नई दिल्ली : उत्तराखंड में अंदरूनी कलह से बचने के लिए (To avoid infighting in Uttarakhand) कांग्रेस नए फॉर्मूले पर विचार कर रही है. कांग्रेस के सामने इस चुनावी राज्य में अपने दल को एक साथ रखने की चुनौती है. कांग्रेस ने अपने घर को व्यवस्थित करने का बीड़ा उठाते हुए उत्तराखंड के लिए एक नया फॉर्मूला (A new formula for Uttarakhand) खोज लिया है.
टिकट देने की प्रक्रिया अंतिम दौर में है. सूत्रों ने जानकारी दी है कि 800 से अधिक लोगों ने राज्य में 70 से अधिक सीटों पर टिकट मांगा है. उन्होंने कहा कि सिर्फ हमारे अपने सदस्य ही नहीं बल्कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कुछ शर्तों के साथ कांग्रेस में शामिल होने के लिए अपनी पार्टियों को छोड़ना चाहते हैं. जबकि कुछ ऐसे हैं जिनके लिए हम चाहते हैं कि वे हमारी पार्टी में शामिल हों और उसके लिए हमें पेशकश करनी होगी.
एक उच्च पदस्थ सूत्र ने ईटीवी भारत को बताया कि पार्टी के उम्मीदवारों को अंतिम रूप देने के लिए केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) की मंजूरी के लिए औसतन एक सीट पर 4-5 नामों का सुझाव दिया जाएगा. जबकि सिर्फ एक का चयन किया जाएगा. उत्तराखंड में पार्टी के लिए यह कठिन है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. हालांकि टिकट से वंचित लोगों को सत्ता मिलने पर पद व सम्मान देने का फार्मूला बनाया जा रहा है.
सीईसी की बैठक के दौरान कांग्रेस आलाकमान के सामने यह फॉर्मूला प्रस्तावित किया जाएगा. इस बीच उत्तराखंड के लिए कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक गुरुवार दोपहर 1 बजे होगी. जो उम्मीदवारों को अंतिम रूप देने के लिए सीईसी को सुझाए गए नामों की एक सूची देगी. यह भी पता चला है कि इस बार उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को 2017 के विधानसभा चुनाव में किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण दोनों सीटों से हारने के बाद सिर्फ एक सीट से टिकट मिलने की संभावना है.
यह भी पढ़ें- मनीष तिवारी ने सिद्धू और चन्नी को बताया एंटरटेनर, बोले, पंजाब को सीरियस लोगों की जरूरत
हालांकि पार्टी आलाकमान द्वारा अंतिम निर्णय लिया जाना बाकी है. कांग्रेस सुमित हृदयेश को भी चुनाव लड़ाने की योजना बना रही है, जो दिवंगत कांग्रेस नेता इंदिरा हृदयेश के बेटे हैं. सूत्रों ने बताया कि वह अपनी मां के निर्वाचन क्षेत्र से टिकट के लिए वे इच्छुक हैं. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 14 फरवरी को एक चरण में होगा. कांग्रेस ने बुधवार को चुनाव अभियान प्रबंधन और समन्वय की निगरानी के लिए मोहन प्रकाश को राज्य में अपना वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया.