पसमांदा मुसलमानों को समझा गया वोट बैंक, नहीं मिली राजनैतिक हिस्सेदारी - वसीम राइन

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बाराबंकी: सूबे की मुस्लिम आबादी का तकरीबन 80 से 85 फीसदी मुसलमान पसमांदा है. पसमांदा यानी दबे-कुचले पिछड़े. सूबे की कई ऐसी विधानसभाएं हैं जहां हार-जीत का फैसला यही पसमांदा मुसलमान करते हैं. आजादी के बाद से ही सभी राजनीतिक दलों ने इन दबे कुचले मुसलमानों को महज वोट बैंक ही समझ रखा है. पसमांदा मुसलमानों की शिकायत है कि किसी भी दल ने उनको मेन स्ट्रीम में लाने की कोशिश नहीं की. इनकी पीड़ा है कि राजनीतिक दलों ने इनको राजनीति में कोई हिस्सेदारी नहीं दी. ऑल इंडिया पसमांदा महाज इन दबे कुचले मुसलमानों की पिछले कई वर्षों से आवाज उठा रहा है. ऑल इंडिया मुस्लिम पसमांदा महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राइन पिछले कई वर्षों से संविधान के अनुच्छेद 341 में दलित मुसलमानों को शामिल किए जाने की मांग करते आ रहे हैं. साथ ही पसमांदा मुसलमानों को राजनीति में भागेदारी दिए जाने को लेकर भी कई राजनीतिक दलों से मांग करते आ रहे हैं. हाल ही में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर महाज ने खास रणनीति तैयार की है. वसीम राइन का आरोप है कि शुरुआती समय से ही कांग्रेस ने दबे कुचले मुसलमानों का नुकसान किया. सपा ने तो महज वोट बैंक ही समझा. बसपा ने भी इनको हिस्सेदारी नहीं दी. जो भी दल पसमांदा मुसलमानों के हितों की बात करेगा उनको राजनीतिक हिस्सेदारी देगा. महाज उसी का साथ देगा. ऑल इंडिया मुस्लिम पसमांदा समाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राइन ने हमारे ईटीवी भारत संवाददाता से खास बातचीत की.पेश है बातचीत के अंश....

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