देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों अवैध धार्मिक स्थलों को ध्वस्त करने का अभियान चल रहा है. अभियान के तहत राजाजी नेशनल पार्क और कॉर्बेट नेशनल पार्क में भी बिना अस्तित्व और रिकॉर्ड वाले तमाम धार्मिक स्थलों को हटाया जा चुका है. ध्वस्त किए गए धार्मिक स्थलों की सूची में सबसे ज्यादा मजार हैं. इस कार्रवाई के बीच वन विभाग ने एक ऐसे मंदिर को नोटिस जारी किया है, जिसका संबंध भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह से जुड़ा है. खास बात ये है कि मंदिर का जिक्र स्कंद पुराण में भी किया गया है. ऐसे में सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सरकार की ध्वस्तीकरण की कार्रवाई पौराणिक मान्यताओं को समेटे इस मंदिर पर क्यों हो रही है.
देवभूमि उत्तराखंड में भगवान शिव कण-कण में विराजते हैं. लेकिन कुछ स्थान ऐसे हैं जिनका महत्व और मान्यता दशकों पुराना है. उन्हीं में से एक हरिद्वार के बिल्व पर्वत पर स्थित भगवान बिल्केश्वर धाम का मंदिर है. भगवान शिव का यह मंदिर बेलपत्र के नाम पर रखा गया है. इसी मंदिर से लगा हुआ एक कुंड है, जिसका नाम गौरीकुंड है.
बिल्केश्वर मंदिर की मान्यता: हरिद्वार रेलवे स्टेशन से लगभग 2 किमी की दूरी पर स्थित बिल्केश्वर मंदिर की मान्यता है कि भगवान शिव को पाने के लिए यहां माता पार्वती ने 3 हजार साल तपस्या की थी. स्कंद पुराण के मुताबिक, मात्र बेलपत्र खाकर माता पार्वती ने भगवान शिव को अपना पति स्वरूप पाने के लिए इस स्थान पर तपस्या की थी. जबकि मंदिर से ही सटे कुंड में स्नान करती थी. इसलिए इस कुंड का नाम गौररीकुंड पड़ा है. आज भी इस कुंड में जल निरंतर रहता है. मान्यता है कि जिस कन्या की शादी में अड़चन आती है, वह कन्या अगर 7 सोमवार इस कुंड में स्नान करे तो समस्या से मुक्ति पा लेती है. कुंड में चर्म रोग से ग्रसित लोग भी मुक्ति पाने के लिए स्नान करने पहुंचते हैं.
1912 के कागज दिखाएगा मंदिर: बिल्केश्वर मंदिर को लेकर जारी नोटिस में कहा गया है कि मंदिर से संबंधित लोगों के पास कागजात है तो वन विभाग के सामने पेश करें. मंदिर के मुख्य पुजारी शुभम गिरि का कहना है कि उनके पास 1912 में बना मंदिर का नक्शा है, जिसमें बिल्केश्वर मंदिर और गौरीकुंड को दर्शाया गया है. दूसरी तरफ हरिद्वार में संत समाज का एक बड़ा तबका भी सरकार और प्रशासन की इस कार्रवाई के खिलाफ खड़ा हो गया है.
बलबीर गिरि के अधीन है मंदिर: बिल्केश्वर मंदिर गौरीकुंड निरंजनी अखाड़ा के अधीन आता है. मौजूदा समय में यह मंदिर बलबीर गिरि की देखरेख में चल रहा है. महंत नरेंद्र गिरि की हत्या के बाद बलवीर गिरि को इस स्थान पर बैठाया गया है. फिलहाल हरिद्वार का संत समाज और धार्मिक संगठनों से जुड़े लोग वन विभाग के नोटिस को सरासर गलत बता रहे हैं. लोगों का कहना है कि विभाग इस तरह की कार्रवाई करके एक तबके को संदेश देना चाहती है, जबकि ऐसे मंदिरों के ना केवल ग्रंथों में बल्कि कागजों में भी प्रमाण मौजूद हैं.
प्राचीन हनुमान मंदिर को भी नोटिस: ऐसा नहीं है कि सिर्फ हरिद्वार के बिल्केश्वर मंदिर को ही वन विभाग ने नोटिस दिया है. हर की पैड़ी से चंद कदम की दूरी पर रेलवे टनल के पास स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर पर भी वन विभाग की तिरछी नजर है. यहां भी मंदिर से जुड़े व्यक्तियों को नोटिस दिया गया है. साथ ही कागजात पेश करने के लिए 4 दिन का समय दिया है. मंदिर से जुड़े मुख्य पुजारी राम बलवंत दास का कहना है कि उनके पास मंदिर से जुड़े लगभग 100 साल से अधिक के प्रमाण हैं. तीर्थ पुरोहित उज्ज्वल पंडित का कहना है कि मंदिर की धार्मिक मान्यता के मुताबिक, बाल रूप में हनुमान ने जब सूर्य देवता को मुंह में रख लिया था, तब उनको इंद्र ने वज्र से प्रहार किया था. इंद्र के प्रहार से बाल स्वरूप हनुमान यहीं आकर गिरे थे. पुरोहित उज्ज्वल पंडित कहते हैं कि किसी की धार्मिक आस्थाओं को इस तरह से आहत करना ठीक नहीं है.
मंदिर-मजार से वन्यजीव परेशान: राजाजी नेशनल पार्क के पूर्व निदेशक सनातन सोनकर कहते हैं कि उत्तराखंड में धार्मिक स्थलों का जंगलों में पाए जाना आम हो गया है. हां इतना जरूर है कि अब तेजी से कुछ धार्मिक संरचनाएं बढ़ी है. देहरादून और हरिद्वार के वन क्षेत्र में मस्जिद-मंदिर तेजी से बने हैं. वन क्षेत्र में पहले से भी कई बड़े मंदिर हैं जिनका प्रमाण सैकड़ों साल पुराना है. विभाग अमूमन उन्हीं को नोटिस देता है, जो प्रमाणित नहीं है.
क्या कहते हैं अधिकारी? दोनों मंदिरों को नोटिस वन क्षेत्र अधिकारी विपिन डिमरी द्वारा जारी किया गया है. नोटिस मंदिर की दीवारों पर लगाया गया है. फिलहाल राजाजी नेशनल पार्क से जुड़े अधिकारी इस मामले पर ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे हैं. उनका कहना है कि कार्रवाई के तहत नोटिस जारी किया है.
ध्वस्तीकरण की कार्रवाई: गौरतलब है कि राज्य सरकार का 20 अप्रैल से अतिक्रमण हटाओ अभियान जारी है. अब तक 429 अवैध मजारें वन क्षेत्रों से हटाई गई हैं. इसके साथ ही 42 मंदिरों को भी हटाया गया है. दो गुरुद्वारे भी हटाए गए हैं. 20 अप्रैल से अब तक 455 हेक्टेयर वन भूमि अतिक्रमणकारियों से मुक्त करा दिया गया है.
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