चेन्नई : कोरोना काल में लोक कलाकारों की जिदंगी बद से बदतर होती जा रही है. उनकी आजीविका लॉकडाउन की वजह से लुट चुकी है. अब कलाकारों ने सरकार से सहायता की गुहार लगाई है. उनका कहना है कि सरकार उनके दुख दर्द को समझेगी और पारंपरिक कला को डूबने से बचाएगी.
ग्रामीण इलाकों में त्योहार कभी भी लोक प्रदर्शन के बिना पूरे नहीं होते हैं. थेरू कथू देश का पारंपरिक लोक रंगमंच है. यह तमिल देश के नाटक की एक प्राचीन शैली मानी जाती है. इतना ही नहीं यह लोक रंगमंच देश की आजादी की लड़ाई के दौरान ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को उत्तेजित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
देश की लोक कलाएं, रंगमंच पौराणिक देवताओं की भूमिकाओं और यहां तक कि राक्षसों की एक विस्तृत शृंखला को लोगों तक पहुंचाती है. यहां तक कि वे महाभारत और रामायण के साथ-साथ स्थानीय किंवदंतियों से भी लोगों को मनोरंजन प्रदान करते हैं. अब, प्रौद्योगिकी के इस युग में लोक कलाओं को लोग भूलते जा रहे हैं. हालांकि इसके संरक्षण की विशेष जरूरत है क्योंकि लोक कला आज के समय में अपनी पहचान को बरकरार रखने के लिए संघर्ष कर रही है.
कलाकार ग्रामीण इलाकों में मौसमी प्रदर्शनों और शहरी केंद्रों में सामयिक सांस्कृतिक समारोहों में साल में एक बार बाहर रहने का अनुभव करते हैं. जैसे, नवंबर से मई के मौसम के साथ मंदिर, त्योहार और उत्सव उनकी आय के मुख्य स्रोत होते हैं. लेकिन कोरोना महामारी ने उनके जीवन में दुखों का पहाड़ खड़ा कर दिया है. विस्तारित लॉकडाउन ने उनकी आजीविका पर गहरा प्रहार किया है.
इससे उनकी जिंदगी बिखर सी गई है. अकेले धर्मपुरी जिले में 50 से अधिक लोक सांस्कृतिक मंडलियां हैं, जिनकी सदस्यता 5,000 से अधिक है. तमिलनाडु के प्रत्येक जिले में एक समान लोक सांस्कृतिक मंडली है, जिसमें कम या ज्यादा समान संख्या में सदस्य जुड़े हुए हैं.
इन लोक कलाकारों को दिन-रात के प्रदर्शन के लिए प्रति व्यक्ति के हिसाब से 400 रुपये से लेकर 600 रुपये तक का भुगतान किया जाता है. इस मामूली सी कमाई से ही ये लोग अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. सर्दी से लेकर गर्मी के मौसम तक ये लोग काम में व्यस्त हो जाते हैं. लेकिन कोरोना महामारी के आने से सबकुछ चौपट हो गया है.
लॉकडाउन ने उनकी उम्मीदों, आशाओं और आकांक्षाओं पर पानी फेर दिया है. लॉकडाउन के कारण पिछले तीन महीनों से उन्हें कोई काम नहीं मिला है. अब तक कोई बुकिंग भी नहीं हुई है. इस कारण कई कलाकार सड़क पर आ गए हैं. वे अपने परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
तमिलनाडु सरकार ने लोक कलाकारों के लिए 1000 रुपये नकद देने की घोषणा की थी. लेकिन, केवल उन लोगों को यह सहायता मिलेगी, जिन्होंने कल्याण बोर्ड के साथ खुद को पंजीकृत किया है. जो पंजीकृत नहीं हैं, उन लोगों को सरकार की तरफ से कोई लाभ नहीं मिला है.
सड़क पर आ चुके इन कलाकारों ने सरकार से गुहार लगाई है कि उन्हें भी बिना किसी भेदभाव के नकद सहायता प्रदान की जाए. लॉकडाउन के कारण आजीविका के लिए संघर्षरत इन लोक रंगमंच के कलाकारों की भविष्य की चिंता करते हुए सरकार को उनके लिए सकारात्मक कदम उठाने चाहिए.
कलाकारों की मांग है कि सरकार उन्हें लोगों तक पहुंच बनाने के लिए विभिन्न विभागों के जागरूकता अभियानों में शामिल कर सकती है. भले ही लॉकडाउन समाप्त हो जाए, लेकिन उन लोगों को फिर से आजीविका शुरू करने में काफी संघर्ष करना पड़ेगा.
अगर इन कलाकारों की आज सहायता नहीं की जाती है तो आने वाले समय में हमारी लोक संस्कृति धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएगी. सबरी नाम के एक रंगमंच कलाकार ने बताया, 'हमारे पास कोई ऑर्डर नहीं है. हमें काम नहीं मिल रहा है. हमारे लिए पेट पालना भी मुश्किल हो गया है. यदि सरकार सहायता प्रदान करती है, तो हम इन कठिन समय में जीवित रह सकते हैं. हमें सरकार द्वारा घोषित 1000 रुपये नहीं मिला है क्योंकि हमारे पास अपने जमीन का पट्टा नहीं है. जिनके पास जमीन का पट्टा है. उन्हें ही नकद सहायता राशि दी जा रही है.'
उसी तरह कोरोना काल में संघर्षरत अच्युता मेनन और मुरुगन जैसे अन्य कलाकारों ने अपनी-अपनी आपबीती बताई. उनका कहना था पिछले तीन महीनों से वे बेरोजगार हो गए हैं. वे अब पेट भरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.