वाराणसी: सनातन धर्म में पर्व व त्योहार का विशेष महत्व होता है और बात अगर देवी आराधना के पर्व नवरात्र की करें तो फिर इसे विशेष रूप से 9 दिनों तक मनाया जाता है. जिसमें देवी के अलग-अलग रूपों की उपासना की जाती है. वैसे नवरात्र 3 तरह के होते हैं. चैत्र के महीने को चैत्र नवरात्रि के नाम से जाना जाता है, जबकि गुप्त नवरात्रि शैव संप्रदाय को छोड़कर तंत्र साधना करने वाले लोगों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है. वहीं, दशहरे के पहले शारदीय नवरात्र मां दुर्गा की उपासना का पर्व माना जाता है. इस बार 2 अप्रैल से शुरू हो रही चैत्र नवरात्र के क्रम में देवी के अलग-अलग नौ गौरी रूप में पूजन का विधान माना जाता है. इस बार का नवरात्र इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि 9 दिन का पूरा नवरात्र मिलने से इसे बेहद शुभ माना जा रहा है. लेकिन शास्त्रों में माता का आगमन और उनका गमन किस रूप में होगा, इस पर भी चीजें निर्भर करती हैं. आइए आज हम आपको नवरात्रि के अलग-अलग पहलुओं के साथ पूजन विधि व कलश स्थापना के मुहूर्त के बारे में बताते हैं.
पहले दिन हुई थी सृष्टि की रचना: चैत्र नवरात्रि के बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी बताते हैं कि चैत्र नवरात्र सनातन धर्म के लिए काफी महत्वपूर्ण पर्व है. क्योंकि कई अरब साल पहले इसी दिन सृष्टि की रचना भगवान ब्रह्मा ने की थी. इस वजह से सनातन धर्म में इस दिन को नव संवत्सर के रूप में मनाया जाता है. नव संवत्सर यानी प्रकृति के एक नए स्वरूप का आगमन और प्रकृति के इस नए स्वरूप के साथ माता के आगमन को चैत्र नवरात्र के पर्व के रूप में मनाने का विधान है.
आगमन घोड़े पर और गमन भैंसे पर: इस बार 2 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होने जा रही है और 11 अप्रैल को पारण के साथ 9 दिन का व्रत रहने वाले लोगों का यह अनुष्ठान पूर्ण होगा. 9 दिनों तक इस बार नवरात्रि का पूजन होगा. ऐसे में अबकी न ही किसी तिथि की हानि है और न ही कोई तिथि ज्यादा पड़ रही है. यानी पूरे 9 दिन तक होने की वजह से यह नवरात्र बेहद शुभ माना जा रहा है. लेकिन शास्त्रों में नवरात्र के दौरान माता का आगमन और उनका जाना शुभ और अशुभ के संकेत देता है और इस बार माता का आगमन घोड़े पर और गमन भैंसे पर हो रहा है.
आगमन-गमन नहीं दे रहा अच्छे संकेत: ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि आगमन घोड़े पर होना और भैंसे पर माता का जाना यह अच्छे संकेत नहीं है, क्योंकि यह दोनों ही विनाशकारी संकेत दे रहे हैं. यानी माता के आगमन के साथ उनके जाने से देश में अकाल की स्थिति पैदा होगी. अनाज की कीमतें आसमान छुएंगी और महामारी के संकेत भी देखने को मिल रहे हैं, यानी भले ही नवरात्र 9 दिनों का होने की वजह से शुभ हो लेकिन माता का आना और उनका जिस वाहन से जाना हो रहा है, वह अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं. ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि घोड़े पर माता के आगमन का संकेत यह है कि किसी देश में राजा को उसके पद से हटाया जाना या युद्ध होना. वहीं, भैंसे से माता का जाना रोग व्याधि और प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है.
इस मुहूर्त में करें कलश स्थापना: ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि चैत्र नवरात्र का पर्व सनातन धर्म के लिए महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि इस वक्त नव संवत्सर की शुरुआत होती है. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवरात्रि का प्रारंभ माना जाता है और 2 अप्रैल से इस दिन की शुरुआत होने जा रही है. पंचांग के मुताबिक चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की शुरुआत 1 अप्रैल को सुबह 11:53 से होगी और प्रतिपदा तिथि 2 अप्रैल को सुबह 11:58 तक मान्य होगी. ऐसे में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल की दोपहर 11:58 तक ही मान्य होगा. सुबह सूर्य उदय होने के साथ ही देवी की कलश स्थापना की शुरुआत हो जाएगी और उत्तम मुहूर्त 2 अप्रैल की सुबह 6:20 बजे से लेकर सुबह 8:26 बजे तक का होगा. इस दौरान आप कलश स्थापना नहीं कर पाते हैं तो दोपहर 12:00 बजे से पहले कलश स्थापना अवश्य कर लें.
नौ दिन होगा नौ गौरी के इन स्वरूपों का दर्शन: ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि वैसे तो देवी दुर्गा और गौरी दोनों एक रुप ही हैं, लेकिन चैत्र नवरात्र में दुर्गा नहीं गौरी के नौ रूपों की पूजा का विधान माना गया है. काशी ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां गौरी के नौ रूपों के अलग-अलग मंदिर मौजूद हैं. इनमें प्रथम दिन मुखनिर्मालिका गौरी, द्वितीय दिन ज्येष्ठा गौरी, तृतीय दिन सौभाग्य गौरी, चतुर्थ दिन श्रृंगार गौरी, पंचम दिन विशालाक्षी गौरी, छठवें दिन ललिता गौरी, सातवें दिन भवानी गौरी, आठवें दिन मंगला गौरी और नौवें दिन महालक्ष्मी गौरी के दर्शन का विधान बताया गया है. जबकि नवदुर्गा दर्शन करने वाले लोग पहले दिन शैलपुत्री, द्वितीय ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांडा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठवें दिन कात्यायनी देवी, सातवें दिन कालरात्रि देवी, आठवें दिन महागौरी और नौंवे दिन सिद्ध माता के दर्शन का क्रम जारी रखेंगे.
इस विधि-विधान से करें पूजा: ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि इस दिन पूजन का विधान थोड़ा अलग होता है. सुबह सूर्य उदय के साथ ही उठकर स्नानादि करने के बाद सबसे पहले घर के गेट पर स्वास्तिक बनाकर घर के दोनों छोर पर बंदरवाल लगाना चाहिए. बंदरवाल यदि उपलब्ध नहीं है तो आम की पत्तियों को पुष्प आदि में लपेटकर एक धागे या फिर लाल रक्षा सूत्र में बांधकर उसे दरवाजे पर जरूर बांधना चाहिए और घर की बालकनी या फिर घर की छत पर सनातन धर्म का भगवा रंग का झंडा फहराना चाहिए. यह शुभ का प्रतीक माना जाता है और नव संवत्सर के आगमन के साथ ही माता के आगमन के लिए शुभ का संकेत लेकर आता है.
ऐसे करें कलश स्थापना: एक आसन पर विराजमान होकर दोनों हाथों को जोड़कर पहले भगवान गणेश का ध्यान करते हुए भगवान गणेश को पूजना चाहिए. उसके बाद एक पात्र में मिट्टी और जौं मिला कर उस पर जलने भरा मिट्टी का या फिर तांबे या पीतल का घड़ा रखना चाहिए. उसके बाद घड़े के ऊपर आम की पत्तियों को रखने के बाद उसके ऊपर नारियल रखकर वरुण और देवी का आवाहन करते हुए माता की पूजा करनी चाहिए.
इन मंत्रों से करें देवी का आह्वान: माता के पूजन के लिए सबसे सरल और साधारण मंत्र 'ओम जयंती मंगला काली, भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री, स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।। या फिर सर्व मंगल मांगलये, शिवे सर्वार्थ साधिके, शरण्ए त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।। इन मंत्रों से देवी का ध्यान करते हुए उनका आह्वान करना चाहिए और कलश स्थापना करने के साथ देवी के जौ और मिट्टी में उनकी खेती करके 9 दिन तक विधि-विधान से उनका पूजन करना चाहिए.
दुर्गा सप्तशती करें पाठ: 9 दिन तक पूजन के विधान के क्रम में प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए. यदि आप संस्कृत नहीं जानते तो फिर हिंदी में दुर्गा सप्तशती के पाठ का विधान भी बताया गया है. ऐसा करने से घर में सुख शांति समृद्धि तो बनी रहती है. साथ ही माता दुर्गा का विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त होता है.
माता को चढ़ाए ये फूल, लगाएं इन चीजों का भोग: पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि माता के आशीर्वाद के लिए उनके पूजन विधान में कुछ सामग्री आवश्यक होती हैं. इनमें लाल गुड़हल का फूल माता को लाल रंग की चुनरी, प्रसाद में इलायची दाना और पंचमेवा शामिल किया जाना चाहिए. इन चीजों को भोग लगाए जाने के बाद 9 दिनों तक यदि आप व्रत कर रहे हैं तो व्रत करते हुए माता का पूजन बड़े ही भक्ति भाव के साथ संपन्न करना चाहिए. नवमी वाले दिन हवन पूजन करने के बाद दशमी को सुबह विसर्जन के पहले कन्या पूजन करने के बाद फिर व्रत का पारण करना चाहिए, जो लोग अष्टमी या फिर नवमी की अलग-अलग पूजा करते हैं उनको माता की ज्योत जगा कर इस दिन माता का आवाहन करके कन्या को भोजन कराते हुए उसके चरणों को धोकर कन्या पूजन संपन्न करना चाहिए. 9 कन्याओं के साथ यथासंभव नौ भैरव स्वरूप बालकों का भी पूजन किया जाना चाहिए.
लाल चंदन चढ़ाने से पूर्ण होती है मनोकामना: ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि देवी भगवती के पूजन में लाल चीजों का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए. लाल फूल के अलावा यदि देवी को लाल चंदन अर्पित करेंगे तो आपके सभी तरह के मनोभाव को माता पूर्ण करेंगी. इसके अलावा माता को नारियल की बर्फी भी अर्पित करनी चाहिए.
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