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न सिर्फ युद्ध मैदान, बल्कि कूटनीति में भी पाकिस्तान को मिली थी शिकस्त

कारगिल युद्ध वह युद्ध था, जिसने युद्ध का रुख भारत की ओर मोड़ दिया था. भारत ने कूटनीति के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान को धूल चला दिया. भारत की कूटनीति के आगे पाकिस्तान की एक न चली और विश्व स्तर पर उसे अलग-थलग होना पड़ा. पाकिस्तान को कारगिल से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा.

कारगिल युद्ध
कारगिल युद्ध
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Published : Jul 24, 2020, 11:56 AM IST

Updated : Jul 24, 2020, 1:39 PM IST

कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के कारगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है. पाकिस्तान की सेना ने नियंत्रण रेखा पार करके भारत की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की थी. हालांकि भारतीय सेना ने पाकिस्तान की नापाक इरादों को धवस्त करते हुए उसे पीछे खदेड़ दिया.

कारगिल युद्ध के बाद भारत ने अपनी प्रभावी कूटनीति से दुनिया को अवगत कराया कि पाकिस्तान इस संघर्ष में आक्रामक था. भारत ने पकिस्तान के झूठ को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने बेनकाब किया और विश्व स्तर पर उसे अलग-थलग कर दिया.

  • भारत को जब कारगिल घुसपैठ के बारे में पता चला, तब राष्ट्रीय शक्ति ने सैन्य और कूटनीतिक तत्वों के सहारे पाकिस्तान को एक कोने पर घेरना शुरू किया.
  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने कारगिल के टेप और दस्तावेजों के माध्यम से पाकिस्तान का झूठ बेनकाब हो गया कि वह घुसपैठ में शामिल नहीं था.
  • पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दों को घुसपैठ से जोड़ना चाहता था, लेकिन यह दाव विफल हो गया. कश्मीर संघर्ष के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जगह नहीं मिली.
  • पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह बताने की कोशिश कर रहा था कि एलओसी पर स्थिति सामान्य है. वह सियाचिन के मुद्दे को अंतर्राष्टीय स्तर पर उठाना चाहता था.
  • भारतीय राजनयिकों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को नियंत्रण रेखा के बारे में समझाने के साथ प्रभावी रूप से उन्हें बताया कि पाकिस्तानी द्वारा की गई यह कार्रवाई भारत की संप्रभुता पर हमला है.
  • भारत ने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी भी जिम्मेदार परमाणु संपन्न देश ने पड़ोसी परमाणु संपन्न देश पर कभी भी इस तरह की उत्तेजक और खतरनाक कार्रवाई नहीं की गई थी.
  • पाकिस्तान को यह उम्मीद थी कि प्रमुख देश उसके साथ होंगे और वह तत्काल युद्ध विराम पर जोर देंगे, लेकिन भारतीय कूटनीति ने यह सुनिश्चित किया कि ऐसा करने के बजाय, सभी महत्वपूर्ण देश विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका,पाकिस्तान को कारगिल से पीछे हटने के लिए मजबूर किया.
  • एलओसी पार नहीं करने के भारत के फैसले ने भारत को विश्व के प्रति संयम दिखाया. इस बारे में जनरल वीपी. मलिक ने अपनी पुस्तक 'इंडियाज मिलिट्री कॉन्फ्लिक्ट्स एंड डिप्लोमेसी' में बताया, जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के संबंध में भारत के लक्ष्य थे.
  • भारत पूरे दुनिया को यह समझाने में सफल रहा कि वह पाकिस्तानी आक्रामकता का शिकार था. इसके साथ ही बाद में पाकिस्तान ने शिमला समझौते का उल्लंघन किया.
  • यह इस बात का सबूत था कि घुसपैठ करने वाले आतंकवादी नहीं थे बल्कि पाकिस्तानी सेना के जवान थे.
  • भारत ने एक परमाणु संपन्न देश के रूप में 'जिम्मेदारी और संयम' का प्रदर्शन किया.
  • जून के अंत तक अमेरिकी सरकार, यूरोपीय संघ और जी-8 ने पाकिस्तान को नियंत्रण रेखा से वापस पीछे न हटने पर सभी प्रतिबंधों की धमकी दी. पाकिस्तान के ऊपर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा था.
  • यहां तक कि ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ्रेंस (ओआईसी) में पाकिस्तान के पारंपरिक सहयोगियों ने भी उसका साथ नहीं दिया.
  • जब प्रधानमंत्री नवाज शरीफ 4 जुलाई 1999 को राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मिलने के लिए वाशिंगटन गए. उस दौरान भारत के पाकिस्तान को अलग-थलग करने के कूटनीतिक प्रयासों को सफलता मिली. इस बात का जिक्र जनरल परवेज मुशर्रफ ने अपनी पुस्तक 'इन द लाइन ऑफ फायर' में किया है.
  • आखिरकार शरीफ ने क्लिंटन के दबाव को खत्म कर दिया और युद्ध को समाप्त कर दिया.

भारत की कूटनीतिक जीत के प्रमुख खिलाड़ी

  • अटल बिहारी वाजपेयी इस दौरान शांत रहे और कारगिल से पाकिस्तान को बाहर भगाने के उद्देश्य पर केंद्रित रहे.
  • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा ने सुनिश्चित किया कि कारगिल में पाकिस्तान को हराने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सभी भारतीय संस्थानों ने सामंजस्यपूर्ण ढंग से काम किया.
  • विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने मोर्चे से कूटनीतिक प्रयास का नेतृत्व किया.
  • विदेश सचिव के रघुनाथ ने पाकिस्तान की गैरजिम्मेदारी को पेश करने के लिए भारत की कूटनीतिक दलीलों को धार दी.

अंतरराष्टीय स्तर भी पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा, विश्व स्तर पर उसे अलग-थलग होने के बाद दवाब के कारण युद्ध को समाप्त कर दिया और भारत ने फिर से कूटनीति के सहारे जीत हासिल की.

कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के कारगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है. पाकिस्तान की सेना ने नियंत्रण रेखा पार करके भारत की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की थी. हालांकि भारतीय सेना ने पाकिस्तान की नापाक इरादों को धवस्त करते हुए उसे पीछे खदेड़ दिया.

कारगिल युद्ध के बाद भारत ने अपनी प्रभावी कूटनीति से दुनिया को अवगत कराया कि पाकिस्तान इस संघर्ष में आक्रामक था. भारत ने पकिस्तान के झूठ को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने बेनकाब किया और विश्व स्तर पर उसे अलग-थलग कर दिया.

  • भारत को जब कारगिल घुसपैठ के बारे में पता चला, तब राष्ट्रीय शक्ति ने सैन्य और कूटनीतिक तत्वों के सहारे पाकिस्तान को एक कोने पर घेरना शुरू किया.
  • अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने कारगिल के टेप और दस्तावेजों के माध्यम से पाकिस्तान का झूठ बेनकाब हो गया कि वह घुसपैठ में शामिल नहीं था.
  • पाकिस्तान कश्मीर के मुद्दों को घुसपैठ से जोड़ना चाहता था, लेकिन यह दाव विफल हो गया. कश्मीर संघर्ष के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जगह नहीं मिली.
  • पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह बताने की कोशिश कर रहा था कि एलओसी पर स्थिति सामान्य है. वह सियाचिन के मुद्दे को अंतर्राष्टीय स्तर पर उठाना चाहता था.
  • भारतीय राजनयिकों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को नियंत्रण रेखा के बारे में समझाने के साथ प्रभावी रूप से उन्हें बताया कि पाकिस्तानी द्वारा की गई यह कार्रवाई भारत की संप्रभुता पर हमला है.
  • भारत ने इस बात पर भी जोर दिया कि किसी भी जिम्मेदार परमाणु संपन्न देश ने पड़ोसी परमाणु संपन्न देश पर कभी भी इस तरह की उत्तेजक और खतरनाक कार्रवाई नहीं की गई थी.
  • पाकिस्तान को यह उम्मीद थी कि प्रमुख देश उसके साथ होंगे और वह तत्काल युद्ध विराम पर जोर देंगे, लेकिन भारतीय कूटनीति ने यह सुनिश्चित किया कि ऐसा करने के बजाय, सभी महत्वपूर्ण देश विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका,पाकिस्तान को कारगिल से पीछे हटने के लिए मजबूर किया.
  • एलओसी पार नहीं करने के भारत के फैसले ने भारत को विश्व के प्रति संयम दिखाया. इस बारे में जनरल वीपी. मलिक ने अपनी पुस्तक 'इंडियाज मिलिट्री कॉन्फ्लिक्ट्स एंड डिप्लोमेसी' में बताया, जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के संबंध में भारत के लक्ष्य थे.
  • भारत पूरे दुनिया को यह समझाने में सफल रहा कि वह पाकिस्तानी आक्रामकता का शिकार था. इसके साथ ही बाद में पाकिस्तान ने शिमला समझौते का उल्लंघन किया.
  • यह इस बात का सबूत था कि घुसपैठ करने वाले आतंकवादी नहीं थे बल्कि पाकिस्तानी सेना के जवान थे.
  • भारत ने एक परमाणु संपन्न देश के रूप में 'जिम्मेदारी और संयम' का प्रदर्शन किया.
  • जून के अंत तक अमेरिकी सरकार, यूरोपीय संघ और जी-8 ने पाकिस्तान को नियंत्रण रेखा से वापस पीछे न हटने पर सभी प्रतिबंधों की धमकी दी. पाकिस्तान के ऊपर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा था.
  • यहां तक कि ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ्रेंस (ओआईसी) में पाकिस्तान के पारंपरिक सहयोगियों ने भी उसका साथ नहीं दिया.
  • जब प्रधानमंत्री नवाज शरीफ 4 जुलाई 1999 को राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मिलने के लिए वाशिंगटन गए. उस दौरान भारत के पाकिस्तान को अलग-थलग करने के कूटनीतिक प्रयासों को सफलता मिली. इस बात का जिक्र जनरल परवेज मुशर्रफ ने अपनी पुस्तक 'इन द लाइन ऑफ फायर' में किया है.
  • आखिरकार शरीफ ने क्लिंटन के दबाव को खत्म कर दिया और युद्ध को समाप्त कर दिया.

भारत की कूटनीतिक जीत के प्रमुख खिलाड़ी

  • अटल बिहारी वाजपेयी इस दौरान शांत रहे और कारगिल से पाकिस्तान को बाहर भगाने के उद्देश्य पर केंद्रित रहे.
  • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्रा ने सुनिश्चित किया कि कारगिल में पाकिस्तान को हराने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सभी भारतीय संस्थानों ने सामंजस्यपूर्ण ढंग से काम किया.
  • विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने मोर्चे से कूटनीतिक प्रयास का नेतृत्व किया.
  • विदेश सचिव के रघुनाथ ने पाकिस्तान की गैरजिम्मेदारी को पेश करने के लिए भारत की कूटनीतिक दलीलों को धार दी.

अंतरराष्टीय स्तर भी पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा, विश्व स्तर पर उसे अलग-थलग होने के बाद दवाब के कारण युद्ध को समाप्त कर दिया और भारत ने फिर से कूटनीति के सहारे जीत हासिल की.

Last Updated : Jul 24, 2020, 1:39 PM IST
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