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वर्ल्ड टूरिज्म डे: भगवान बुद्ध ने यहां दिया था अपना पहला उपदेश, बौद्ध अनुयायियों के लिए यह स्थल है बेहद पवित्र

वाराणसी में स्थित सारनाथ भगवान बुद्ध के प्रथम उपदेश स्थल (बौद्ध तीर्थ) के रूप में जाना जाता है. बौद्ध धर्म अनुयायियों में श्रीलंका से आने वाले सैलानी 2018 में सबसे अधिक संख्या में आये हैं.

भगवान बुद्ध ने प्रथम उपदेश  बौद्ध तीर्थ स्थल पर दिया था.
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Published : Sep 26, 2019, 11:23 PM IST

Updated : Sep 27, 2019, 12:59 PM IST

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी जहां पर मां गंगा और बाबा विश्वनाथ के साथ माता अन्नपूर्णा विराजमान है. काल भैरव मंदिर के साथ ही यहां के घाटों की लंबी श्रृंखला पर घूमने आने वाले पर्यटक बनारस आकर खुद को भाग्यशाली मानते हैं, लेकिन इन सबके बीच बनारस में एक ऐसा स्थान भी है जिसे बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है. यह स्थान बौद्ध तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है.

भगवान बुद्ध ने प्रथम उपदेश बौद्ध तीर्थ स्थल पर दिया था.

भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश स्थल

यह स्थान है सारनाथ शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर यह स्थान बौद्ध तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है. बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में ही दिया था, जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन का नाम दिया गया. यह बौद्ध मत का प्रचार प्रसार का आरंभ था. यह स्थान धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है जिसकी वजह से यहां बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायियों का आना होता है. सबसे बड़ी बात यह है कि बनारस के साधना की वजह से हर साल यहां बड़ी संख्या में श्रीलंका से सैलानियों का आना होता है.

इसे भी पढ़ें-वाराणसी: बीएचयू में मनायी गयी पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 103वीं जयंती

मेडिटेशन और दर्शन पूजन के लिए प्रसिद्ध

बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में लुंबिनी, बोधगया, और कुशीनगर हैं. इसके बाद सारनाथ का महत्वपूर्ण स्थान है. सारनाथ में अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, भगवान बुद्ध का मंदिर, धमेख स्तूप, राजकीय संग्रहालय, जैन मंदिर चीनी मंदिर, मूलगंध कुटी बिहार और नवीन बिहार प्रमुख रूप से मौजूद है. इस पवित्र स्थल में मेडिटेशन और दर्शन पूजन के लिए बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायियों का आना होता है. बताया जाता है कि लगभग 534 ईसा पूर्व सारनाथ जिसे उस वक्त मृगदाव यानी हिरणों से युक्त वन के नाम से जाना जाता था. उस वक्त जब भगवान बुद्ध को बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उन्होंने अपना पहला उपदेश देने के लिए सारनाथ को ही चुना सारनाथ में उनके पास से से उस वक्त मौजूद थे और वह वाराणसी आकर सारनाथ में अपना प्रथम उपदेश ही दिए थे. जिसकी वजह से इस स्थान को काफी पवित्र माना जाता है आज भी दूर-दूर से लोग मेडिटेशन के लिए यहां पहुंचते हैं और बड़ी संख्या में सैलानी सारनाथ आकर अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं.

श्रीलंका से ज्यादा आते है बौद्ध धर्म अनुयायी
सारनाथ में सैलानियों के आने की संख्या लगातार बढ़ रही है. अगर बात की जाए तो सारनाथ की वजह से ही वाराणसी में बौद्ध धर्म अनुयायियों में श्रीलंका से आने वाले सैलानी 2018 में सबसे अधिक संख्या में वाराणसी पहुंचे. महज 1 साल के अंदर 34,533 श्रीलंकाई नागरिक वाराणसी आए थे. जबकि चाइना से आने वाले सैलानियों की संख्या भी 20,822 रही. आसपास में होटल बनने के साथ छोटे व्यापारियों को भी बड़ा लाभ मिल रहा है. कुल मिलाकर सारनाथ वाराणसी और उत्तर प्रदेश के डेवलपमेंट में भी काफी महत्वपूर्ण योगदान निभा रहा है.

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी जहां पर मां गंगा और बाबा विश्वनाथ के साथ माता अन्नपूर्णा विराजमान है. काल भैरव मंदिर के साथ ही यहां के घाटों की लंबी श्रृंखला पर घूमने आने वाले पर्यटक बनारस आकर खुद को भाग्यशाली मानते हैं, लेकिन इन सबके बीच बनारस में एक ऐसा स्थान भी है जिसे बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है. यह स्थान बौद्ध तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है.

भगवान बुद्ध ने प्रथम उपदेश बौद्ध तीर्थ स्थल पर दिया था.

भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश स्थल

यह स्थान है सारनाथ शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर यह स्थान बौद्ध तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है. बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में ही दिया था, जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन का नाम दिया गया. यह बौद्ध मत का प्रचार प्रसार का आरंभ था. यह स्थान धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है जिसकी वजह से यहां बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायियों का आना होता है. सबसे बड़ी बात यह है कि बनारस के साधना की वजह से हर साल यहां बड़ी संख्या में श्रीलंका से सैलानियों का आना होता है.

इसे भी पढ़ें-वाराणसी: बीएचयू में मनायी गयी पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 103वीं जयंती

मेडिटेशन और दर्शन पूजन के लिए प्रसिद्ध

बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में लुंबिनी, बोधगया, और कुशीनगर हैं. इसके बाद सारनाथ का महत्वपूर्ण स्थान है. सारनाथ में अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, भगवान बुद्ध का मंदिर, धमेख स्तूप, राजकीय संग्रहालय, जैन मंदिर चीनी मंदिर, मूलगंध कुटी बिहार और नवीन बिहार प्रमुख रूप से मौजूद है. इस पवित्र स्थल में मेडिटेशन और दर्शन पूजन के लिए बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायियों का आना होता है. बताया जाता है कि लगभग 534 ईसा पूर्व सारनाथ जिसे उस वक्त मृगदाव यानी हिरणों से युक्त वन के नाम से जाना जाता था. उस वक्त जब भगवान बुद्ध को बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उन्होंने अपना पहला उपदेश देने के लिए सारनाथ को ही चुना सारनाथ में उनके पास से से उस वक्त मौजूद थे और वह वाराणसी आकर सारनाथ में अपना प्रथम उपदेश ही दिए थे. जिसकी वजह से इस स्थान को काफी पवित्र माना जाता है आज भी दूर-दूर से लोग मेडिटेशन के लिए यहां पहुंचते हैं और बड़ी संख्या में सैलानी सारनाथ आकर अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं.

श्रीलंका से ज्यादा आते है बौद्ध धर्म अनुयायी
सारनाथ में सैलानियों के आने की संख्या लगातार बढ़ रही है. अगर बात की जाए तो सारनाथ की वजह से ही वाराणसी में बौद्ध धर्म अनुयायियों में श्रीलंका से आने वाले सैलानी 2018 में सबसे अधिक संख्या में वाराणसी पहुंचे. महज 1 साल के अंदर 34,533 श्रीलंकाई नागरिक वाराणसी आए थे. जबकि चाइना से आने वाले सैलानियों की संख्या भी 20,822 रही. आसपास में होटल बनने के साथ छोटे व्यापारियों को भी बड़ा लाभ मिल रहा है. कुल मिलाकर सारनाथ वाराणसी और उत्तर प्रदेश के डेवलपमेंट में भी काफी महत्वपूर्ण योगदान निभा रहा है.

Intro:वर्ल्ड टूरिज्म डे के लिए स्पेशल स्टोरी:

वाराणसी: धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी जहां पर मां गंगा और बाबा विश्वनाथ के साथ माता अन्नपूर्णा विराजमान है काल भैरव मंदिर के साथ ही यहां के घाटों की लंबी श्रंखला पर घूमने आने वाले पर्यटक बनारस आकर खुद को भाग्यशाली मानते हैं लेकिन इन सबके बीच बनारस में एक ऐसा स्थान भी है जिसे बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है यह स्थान है सारनाथ शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर यह स्थान बौद्ध तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ में ही दिया था जिसे धर्म चक्र प्रवर्तन का नाम दिया गया जो बौद्ध मत का प्रचार प्रसार का आरंभ था यह स्थान बहुत धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है जिसकी वजह से यहां बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायियों का आना होता है सबसे बड़ी बात यह है कि बनारस के साधना की वजह से हर साल यहां बड़ी संख्या में श्रीलंका से सैलानियों का आना होता है.


Body:वीओ-01 बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में लुंबिनी, बोधगया, और कुशीनगर हैं. इसके बाद सारनाथ का महत्वपूर्ण स्थान है. सारनाथ में अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, भगवान बुद्ध का मंदिर ₹, धमेख स्तूप, राजकीय संग्रहालय, जैन मंदिर' चीनी मंदिर मूलगंध कुटी बिहार और नवीन बिहार प्रमुख रूप से मौजूद है. इस पवित्र स्थल में मेडिटेशन और दर्शन पूजन के लिए बड़ी संख्या में बौद्ध अनुयायियों का आना होता है. बताया जाता है कि लगभग 534 ईसा पूर्व सारनाथ जिसे उस वक्त मृगदाव यानी हिरणों से युक्त वन के नाम से जाना जाता था. उस वक्त जब भगवान बुद्ध को बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उन्होंने अपना पहला उपदेश देने के लिए सारनाथ को ही चुना सारनाथ में उनके पास से से उस वक्त मौजूद थे और वह वाराणसी आकर सारनाथ में अपना प्रथम उपदेश ही दिए थे. जिसकी वजह से इस स्थान को काफी पवित्र माना जाता है आज भी दूर-दूर से लोग मेडिटेशन के लिए यहां पहुंचते हैं और बड़ी संख्या में सैलानी सारनाथ आकर अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं.


Conclusion:वीओ-02 सारनाथ में सैलानियों के आने की संख्या लगातार बढ़ रही है अगर बात की जाए तो सारनाथ की वजह से ही वाराणसी में बौद्ध धर्म अनुयायियों में श्रीलंका से आने वाले सैलानी 2018 में सबसे अधिक संख्या में वाराणसी पहुंचे महज 1 साल के अंदर 34,533 श्रीलंकाई नागरिक वाराणसी आए थे. जबकि चाइना से आने वाले सैलानियों की संख्या भी 20,822 रही फिलहाल श्रीलंका से आने वाले सैलानियों की वजह से वाराणसी में लगातार सारनाथ उसके आसपास के क्षेत्र में पुलिस बिजनेस भी डेवलप कर रहा है. आसपास में होटल बनने के साथ छोटे व्यापारियों को भी बड़ा लाभ मिल रहा है कुल मिलाकर सारनाथ वाराणसी और उत्तर प्रदेश के डेवलपमेंट में भी काफी महत्वपूर्ण योगदान निभा रहा है.

बाईट- नीरज कुमार सिन्हा, अधीक्षण पुरातत्वविद, भारतीय पुरातत्व विभाग
बाईट- जॉन, विदेशी सैलानी
बाईट- बारबरा, विदेशी सैलानी

गोपाल मिश्र

9839809074
Last Updated : Sep 27, 2019, 12:59 PM IST
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