वाराणसी: बात नक्सलवाद की करें तो हमारे सामने पहाड़ और जंगली इलाके नजर आते हैं, जहां पर कुछ लोग हाथों में बंदूक लिए वसूली और हिंसा के काम को अंजाम देते हैं. मगर बीते 20 साल से इस तरह की एक्टिविटी शहरी इलाकों में भी प्रवेश कर रही है, जिसमें इनके शिकार बन रहे हैं युवा छात्र. नक्सली संगठन युवाओं को बरगलाने के लिए विश्वविद्यालयों में घुस रहे हैं. ये छात्र संगठन के माध्यम से विश्वविद्यालयों में काम कर रहे हैं और अपनी विचारधारा को फैलाने का काम कर रहे हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण 5 सितंबर को बीएचयू में हुई NIA की जांच है, जिसमें नक्सल कनेक्शन सामने आया है.
क्या है नक्सलवादः नक्सलवाद के बारे में ईटीवी भारत ने समाजशास्त्र के प्रो. आरपी पांडेय से बात की. उनका कहना है, 'स्थापित विधि-व्यवस्था के विरुद्ध जाकर राष्ट्र की मुख्य धारा की अवज्ञा करते हुए व्यवस्था के विरोध में कोई काम करता है. विशेष रूप से माओवाद से संबंधित विचारधारा प्रेरित होकर कोई काम किया जाता है तो इसे हम नक्सलवाद कहते हैं. माओवाद से आशय है, जब मार्क्स ने वर्ग संघर्ष की बात की था. उसने कहा था कि शक्ति और सत्ता बंदूक की नली से आती है. 'इट कम्स फ्रॉम बुलेट.' वह हिंसा की बात करता है. उसी संदर्भ में माओवाद की बात हो रही है.'
बुद्धिजीवी लोग नक्सलवादी संगठनों में हो रहे शामिलः प्रोफेसर आरपी पांडेय ने बताया कि 'किसी राष्ट्रीय व्यवस्था के विरुद्ध माओवाद से प्रेरित होकर हिंसक गतिविधियों में कोई सम्मिलित होता है तो इसे नक्सलवाद कहते हैं. नक्सलवाद सामान्यत: जंगली इलाकों में अपने पैर फैलाते हैं. इसी बीच एक नया चलन बीते 20 साल में सामने आया है. नगरों में जो इस तरह के सो कॉल्ड बुद्धिजीवी हैं वे भी इसमें शामिल हो रहे हैं. अभी जो परंपरागत नक्सलवादी थे वो जंगली इलाकों के लोग थे. इसकी शुरुआत कानू सान्याल और चारू मजूमदार से हुई थी. इसे नक्सलवाद इसलिए भी कहते हैं क्योंकि यह बंगाल के जिस जगह से शुरू हुआ था, उसका नाम नक्सलबाड़ी गांव था.'
पूर्वांचल में 20 साल से नहीं हुई थी ऐसे गतिविधिः पूर्वांचल में संगठित अपराध पर लंबे से शोध कर रहे उत्पल पाठक ने भी इस विषय पर हमसे बातचीत की. उन्होंने कहा, 'पूर्वांचल में जो एनआईए की छापेमारी हुई है, इसमें एक अजीब सा संदेश गया है. ऐसा माना जा रहा था कि पूर्वांचल में जो नक्सल गतिविधियां हैं वो काफी कम हो गई हैं. करीब 20 साल पहले एक बड़ा काण्ड हुआ था, जिसमें नक्सलियों ने पीएसी के एक ट्रक पर हमला किया था. उसमें कई जवान शहीद हो गए थे. उसके बाद कोई बड़ी नक्सली घटना घटी नहीं है. ऐसा माना जा रहा था कि चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, रॉबर्टगंज इलाकों में जो भी नक्सली थे वो उस तरीके से एक्टिव नहीं रह गए थे. या तो उन लोगों ने अपना स्थान बदल लिया. वे उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड जैसे नक्सल गतिविधियों वाले राज्यों में चले गए थे.'
नया आउटफिट तैयार रहे हैं संगठनः उत्पल पाठक ने बताया कि 'अभी जो छात्र-छात्राओं के बीच से अर्बन नक्सलवाद की बात सामने आ रही है, वह एनआईए की टीम को उनके पास से मिले कुछ दस्तावेजों के आधार पर है. एनआईए के सूत्रों ने बताया है कि उनके लैपटॉप से भी कुछ आपत्तिजनक सामग्रियां मिली हैं. कुल मिलाकर ये बड़ा ही भयावह और अजीब सा संदेश इस कार्रवाई से आ रहा है. शायद एक अलग तरीके से और एक नया आउटफिट बनाकर उसमें छात्रों को जोड़कर संगठन तैयार किया जा रहा है. पहले ऐसा नहीं था.
छापेमारी वाली जगहों पर पहले नहीं थीं ऐसी गतिविधियांः उनका कहना है, 'इससे पहले भी हमने देखा है कि देश के कई राज्यों में छात्रों का समूह नक्सल की तरफ आकर्षित होता है. लेकिन, इस तरीके से रिहायशी इलाकों में जहां छात्र रह रहे हैं, वहां पर छापा पड़ना और साथ में उनके पास से आपत्तिजनक चीजें मिलना अपने आप में इस बात का इशारा है कि कुछ नया चल रहा है. इसके बारे में शायद सुरक्षा एजेंसियों को भी ठीक से पता नहीं है. जिन जगहों पर एनआईए की छापेमारी की गई है वह जगह कभी भी नक्सल गतिविधियों का केंद्र नहीं रही है. चाहे बीएचयू के पीछे का रिहायशी इलाका हो या चंदौली का वो इलाका जहां पर छापेमारी की गई. वहां पर भी ऐसी कोई गतिविधि पहले नहीं रही है.'
शिक्षण संस्थानों के लिए घातक हैं ऐसे लोगः उत्पल पाठक का ये भी कहना है कि, ऐसे में नक्सल का नया आउटफिट, नई जगह, नए लोग. सब कुछ बिल्कुल नया दिख रहा है. ऐसे में एनआईए को यह खतरे की घंटी लगी होगी. इसीलिए पूर्वांचल में एनआईए की यह कार्रवाई की गई है. वहीं, समाजशास्त्र के प्रोफेसर रवि प्रकाश पांडेय का कहना है, 'अभी बीएचयू में जो लड़कियां पकड़ी गई हैं, ये दोनों एक तरह से छत्रछाया में काम कर रही थीं, जिसमें यह कहा जा सके कि सरकार छात्राओं पर अत्याचार कर रही हैं. जबकि लड़कियां जो कर रही थीं काफी घातक था. जहां लोग भविष्य के लिए तैयार होते हैं. वहां ये उनके संस्कार को कुसंस्कार में बदलने का षडयंत्र कर रही थीं.'
20 साल में नक्सलवाद विश्वविद्यालयों में प्रवेश कर गयाः उन्होंने बताया, 'कानू सान्याल ने सबसे पहले नक्सल गतिविधियों की शुरुआत की थी. वह भी अधिकतम चाय बागान और पहाड़ी इलाके के जंगलों तक सीमित थे. बीते दो दशकों में इसका नया स्वरूप आया है, जिसमें विश्वविद्यालयों में पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी लोग संस्थाओं की आड़ में इन गतिविधियों को संचालित कर रहे हैं. ऐसे लोगों को अर्बन नक्सल शब्द से संबोधित किया जाता है. यह सबसे घातक है. जंगली इलाकों और पहाड़ी क्षेत्रों में नक्सल का काम धन उगाही का माध्यम था. मगर बीते 20 वर्षों से यह विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रवेश कर गया है. इसको प्रवेश कराने वाला एसएफआई है. कई संगठनों के नाम से ये लोग विश्वविद्यालयों में घुस गए हैं.'
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