेत्र होता है वहां पर ऐसी प्रतिक्रिया होना आम बात है. जो दो दिन पहले एवलॉन्च आया है, वो केदारनाथ से करीब 5 किलोमीटर ऊपर है.

पढ़ें- केदारनाथ की पहाड़ियों पर फिर हुआ हिमस्खलन, मंदिर सुरक्षित

दरअसल, जब निचले इलाकों में बारिश होती है, उससे ऊपर का तापमान कभी कम हो जाता है. जिससे वहां बर्फबारी का सिलसिला शुरू हो जाता है. डोभाल कहते हैं कि केदारघाटी के तमाम ग्लेशियर हैंगिंग ग्लेशियर हैं. लिहाजा, जब ताजा बर्फबारी होती है तो वो बर्फबारी स्लोप के माध्यम से नीचे आ जाती है. ये ताजा बर्फ है लिहाजा, ये बर्फ ज्यादा नीचे नहीं आएगी, बल्कि आस पास के क्षेत्र में फैल जाएगी. उन्होंने कहा इस तरह के बर्फीले तूफान इस क्षेत्र में आते रहते हैं. यही नहीं, केदारघाटी में पिछले 10 दिनों के भीतर तीन बार आए एवलॉन्च के सवाल पर डीपी डोभाल ने बताया कि केदारनाथ धाम में जो पुनर्निर्माण का कार्य चल रहे हैं, उसकी वजह से भी केदारघाटी में एवलॉन्च आने की संभावनाएं बढ़ गई हैं.

पढ़ें-केदारनाथ एवलॉन्च: सरकार ने गठित की कमेटी, नदियों के जलस्तर पर भी नजर

दरअसल, डीपी डोभाल (Retired snow scientist DP Doval of Wadia Institute) के अनुसार केदारनाथ धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों के कारण ब्लैक फुटप्रिंट बढ़ रहा है. जिसे कॉर्बन डस्ट ऊपर की ओर उड़ रही है और ये डस्ट ग्लेशियर पर जाकर जमा हो जाती है. जब बर्फबारी होती है तो ग्लेशियर के ऊपर जमा ब्लैक कार्बन के ऊपर ताजी बर्फ जमा होती है. जिससे ताजी बर्फ के फिसलने की संभावना काफी अधिक बढ़ जाती है. ऐसे में केदार घाटी में जो एवलॉन्च आया है यह भी एक बड़ी वजह हो सकती है.

पढ़ें- केदारनाथ में चौराबाड़ी ग्लेशियर का जियोलाॅजिकल सर्वे करेगी टीम, सामने आएगी 'हकीकत'

11 दिन में 4 बार हिमस्खलन: केदारनाथ धाम में मंदिर परिसर से करीब पांच से सात किमी की दूरी पर चौराबाड़ी ग्लेशियर के टूटने की घटनाएं हो रही हैं. बीती 22 सितंबर को हिमस्खलन की पहली घटना हुई. इस दृश्य को लोगों ने कैमरे में कैद किया. इसके बाद 26 सितंबर को केदारनाथ के इसी क्षेत्र में हिमस्खलन हुआ. 27 सितंबर को भी केदारनाथ की पहाड़ियों पर हिमस्खलन हुआ था. हालांकि, ये घटना रिकॉर्ड नहीं हो पाई थी. 1 अक्टूबर को भी केदारनाथ की पहाड़ी पर हिमस्खलन हुआ था.

देहरादून: उत्तराखंड और खासकर केदारनाथ में बार बार बड़े बर्फ के तूफान (Avalanche in Kedar Valley) आ रहे हैं. इसके पीछे की वजहों का पता लगाने के लिए उत्तराखंड सरकार ने एक टीम गठित की है. ये टीम केदारनाथ जाकर यहां हो रहे हिमस्खलन के कारणों का स्थलीय निरीक्षण करेगी. साथ ही ये हिमस्खलन क्यों हो रहे हैं? इसके पीछे की क्या वजहें हैं? टीम इन सभी पहलुओं की जांच करेगी. वहीं, केदारनाथ में हो रही इन घटनाओं के लिए वैज्ञानिक किसी और को नहीं बल्कि खुद केदारनाथ को बता रहे हैं.

केदारनाथ की पहाड़ियों पर भूस्खलन ने आम लोगों के साथ सरकार की चिंताएं भी बढ़ा दी हैं. वहीं, जब इस बारे में वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने बात की गई तो उन्होंने केदारनाथ धाम को इसकी वजह बताया. वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने कहा ये तूफान केदारनाथ में अंधाधुंध हो रहे कार्यों के कारण आ रहा है. वैज्ञानिक ये मान रहे हैं की ये तो सिर्फ ट्रेलर है. अभी कुछ ऐसा हो सकता है जिसकी हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं. इसलिए विकास के साथ-साथ हमें पहाड़ों का भी ध्यान रखना होगा.

कार्बन फुटप्रिंट बन रहा एवलॉन्च का कारण, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता.

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वाडिया इंस्टीट्यूट (Scientists at Wadia Institute) के रिटायर्ड हिम वैज्ञानिक डीपी डोभाल (Retired snow scientist DP Doval of Wadia Institute) हिमालय पर लंबे से शोध करते रहे हैं. वे खुद कई बार चौराबाड़ी ग्लेशियर और उसके आसपास का अध्यन कर चुके हैं. वे कहते हैं हिम क्षेत्र में इस तरह बर्फीले तूफान आना आम बात है. जहां भी बर्फबारी होती है या जो ग्लेशियर के क्षेत्र होता है वहां पर ऐसी प्रतिक्रिया होना आम बात है. जो दो दिन पहले एवलॉन्च आया है, वो केदारनाथ से करीब 5 किलोमीटर ऊपर है.

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दरअसल, जब निचले इलाकों में बारिश होती है, उससे ऊपर का तापमान कभी कम हो जाता है. जिससे वहां बर्फबारी का सिलसिला शुरू हो जाता है. डोभाल कहते हैं कि केदारघाटी के तमाम ग्लेशियर हैंगिंग ग्लेशियर हैं. लिहाजा, जब ताजा बर्फबारी होती है तो वो बर्फबारी स्लोप के माध्यम से नीचे आ जाती है. ये ताजा बर्फ है लिहाजा, ये बर्फ ज्यादा नीचे नहीं आएगी, बल्कि आस पास के क्षेत्र में फैल जाएगी. उन्होंने कहा इस तरह के बर्फीले तूफान इस क्षेत्र में आते रहते हैं. यही नहीं, केदारघाटी में पिछले 10 दिनों के भीतर तीन बार आए एवलॉन्च के सवाल पर डीपी डोभाल ने बताया कि केदारनाथ धाम में जो पुनर्निर्माण का कार्य चल रहे हैं, उसकी वजह से भी केदारघाटी में एवलॉन्च आने की संभावनाएं बढ़ गई हैं.

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दरअसल, डीपी डोभाल (Retired snow scientist DP Doval of Wadia Institute) के अनुसार केदारनाथ धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों के कारण ब्लैक फुटप्रिंट बढ़ रहा है. जिसे कॉर्बन डस्ट ऊपर की ओर उड़ रही है और ये डस्ट ग्लेशियर पर जाकर जमा हो जाती है. जब बर्फबारी होती है तो ग्लेशियर के ऊपर जमा ब्लैक कार्बन के ऊपर ताजी बर्फ जमा होती है. जिससे ताजी बर्फ के फिसलने की संभावना काफी अधिक बढ़ जाती है. ऐसे में केदार घाटी में जो एवलॉन्च आया है यह भी एक बड़ी वजह हो सकती है.

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11 दिन में 4 बार हिमस्खलन: केदारनाथ धाम में मंदिर परिसर से करीब पांच से सात किमी की दूरी पर चौराबाड़ी ग्लेशियर के टूटने की घटनाएं हो रही हैं. बीती 22 सितंबर को हिमस्खलन की पहली घटना हुई. इस दृश्य को लोगों ने कैमरे में कैद किया. इसके बाद 26 सितंबर को केदारनाथ के इसी क्षेत्र में हिमस्खलन हुआ. 27 सितंबर को भी केदारनाथ की पहाड़ियों पर हिमस्खलन हुआ था. हालांकि, ये घटना रिकॉर्ड नहीं हो पाई थी. 1 अक्टूबर को भी केदारनाथ की पहाड़ी पर हिमस्खलन हुआ था.

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