देहरादून (उत्तराखंड): आजादी के बाद देश में भुखमरी का दौर था. उसके बाद 70 के दशक में प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ने देश की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की कोशिशें शुरू की. उन्होंने देश की महिलाओं से घरों से निकल कर अपने पैरों पर खड़े होने का आह्वान किया. जिससे पहली बार महिलाओं ने घर की रसोई से बाहर निकलने की हिम्मत जुटाई. महिलाएं घर के चूल्हा चौके से बाहर निकल कर सिलाई, बुनाई, कढ़ाई के काम में हाथ आजमाने लगीं. देहरादून में भी इसे लेकर अनूठा प्रयास किया गया. दून टेलरिंग एंड एंब्रॉयडरी स्कूल इसी की एक बानगी था.
70 के दशक में हुई दून टेलरिंग स्कूल की स्थापना: यही वह दौर था जब उत्तर प्रदेश राज्य के पहाड़ी हिस्से में पड़ने वाली सुंदर दून घाटी के देहरादून शहर के पलटन बाजार में दून टेलरिंग एंड एंब्रॉयडरी स्कूल की स्थापना की गई. देहरादून के ही एक व्यापारी परिवार से आने वाली शांति कोचर ने इस स्कूल की शुरुआत की. जिसके बाद पहली दफा यहां पर सिलाई, बुनाई, कढ़ाई सिखाने का काम शुरू किया गया. शांति कोचर के बाद उनकी बेटी कुसुम कोचर ने दून टेलरिंग एंड एंब्रॉयडरी स्कूल का कामकाज संभाला. कुसुम कोचर के पति रमन कोचर बताते हैं आज से तकरीबन 50 साल पहले दून टेलरिंग एंड एंब्रॉयडरी स्कूल की स्थापना की गई. उस समय इस स्कूल की बड़ी मान्यता थी. दूर दूर से लड़कियां यहां सिलाई, बुनाई सीखने आती थीं. उस समय कुछ मामूली फीस में यहां सिलाई, बुनाई सिखाई जाती थी. तब यहां गरीब घरों की लड़कियों को निशुल्क सिलाई बुनाई सिखाई जाती थी.
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देहरादून पलटन बाजार के स्थानीय मदन डोरा बताते हैं एक दौर ऐसा था जब देहरादून में दून टेलरिंग एंड एंब्रॉयडरी स्कूल का जलवा हुआ करता था. यह वही दौर था जब लड़की की शादी से पहले लड़के के घर वालों का पहला सवाल ही सिलाई बुनाई से जुड़ा होता था. मदन बताते हैं 70 के दशक में दून टेलरिंग एंड एंब्रॉयडरी स्कूल में सिलाई बुनाई सीखने के लिए लड़कियों का तांता लगा रहता था. तब यह स्कूल लड़कियों की आवाजाही से गुलजार हुआ करता था. मदन डोरा बताते हैं आज के दौर में सब कुछ बदल गया है. आजकल सिलाई बुनाई की तरफ लड़कियों का रुझान कम हो गया है. जिसके कारण दून टेलरिंग स्कूल सुनसान हो गया है.
दून टेलरिंग स्कूल का 50 साल पुराना समृद्ध इतिहास: पलटन बाजार के स्थानीय एसके गुलाटी ने बताया कि दून टेलरिंग एंड एंब्रॉयडरी स्कूल तकरीबन 50 साल पुराना है. इसका एक समृद्ध इतिहास हुआ करता था. आज डिजिटलीकरण और कंप्यूटर युग ने इस स्कूल को सूना कर दिया है. उन्होंने बताया यहां पर हजारों लड़कियों को सिलाई बुनाई का काम सिखाया जाता था. कई गरीब घरों की लड़कियां भी यहां से काम सीखकर घर खर्च चलाती थी. मगर अब सब कुछ बदल गया है.
कोरोनाकाल में परमानेंट बंद हुए दून टेलरिंग स्कूल के दरवाजे: स्कूल संचालक कुसुम कोचर के पति रमन कोचर ने बताया भले ही समय के साथ-साथ दून टेलरिंग एंड एंब्रॉयडरी स्कूल का क्रेज लड़कियों में घटा, लेकिन कोविड-19 महामारी से पहले तक इस स्कूल को उनकी पत्नी कुसुम कोचर किसी भी हालत में संचालित किया करती थी. यह उनकी माता शांति कोचर की यादों से जुड़ा था. 2020 में कोविड-19 महामारी आने के बाद स्कूल को बंद कर दिया गया. उसके बाद दून टेलरिंग एंड एंब्रॉयडरी स्कूल को कभी नहीं खोला गया. आज देहरादून स्मार्ट सिटी के लोग इस ऐतिहासिक इमारत को चमका रहे हैं. इसके बोर्ड को भी सफेदी से ढक दिया गया है. पलटन बाजार की यह खूबसूरत ऐतिहासिक इमारत अब इतिहास के पन्नों में दर्ज होती जा रही है.