नई दिल्ली : कोरोना वायरस के प्रकोप से कई क्षेत्रों को भारी नुकसान हुआ है. इस वायरस से भारतीय रेलवे को काफी नुकसान हुआ है. संक्रमण को रोकने के लिए यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसकी मार कुली, छोटे विक्रेता और अन्य मजदूर पर पड़ी है, जो अपनी आजीविका के लिए रेलवे पर निर्भर रहते हैं.
जब कोरोना वायरस का प्रकोप फैला तो इन लोगों की मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आया. ये सभी मजदूर भले ही रेलवे के लिए काम करते हैं, लेकिन वे रेलवे के कर्मचारी नहीं हैं. इस वजह से मजदूरों को इस महामारी का प्रकोप झेलना पड़ रहा है.
इन मजदूरों के परिवारों के लिए खाने की कोई भी उचित व्यवस्था नहीं है. ये लोग ऐसे वर्ग से आते हैं, जिनकी दुर्दशा अक्सर अनसुनी कर दी जाती है. जैसे कि कोरोना संकट के दौरान इन लोगों की बातें अनसुनी की जा रही हैं.
ईटीवी भारत ने अखिल भारतीय रेलवे खानपान लाइसेंसी वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष रविंद्र गुप्ता से बात की, जिन्होंने कहा कि स्थिति अनिश्चित है और ऐसे संकट में सरकार को हमारी मदद करनी चाहिए.
रविंद्र गुप्ता ने कहा कि सरकार ने अभी तक कोई मदद नहीं की है. लॉकडाउन के दौरान, मंत्रालय ने जबरन स्टॉल खोलने के निर्देश दिए, जिसके लिए हमने मांग की कि जब तक ट्रेनों का परिचालन नहीं हो जाता है तब तक लाइसेंस शुल्क में छूट दी जानी चाहिए.
उन्होंने कहा कि हमने सरकार से रेलवे स्टेशनों पर स्टाल विक्रेताओं को राशन और अन्य आवश्यक सामान मुहैया कराने, बिजली और पानी के बिलों में ढील देने का भी आग्रह किया था, लेकिन अब तक 100% लाइसेंस शुल्क, बिजली और पानी के बिल को माफ करने से संबंधित कोई निर्णय नहीं लिया गया है.
हालांकि सरकार ने 1 जून से स्टालों को फिर से खोलने के लिए दबाव डाला है, लेकिन विक्रेता इसका खामियाजा भुगत रहे हैं. वे भूख से मर रहे हैं, क्योंकि लॉकडाउन के तहत ट्रेनों के साथ कोई आय नहीं है. उन्होंने कहा कि वेंडर भारी नुकसान उठा रहे हैं और कर्ज में डूबे हैं.
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उन्होंने यह भी कहा कि फिलहाल खाने के स्टॉल खोलने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि बहुत कम ट्रेनें चालू हैं. इसलिए, हम सरकार से मांग करते हैं कि सभी ट्रेनों की उचित बहाली और सामान्य स्थिति के अभाव में लाइसेंस शुल्क में छूट के साथ-साथ बिजली, पानी के बिल पूरी तरह से मुक्त कर देना चाहिए.