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Shiv Barat : काशी में दूल्हा बने विश्वेश्वर, दुल्हन गौरा के साथ देखिए भोलेनाथ की पहली तस्वीर

महाशिवरात्रि पर बाबा श्री काशी विश्वनाथ और माता गौरा की प्रतिमा का विशेष वर-वधु के रूप में राजषी श्रृंगार किया गया. भगवान विश्वेश्वर की चल रजत प्रतिमा का विवाह रात्रि 11:00 बजे के बाद शुरू होगा, जो सुबह 5:00 बजे तक चलता रहेगा.

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काशी विश्वनाथ और माता गौरा
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Published : Feb 18, 2023, 6:53 PM IST

वाराणसी: बाबा श्री काशी विश्वनाथ की पंचबदन रजत प्रतिमा बंसत पंचमी पर तिलकोत्सव किया गया. परंपरानुसार शिव विवाह के लिए विजया एकादशी गुरुवार को तेल-हल्दी की रस्म की गई. इसके बाद शनिवार को महाशिवरात्रि पर बाबा श्री काशी विश्वनाथ और माता गौरा की प्रतिमा का विशेष वर-वधु के रूप में राजषी श्रृंगार किया गया. दूल्हा बने बाबा की प्रतिमा को सेहरा लगाया गया. वहीं, माता गौरा मथुरा से मंगवायी गई खास लाल लहंगे में सजीं.

टेढ़ी नीम स्थित महंत आवास पर साढ़े तीन सौ वर्ष वर्षों से चली आ रही लोक परंपरा के अनुसार महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बाबा व गौरा की प्रतिमा की सायंकाल 8 से 9 तक विवाह की परंपरा का निर्वहन कर आरती की. सुबह ब्रह्ममुहूर्त में प्रतिमाओं का रुद्राभिषेक किया गया. पं. वाचस्पति तिवारी ने सपत्नीक रुद्राभिषेक किया. दोपहर में फलाहर का भोग लगाया गया. भोग आरती के बाद संजीवरत्न मिश्र ने बाबा एवं माता की चल प्रतिमा का राजसी श्रृंगार किया कर विशेष आरती उतारी.

सायंकाल मंगल गीतों के साथ परंपरा की शुरुआत हुई. इस मौके उपस्थित श्रद्धालु महिलाओं ने मंगल गीत गाकर माहौल भक्तिमय कर दिया. बाबा की प्रतिमा का विवाहोत्सव महंत-आवास टेढ़ीनीम में मनाया गया. महंत डॉ. कुलपति तिवारी के अनुसार महंत परिवार बाबा विश्वनाथ रजत प्रतिमाओं के साथ सभी निजी प्रतिमाओं को महाशिवरात्रि पर पूजन के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए. महेंद्र प्रसन्ना ने शहनाई की मंगल ध्वनि की. कार्यक्रम के बाद रात्रि मे मंदिर में चारों प्रहर की विशेष आरती पं. शशिभूषण त्रिपाठी गुड्डू महाराज ने संपन्न कराई.

3 मार्च को रंगभरी (अमला) एकादशी पर माता के गौना की रस्म निभाई जाएगी. विश्वनाथ मंदिर के महंत आवास पर दोपहर में मातृका पूजन से लेकर विवाह तक की परंपरा का निर्वाह हुआ. इसके बाद करीब चार सौ साल पुराने स्फटिक के शिवलिंग को आंटे से चौक पूर कर पीतल की परात में रखा गया. इसके बाद पारंपरिक वैवाहिक गीतों की गूंज के बीच महंत पं. कुलपति तिवारी के सानिध्य में मातृका पूजन किया गया.

इसके उपरांत वैदिक ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोच्चार के बीच सभी देवी-देवताओं से शिव के विवाह में शामिल होने का अनुरोध किया. भगवान विश्वेश्वर की चल रजत प्रतिमा का विवाह रात्रि 11:00 बजे के बाद शुरू होगा, जो सुबह 5:00 बजे तक चलता रहेगा.

पढ़ेंः यूपी के इस जिले में है एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग, महाशिवरात्रि के दिन मंदिर से आती है डमरू की आवाज

वाराणसी: बाबा श्री काशी विश्वनाथ की पंचबदन रजत प्रतिमा बंसत पंचमी पर तिलकोत्सव किया गया. परंपरानुसार शिव विवाह के लिए विजया एकादशी गुरुवार को तेल-हल्दी की रस्म की गई. इसके बाद शनिवार को महाशिवरात्रि पर बाबा श्री काशी विश्वनाथ और माता गौरा की प्रतिमा का विशेष वर-वधु के रूप में राजषी श्रृंगार किया गया. दूल्हा बने बाबा की प्रतिमा को सेहरा लगाया गया. वहीं, माता गौरा मथुरा से मंगवायी गई खास लाल लहंगे में सजीं.

टेढ़ी नीम स्थित महंत आवास पर साढ़े तीन सौ वर्ष वर्षों से चली आ रही लोक परंपरा के अनुसार महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने बाबा व गौरा की प्रतिमा की सायंकाल 8 से 9 तक विवाह की परंपरा का निर्वहन कर आरती की. सुबह ब्रह्ममुहूर्त में प्रतिमाओं का रुद्राभिषेक किया गया. पं. वाचस्पति तिवारी ने सपत्नीक रुद्राभिषेक किया. दोपहर में फलाहर का भोग लगाया गया. भोग आरती के बाद संजीवरत्न मिश्र ने बाबा एवं माता की चल प्रतिमा का राजसी श्रृंगार किया कर विशेष आरती उतारी.

सायंकाल मंगल गीतों के साथ परंपरा की शुरुआत हुई. इस मौके उपस्थित श्रद्धालु महिलाओं ने मंगल गीत गाकर माहौल भक्तिमय कर दिया. बाबा की प्रतिमा का विवाहोत्सव महंत-आवास टेढ़ीनीम में मनाया गया. महंत डॉ. कुलपति तिवारी के अनुसार महंत परिवार बाबा विश्वनाथ रजत प्रतिमाओं के साथ सभी निजी प्रतिमाओं को महाशिवरात्रि पर पूजन के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए. महेंद्र प्रसन्ना ने शहनाई की मंगल ध्वनि की. कार्यक्रम के बाद रात्रि मे मंदिर में चारों प्रहर की विशेष आरती पं. शशिभूषण त्रिपाठी गुड्डू महाराज ने संपन्न कराई.

3 मार्च को रंगभरी (अमला) एकादशी पर माता के गौना की रस्म निभाई जाएगी. विश्वनाथ मंदिर के महंत आवास पर दोपहर में मातृका पूजन से लेकर विवाह तक की परंपरा का निर्वाह हुआ. इसके बाद करीब चार सौ साल पुराने स्फटिक के शिवलिंग को आंटे से चौक पूर कर पीतल की परात में रखा गया. इसके बाद पारंपरिक वैवाहिक गीतों की गूंज के बीच महंत पं. कुलपति तिवारी के सानिध्य में मातृका पूजन किया गया.

इसके उपरांत वैदिक ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोच्चार के बीच सभी देवी-देवताओं से शिव के विवाह में शामिल होने का अनुरोध किया. भगवान विश्वेश्वर की चल रजत प्रतिमा का विवाह रात्रि 11:00 बजे के बाद शुरू होगा, जो सुबह 5:00 बजे तक चलता रहेगा.

पढ़ेंः यूपी के इस जिले में है एशिया का सबसे बड़ा शिवलिंग, महाशिवरात्रि के दिन मंदिर से आती है डमरू की आवाज

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