हैदराबाद : करीम लाला 1960 के दशक में मुंबई का सबसे चर्चित डॉन था. उस समय दो अन्य डॉन का भी नाम लिया जाता है. एक था वरदराजन मुदलियार और दूसरे का नाम हाजी मस्तान था. तीनों माफिया मिलकर काम करते थे. इन्होंने अपने-अपने क्षेत्र बांट रखे थे. ये लोग एक दूसरे के क्षेत्र में दखलंदाजी नहीं करते थे. उस समय इनके इलाकों में जितने भी गैर कानूनी काम होते थे, उनमें ये जरूर संलिप्त रहते थे. हालांकि, इनकी फितरत थी कि ये कुछ लोगों की मदद कर दिया करते थे, जिससे इनकी छवि आम लोगों के बीच कुछ अलग थी.
करीम लाला अफगानी पख्तून था. वह 1920-30 में पेशावर से मुंबई आया था. उसका परिवार द. मुंबई स्थित भिंडी बाजार में रहता था. उसने मुंबई बंदरगाह पर एक मजदूर के रूप में अपना काम शुरू किया. थोड़े ही दिनों में वह पठानों के गैंग में शामिल हो गया. मुंबई बंदरगाह पर सोने चांदी और हीरों की तस्करी शुरू कर दी. शुरुआती दिनों में उसका गैंग गुजराती सेठों के फंसे हुए पैसों की वसूली भी करता था. धीरे-धीरे करीम पठान गैंग का सरगना बन गया. इसके बाद वह पैसे लेकर घर खाली करवाता था. सुपारी लेकर लोगों की हत्या करना उसका व्यवसाय बन गया था. साथ ही कई अन्य गैर कानूनी कामों में वह संलिप्त रहता था. शराब के धंधों में उसे बेहद कामयाबी मिली. उसने मुदलियार और हाजी के साथ मिलकर अपना क्षेत्र बांट लिया था.
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1980 के आस-पास दाऊद इब्राहिम हाजी मस्तान गैंग से जुड़ा. कहा जाता है कि दाऊद ने करीम के इलाके में तस्करी शुरू कर दी थी. इस बात से करीम काफी नाराज हो गया. और उसने दाऊद की पिटाई कर दी थी.
बाद में इस घटना को लेकर दाऊद और करीम के बीच तलवारें खिंच गई थी. करीम ने दाऊद के भाई की हत्या करवा दी. कुछ दिनों बाद दाऊद ने भी करीम के भाई की हत्या कर दी थी. कुछ सालों में ही दाऊद गैंग का वर्चस्व बढ़ने लगा.
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो 1973 में अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्म जंजीर में प्राण का कैरेक्टर उससे मिलता जुलता था. करीम बॉलीवुड की कई हस्तियों को अपने यहां आयोजित पार्टी में बुलाया करता था.
एक अंग्रेजी वेबसाइट के अनुसार करीम दरबार भी लगाता था. यहां पर मदद मांगने कई लोग आते थे. कुछ लोग शादी के लिए पैसे मांगने आते थे. कुछ लोग अपना फंसा हुआ काम करवाने आते थे. यहां तक कि सरकारी कर्मचारियों के ट्रांसफर के काम को लेकर भी वह दखल रखता था.
करीम लाला की मौत 2002 में हुई थी.