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विशेषज्ञ बोले, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से बड़ी कंपनियों को होगा फायदा

सरकार ने कृषि से जुड़े विधेयकों को संसद के दोनों सदनों से पारित करवा लिया है. इनमें दो विषय सबसे अहम हैं. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और एमएसपी. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इन विधेयकों से बड़ी-बड़ी कंपनियों को फायदा होगा. एमएसपी को भी सरकार ने विधेयक में जगह नहीं दी है. लिहाजा इसे लेकर कई संदेह उत्पन्न होते हैं. इन सारे विषयों पर ईटीवी भारत के संवाददाता वैथिस्वरन ने बातचीत की है आईजीआईडीआर के निदेशक व कुलपति प्रो. महेंद्र देव से.

contract farming
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग
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Published : Sep 24, 2020, 7:55 AM IST

Updated : Sep 24, 2020, 2:44 PM IST

नई दिल्ली : किसानों और विपक्षी दलों की कड़ी आलोचना के बीच कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण ) विधेयक और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण ) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक नाम के दो विवादास्पद विधेयक और आवश्यक वस्तु अधिनियम में एक संशोधन संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया. इस तरह संसद ने किसानों की आय के पुराने मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है.

प्रो महेंद्र देव से बातचीत

सरकार का कहना है कि ये विधेयक कृषि-उत्पादों के बगैर किसी रुकावट के एक राज्य से दूसरे राज्य में व्यापार को बढ़ावा देंगे और किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने में मददगार होंगे. आलोचकों का आरोप है कि नया कानून केवल बड़े कॉरपोरेटों को मदद करेगा और छोटे और सीमांत किसान जिनकी संख्या बहुत अधिक है, वे इससे नुकसान में रहेंगे.

इस पृष्ठभूमि के बीच ईटीवी भारत ने इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च (आईजीआईडीआर ) के निदेशक और कुलपति प्रोफेसर महेंद्र देव से बात की. देव इससे पहले कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी ) के अध्यक्ष थे. सीएसीपी भारत सरकार को फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) की सिफारिश करता है.

key points
प्रमुख बातें

बातचीत का संपादित अंश

सवाल : क्या छोटे किसानों के लिए बड़ी कंपनियों के साथ अनुबंध करते समय सौदेबाजी करना संभव है ? क्या बराबरी का कोई खेल मैदान होगा ?

जवाब : कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (कानून) बड़ी कंपनियों की मदद करेगा. चूंकि उनके पास मोलभाव करने की अधिक शक्ति है, इसलिए यह आंशिक रूप से सच हो सकता है कि अनुबंध उनके पक्ष में होगा. किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) इकट्ठे होकर बड़ी कंपनियों के साथ सौदेबाजी कर सकते हैं. करार वाली खेती में असमानता को एक व्यवस्थित प्रारूप में समान बनाया जाना है. अभी अगर बाजार की कीमतों में गिरावट आती है तो कंपनियां अनुबंधों को धता बताकर बाहर से खरीददारी कर रही हैं. इसी तरह अगर कीमतों में कोई बढ़ोतरी होती है तो किसान अनुबंध का सम्मान नहीं कर रहे हैं. यह बदला जाना चाहिए. विधेयक के मुताबिक यदि किसानों और कंपनियों के बीच कोई विवाद होने पर जिला कलेक्टरों को निर्णय लेना चाहिए. यह संभव है कि कुछ अमीरों का पक्ष लेंगे, किसानों का शोषण रोकने के लिए कोई नियम होना चाहिए.

सवाल : क्या बिचौलियों को खत्म करके किसानों और खरीदारों के बीच सीधे व्यापार की कोई संभावना है ?

जवाब : वर्तमान परिदृश्य में, एपीएमसी बाजारों और बाहर दोनों में बिचौलियों को समाप्त नहीं किया जा सकता है. विशेष रूप से गैर-एपीएमसी क्षेत्रों में उन्हें पूरी तरह खत्म करना मुश्किल है. बड़ी कंपनियां बहुत सारे छोटे और सीमांत किसानों को जुटा नहीं सकती हैं. इसके अलावा इस तरह के किसान इंटरलिंक्ड बाजार व्यवस्था के तरह काम करते हैं , जिसमें बिचौलिए फसलों की खेती से पहले किसानों को कर्ज देते हैं ताकि किसान केवल उन्हें ही फसल बेच सकें. ये चीजें जारी रह सकती हैं.

सवाल : कई किसान संगठन आवश्यक वस्तु अधिनियम में किए गए संशोधनों को लेकर संदेह जता रहे हैं, उनका कहना है कि इससे जमाखोरी होगी और देश में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ जाएगी. इस पर आपकी क्या राय है ?

जवाब : कई लोग मानते हैं कि आवश्यक वस्तु अधिनियम को निरस्त किया जाना चाहिए. यह कदम सही दिशा में है लेकिन खाद्यान्न और दालों की जमाखोरी रोकने और उपभोक्ताओं और किसानों को शोषण से बचाने के लिए कुछ नियम बनाए जाने चाहिए.

सवाल : नए कानून यह गारंटी नहीं देते हैं कि किसानों को जो कीमत मिलेगी वह एमएसपी से कम नहीं होगी. यह किसानों और विपक्ष की मूल चिंता है. क्या सरकार भविष्य में सरकारी खरीद और एमएसपी योजना को बंद कर देगी ?

जवाब : सरकार का कहना है कि हम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं हटाएंगे, लेकिन किसानों को डर है कि एमएसपी को धीरे-धीरे हटाया जा सकता है. कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) रिपोर्ट में एक सिफारिश बिना एमएसपी के कृषि क्षेत्र को बाजार-आधारित करने का है , जिसमें किसानों को एमएसपी के बिना अधिक मूल्य मिलता है.

पढ़ें :- कर्ज माफी बड़ा मुद्दा, यहां जाने किस राज्य में हुई कितनी कर्ज माफी

एमएसपी में कुछ खास समस्याएं हैं. सरकार 23 फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करती है लेकिन खरीद केवल दो फसलों यानी चावल और गेहूं के लिए की जाएगी. पिछले 50 साल से यही स्थिति है. केवल 10 फीसद किसानों को एमएसपी व्यवस्था से लाभ मिलता है. पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु कुछ ही राज्य हैं जो इससे लाभान्वित हो रहे हैं. हमें अन्य किसानों की आय में सुधार करना होगा.

सवाल : किसानों की आय दोगुनी करने के लिए किन नीतिगत बदलावों की आवश्यकता है?

जवाब : कृषि विधेयक से किसानों की आय दोगुनी नहीं होगी. किसानों की आय को दोगुना करने के लिए फसल विविधता आवश्यक है. फिलहाल अधिकांश सरकारी खरीद और अनुदान चावल और गेहूं को दी जाती है. इन फसलों के लिए एमएसपी को हटाया जाना चाहिए. सरकार को एमएसपी देकर कोल्ड स्टोरेज की सुविधाओं का निर्माण और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना करके निजी निवेश लाने वाले अन्य फसलों को प्रोत्साहित करना चाहिए. इसके अलावा किसानों के लिए बेहतर कीमत मिले इसके लिए बिचौलियों को समाप्त किया जाना चाहिए. ज्यादा मजदूरों को कृषि से दूसरे उद्योगों और सेवा क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए, लेकिन उसके लिए यह सही समय नहीं है.

नई दिल्ली : किसानों और विपक्षी दलों की कड़ी आलोचना के बीच कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण ) विधेयक और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण ) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक नाम के दो विवादास्पद विधेयक और आवश्यक वस्तु अधिनियम में एक संशोधन संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया. इस तरह संसद ने किसानों की आय के पुराने मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है.

प्रो महेंद्र देव से बातचीत

सरकार का कहना है कि ये विधेयक कृषि-उत्पादों के बगैर किसी रुकावट के एक राज्य से दूसरे राज्य में व्यापार को बढ़ावा देंगे और किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाने में मददगार होंगे. आलोचकों का आरोप है कि नया कानून केवल बड़े कॉरपोरेटों को मदद करेगा और छोटे और सीमांत किसान जिनकी संख्या बहुत अधिक है, वे इससे नुकसान में रहेंगे.

इस पृष्ठभूमि के बीच ईटीवी भारत ने इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च (आईजीआईडीआर ) के निदेशक और कुलपति प्रोफेसर महेंद्र देव से बात की. देव इससे पहले कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी ) के अध्यक्ष थे. सीएसीपी भारत सरकार को फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) की सिफारिश करता है.

key points
प्रमुख बातें

बातचीत का संपादित अंश

सवाल : क्या छोटे किसानों के लिए बड़ी कंपनियों के साथ अनुबंध करते समय सौदेबाजी करना संभव है ? क्या बराबरी का कोई खेल मैदान होगा ?

जवाब : कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (कानून) बड़ी कंपनियों की मदद करेगा. चूंकि उनके पास मोलभाव करने की अधिक शक्ति है, इसलिए यह आंशिक रूप से सच हो सकता है कि अनुबंध उनके पक्ष में होगा. किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) इकट्ठे होकर बड़ी कंपनियों के साथ सौदेबाजी कर सकते हैं. करार वाली खेती में असमानता को एक व्यवस्थित प्रारूप में समान बनाया जाना है. अभी अगर बाजार की कीमतों में गिरावट आती है तो कंपनियां अनुबंधों को धता बताकर बाहर से खरीददारी कर रही हैं. इसी तरह अगर कीमतों में कोई बढ़ोतरी होती है तो किसान अनुबंध का सम्मान नहीं कर रहे हैं. यह बदला जाना चाहिए. विधेयक के मुताबिक यदि किसानों और कंपनियों के बीच कोई विवाद होने पर जिला कलेक्टरों को निर्णय लेना चाहिए. यह संभव है कि कुछ अमीरों का पक्ष लेंगे, किसानों का शोषण रोकने के लिए कोई नियम होना चाहिए.

सवाल : क्या बिचौलियों को खत्म करके किसानों और खरीदारों के बीच सीधे व्यापार की कोई संभावना है ?

जवाब : वर्तमान परिदृश्य में, एपीएमसी बाजारों और बाहर दोनों में बिचौलियों को समाप्त नहीं किया जा सकता है. विशेष रूप से गैर-एपीएमसी क्षेत्रों में उन्हें पूरी तरह खत्म करना मुश्किल है. बड़ी कंपनियां बहुत सारे छोटे और सीमांत किसानों को जुटा नहीं सकती हैं. इसके अलावा इस तरह के किसान इंटरलिंक्ड बाजार व्यवस्था के तरह काम करते हैं , जिसमें बिचौलिए फसलों की खेती से पहले किसानों को कर्ज देते हैं ताकि किसान केवल उन्हें ही फसल बेच सकें. ये चीजें जारी रह सकती हैं.

सवाल : कई किसान संगठन आवश्यक वस्तु अधिनियम में किए गए संशोधनों को लेकर संदेह जता रहे हैं, उनका कहना है कि इससे जमाखोरी होगी और देश में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ जाएगी. इस पर आपकी क्या राय है ?

जवाब : कई लोग मानते हैं कि आवश्यक वस्तु अधिनियम को निरस्त किया जाना चाहिए. यह कदम सही दिशा में है लेकिन खाद्यान्न और दालों की जमाखोरी रोकने और उपभोक्ताओं और किसानों को शोषण से बचाने के लिए कुछ नियम बनाए जाने चाहिए.

सवाल : नए कानून यह गारंटी नहीं देते हैं कि किसानों को जो कीमत मिलेगी वह एमएसपी से कम नहीं होगी. यह किसानों और विपक्ष की मूल चिंता है. क्या सरकार भविष्य में सरकारी खरीद और एमएसपी योजना को बंद कर देगी ?

जवाब : सरकार का कहना है कि हम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं हटाएंगे, लेकिन किसानों को डर है कि एमएसपी को धीरे-धीरे हटाया जा सकता है. कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) रिपोर्ट में एक सिफारिश बिना एमएसपी के कृषि क्षेत्र को बाजार-आधारित करने का है , जिसमें किसानों को एमएसपी के बिना अधिक मूल्य मिलता है.

पढ़ें :- कर्ज माफी बड़ा मुद्दा, यहां जाने किस राज्य में हुई कितनी कर्ज माफी

एमएसपी में कुछ खास समस्याएं हैं. सरकार 23 फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करती है लेकिन खरीद केवल दो फसलों यानी चावल और गेहूं के लिए की जाएगी. पिछले 50 साल से यही स्थिति है. केवल 10 फीसद किसानों को एमएसपी व्यवस्था से लाभ मिलता है. पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु कुछ ही राज्य हैं जो इससे लाभान्वित हो रहे हैं. हमें अन्य किसानों की आय में सुधार करना होगा.

सवाल : किसानों की आय दोगुनी करने के लिए किन नीतिगत बदलावों की आवश्यकता है?

जवाब : कृषि विधेयक से किसानों की आय दोगुनी नहीं होगी. किसानों की आय को दोगुना करने के लिए फसल विविधता आवश्यक है. फिलहाल अधिकांश सरकारी खरीद और अनुदान चावल और गेहूं को दी जाती है. इन फसलों के लिए एमएसपी को हटाया जाना चाहिए. सरकार को एमएसपी देकर कोल्ड स्टोरेज की सुविधाओं का निर्माण और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना करके निजी निवेश लाने वाले अन्य फसलों को प्रोत्साहित करना चाहिए. इसके अलावा किसानों के लिए बेहतर कीमत मिले इसके लिए बिचौलियों को समाप्त किया जाना चाहिए. ज्यादा मजदूरों को कृषि से दूसरे उद्योगों और सेवा क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए, लेकिन उसके लिए यह सही समय नहीं है.

Last Updated : Sep 24, 2020, 2:44 PM IST
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