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69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में उत्तराखंड का जलवा, 'एक था गांव' को मिला बेस्ट नॉन फीचर फिल्म का अवॉर्ड

69th National Film Awards- 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में उत्तराखंड का डंका बजा है. उत्तराखंड बेस्ड 'एक था गांव' फिल्म को बेस्ट नॉन फीचर फिल्म का अवॉर्ड मिला है. 'एक था गांव' पहाड़ों में पयायन के दर्द को बयां करती फिल्म है. ये फिल्म सृष्टि लखेड़ा ने बनाई है.

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'एक था गांव' को मिला बेस्ट नॉन फीचर फिल्म का अवॉर्ड
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 24, 2023, 6:39 PM IST

Updated : Aug 24, 2023, 8:01 PM IST

देहरादून: दिल्ली के नेशनल मीडिया सेंटर में 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार का आगाज हो गया है. 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में बेहतरीन फिल्मों और उम्दा कलाकारों को पुरस्कृत किया जा रहा है. इसी कड़ी में उत्तराखंड की शॉर्ट फिल्म का चयन भी किया गया है. बेस्ट नॉन फीचर फिल्म के लिए उत्तराखंड की शॉर्ट फिल्म एक था गांव का चयन हुआ है. जिसके बाद उत्तराखंड में खुशी की लहर है.

'एक था गांव' खाली होते पहाड़ों की कहानी है. इस फिल्म में पहाड़ों की मौजूदा हकीकत और घोस्ट विलेज की कहानियों को दिखाया गया है. साथ ही इस फिल्म में पयायन और पहाड़ से जुड़े दूसरे मुद्दों को भी दिखाया गया है. इस फिल्म को कीर्तिनगर विकासखंड के सेमला गांव रहने वाली सृष्टि लखेड़ा ने बनाया है.

पढ़ें- 69th National Film Awards: आलिया भट्ट् और कृति सेनन को मिला बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड, यहां देखें बेस्ट फिल्म समेत पूरी लिस्ट

अपने गांव और आसपास के इलाकों के हालातों को देखते हुए सृष्टि के मन में इस फिल्म को बनाने का ख्याल आया. जिसके बाद उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर 'एक था गांव' फिल्म बनाई. इस फिल्म को सृष्टि ने इतनी खूबसूरती से बनाया की ये फिल्म हर दिन नए आयाम स्थापित कर रही है. इससे पहले 'एक था गांव' फिल्म मामी फिल्म महोत्सव में भी अपनी जगह बना चुकी है. अब फिल्म को राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है. 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में 'एक था गांव' को बेस्ट नॉन फीचर फिल्म का अवॉर्ड मिला है.

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पढे़ं- Cabinet Meeting: 5 से 8 सितंबर तक मॉनसून सत्र, आम लोग कर सकेंगे सरकारी संपत्ति का उपयोग, पढ़ें सभी बड़े फैसले

कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी: एक था गांव एक बुजुर्ग और एक किशोर पर आधारित है. इसमें पहाड़ की कठिनाइियों से साथ ही मौजूदा हालातों को बयां किया गया है. इसमें 80 वर्षीय लीला देवी और 19 वर्षीय गोलू मुख्य भूमिका में हैं. बुजुर्ग लीला गांव में अकेली रहती है. इसकी बेटी की शादी हो चुकी है, जो देहरादून जाने की जिद करती है. लीला इसके लिए तैयार नहीं होती. उसे अपने गांव से प्यार है. जिसके कार वह यहां रहना चाहती है. वहीं, इस फिल्म का दूसरा किरदार गोलू पहाड़ों से निकलकर अपना जीवन जीना चाहती है.

उसे पहाड़ों में कोई भविष्य नजर नहीं आता. जिसके कारण वह मैदानों की ओर जाना चाहती है. फिल्म में आखिर में लीला मजबूरी में देहरादून चली आती है. गोलू भी पढ़ाई के लिए मैदानों की ओर पहुंच जाती है, जिसके कारण गांव सूना खाली हो जाती है. इस फिल्म के माध्यम से दिखाया गया कैसे कोई या तो मजबूरी में या फिर जरूरत के लिए पहाड़ से निकलता है. जिसके कारण पहाड़ दिनों दिन खाली हो रहे हैं.

कौन हैं सृष्टि लखेड़ा: मूल रूप से उत्तराखंड के टिहरी जिले के सेमला गांव निवासी सृष्टि लखेड़ा एक फिल्म निर्माता हैं. सृष्टि ने ज्यादातक डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण किया है. वर्तमान में उनका परिवार ऋषिकेश में रहता है. उन्होंने UNISDR, उत्तराखंड वन विभाग, राष्ट्रीय टेलीविजन डीडी और अंतरराष्ट्रीय टेलीविजन चैनल न्यूज एशिया जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए फिल्मों का निर्माण किया है. साल 2019 में उन्होंने पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टिंग ट्रस्ट (पीएसबीटी) के लिए निर्मित फिल्म 'इश्क दोस्ती एंड ऑल दैट' का सह-निर्देशन भी किया.

देहरादून: दिल्ली के नेशनल मीडिया सेंटर में 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार का आगाज हो गया है. 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में बेहतरीन फिल्मों और उम्दा कलाकारों को पुरस्कृत किया जा रहा है. इसी कड़ी में उत्तराखंड की शॉर्ट फिल्म का चयन भी किया गया है. बेस्ट नॉन फीचर फिल्म के लिए उत्तराखंड की शॉर्ट फिल्म एक था गांव का चयन हुआ है. जिसके बाद उत्तराखंड में खुशी की लहर है.

'एक था गांव' खाली होते पहाड़ों की कहानी है. इस फिल्म में पहाड़ों की मौजूदा हकीकत और घोस्ट विलेज की कहानियों को दिखाया गया है. साथ ही इस फिल्म में पयायन और पहाड़ से जुड़े दूसरे मुद्दों को भी दिखाया गया है. इस फिल्म को कीर्तिनगर विकासखंड के सेमला गांव रहने वाली सृष्टि लखेड़ा ने बनाया है.

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अपने गांव और आसपास के इलाकों के हालातों को देखते हुए सृष्टि के मन में इस फिल्म को बनाने का ख्याल आया. जिसके बाद उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर 'एक था गांव' फिल्म बनाई. इस फिल्म को सृष्टि ने इतनी खूबसूरती से बनाया की ये फिल्म हर दिन नए आयाम स्थापित कर रही है. इससे पहले 'एक था गांव' फिल्म मामी फिल्म महोत्सव में भी अपनी जगह बना चुकी है. अब फिल्म को राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है. 69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में 'एक था गांव' को बेस्ट नॉन फीचर फिल्म का अवॉर्ड मिला है.

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कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी: एक था गांव एक बुजुर्ग और एक किशोर पर आधारित है. इसमें पहाड़ की कठिनाइियों से साथ ही मौजूदा हालातों को बयां किया गया है. इसमें 80 वर्षीय लीला देवी और 19 वर्षीय गोलू मुख्य भूमिका में हैं. बुजुर्ग लीला गांव में अकेली रहती है. इसकी बेटी की शादी हो चुकी है, जो देहरादून जाने की जिद करती है. लीला इसके लिए तैयार नहीं होती. उसे अपने गांव से प्यार है. जिसके कार वह यहां रहना चाहती है. वहीं, इस फिल्म का दूसरा किरदार गोलू पहाड़ों से निकलकर अपना जीवन जीना चाहती है.

उसे पहाड़ों में कोई भविष्य नजर नहीं आता. जिसके कारण वह मैदानों की ओर जाना चाहती है. फिल्म में आखिर में लीला मजबूरी में देहरादून चली आती है. गोलू भी पढ़ाई के लिए मैदानों की ओर पहुंच जाती है, जिसके कारण गांव सूना खाली हो जाती है. इस फिल्म के माध्यम से दिखाया गया कैसे कोई या तो मजबूरी में या फिर जरूरत के लिए पहाड़ से निकलता है. जिसके कारण पहाड़ दिनों दिन खाली हो रहे हैं.

कौन हैं सृष्टि लखेड़ा: मूल रूप से उत्तराखंड के टिहरी जिले के सेमला गांव निवासी सृष्टि लखेड़ा एक फिल्म निर्माता हैं. सृष्टि ने ज्यादातक डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण किया है. वर्तमान में उनका परिवार ऋषिकेश में रहता है. उन्होंने UNISDR, उत्तराखंड वन विभाग, राष्ट्रीय टेलीविजन डीडी और अंतरराष्ट्रीय टेलीविजन चैनल न्यूज एशिया जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए फिल्मों का निर्माण किया है. साल 2019 में उन्होंने पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टिंग ट्रस्ट (पीएसबीटी) के लिए निर्मित फिल्म 'इश्क दोस्ती एंड ऑल दैट' का सह-निर्देशन भी किया.

Last Updated : Aug 24, 2023, 8:01 PM IST
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