वाराणसी : कोरोना का संक्रमण इस समय अपने खतरनाक स्तर पर है. घरों से बाहर निकलने वाले तो असुरक्षित हैं ही, 24 घंटे घरों में रहने वाले लोगों को भी संक्रमण नहीं बक्श रहा है. इस बीच कुछ ऐसी गलतियां भी हैं जो शायद इस संक्रमण को फैलाने की बड़ी वजह बन रहीं हैं. ऐसी ही लापरवाही वाराणसी में देखने को मिली. यहां संक्रमित मरीजों के मेडिकल वेस्ट सड़कों पर इधर-उधर फेंके दिखाई दिए. साथ ही साथ नगर निगम के खाली पड़े डंपिंग ग्राउंड में भी मेडिकल वेस्ट आवारा पशुओं के साथ-साथ उन बच्चों के हाथों में भी लगते दिखे जो कूड़े और कचरे में अपनी रोजी-रोटी की तलाश करते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इस संक्रमित मेडिकल वेस्ट की चपेट में आने वाले बच्चे या जानवर लोगों के लिए कितनी बड़ी मुसीबत पैदा कर सकते हैं, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.
मेडिकल वेस्ट के निस्तारण में बड़ी लापरवाही
अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में स्वच्छता की अलख जगाने के लिए खुद पीएम मोदी आगे आए थे. हाथों में झाड़ू थामें, लोगों से स्वच्छ भारत मिशन से जुड़ने की अपील की थी. लेकिन इसका संक्रमण के इस दौर में लोगों पर कोई असर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है. वाराणसी में वर्तमान में 46 अस्पताल कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं. इनमें 4 अस्पताल सरकारी और बाकी प्राइवेट हैं. इसके अलावा हजारों की संख्या में मरीज घरों में भी इलाज करवा रहे हैं. इन अस्पतालों से निकलने वाला मेडिकल वेस्ट जैसे- पीपीई किट, फेस मास्क, फेस शिल्ड, हैंड ग्लव्स, सिरिंज और इस्तेमाल हो रही दवाइयां के निस्तारण में बरती जा रही लापरवाही हजारों लोगों में संक्रमण का खतरा पैदा कर सकती है. इस ओर संबंधित अस्पताल और नगर निगम भारी लापरवाही बरत रहे हैं.
अधिकारियों को नहीं पता निस्तारण की उचित व्यवस्था
ईटीवी भारत की पड़ताल में बनारस में मेडिकल वेस्ट निस्तारण के लिए बनाई गई चार अलग-अलग टीमों और मेडिकल वेस्ट को निस्तारित की प्रक्रिया सामने आयी. इन टीमों द्वारा इस कूड़े को शहर से बाहर ले जाकर मिट्टी में दबाने या जलाने की प्रक्रिया करनी होती है. मगर वाराणसी में यह नहीं हो रहा है. सबसे ज्यादा मरीज बीएचयू में हैं. यहां से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट को सफाईकर्मी बिना किसी सुरक्षा उपाय के पैकेट में भरकर इकट्ठा करते दिखाई दिये. बड़ा सवाल यह है कि ये मेडिकल वेस्ट जा कहां रहा है? इसकी जानकारी तो खुद नगर निगम के अधिकारियों को भी नहीं है. अपर नगर आयुक्त सुमित कुमार से जब इस बारे में बात की गई तो वह कहने लगे कि इसके बारे में जानकारी लेनी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए टीमें लगाई गई हैं. वेस्ट को निस्तारित किया जा रहा है.
वैसे तो अस्पतालों से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं. कानून के मुताबिक, बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट और हैंडलिंग एक्ट 1998 के संशोधित नियम 2016 में इसकी व्यवस्था की गई है. एक्ट के मुताबिक, मेडिकल वेस्ट के निस्तारण में कोई गड़बड़ी न हो, इसके लिए जरूरी है कि मेडिकल वेस्ट की उचित छंटाई के बाद जिन थैलियों में उन्हें बंद किया जाए, उनकी बार-कोडिंग हो. इससे हर अस्पताल से निकलने वाले मेडिकल कचरे की ऑनलाइन निगरानी मुमकिन हो सकती है. इसके बावजूद यह कचरा अक्सर खुले में मौजूद कचरा घरों, नदी-नालों में पड़ा रहता है. कानून में ऐसी लापरवाही के लिए 5 साल तक की जेल और जुर्माने का भी प्रावधान है.
बड़े जानवरों से इंसानों को है खतरा
वाराणसी नगर निगम की तरफ से मेडिकल वेस्ट निस्तारण की उचित व्यवस्था नहीं है. इसके अलावा शहर के अलग-अलग इलाकों में ओपन डंपिंग ग्राउंड बनाए गए हैं. यहां कचरे के ढेर में ही मेडिकल वेस्ट फेंक दिए जा रहे हैं. डंपिंग ग्राउंड में रोजाना दर्जनों आवारा पशु भोजन की तलाश करते हैं. ये आवारा पशु कूड़े के पैकेट फाड़कर इसे इधर-उधर फैला देते हैं. इससे वायरस के फैलने का खतरा बना हुआ है.
खुद के साथ दूसरों के लिए भी खतरा
इससे भी अधिक खतरा कचरे के ढेर में रोजी-रोटी की तलाश करने वाले बच्चों के तौर पर सामने आ रहा है. कूड़ा बीनने वाले बच्चे मेडिकल वेस्ट से भी सीसी और प्लास्टिक के थैले आदि बीनते हैं. इससे उनमें संक्रमण का सबसे अधिक खतरा रहता है. इन बच्चों के संपर्क में आने से दूसरे लोग भी संक्रमित हो सकते हैं.
बता दें कि शहर में नगर निगम के छोटे-बड़े मिलाकर 20 से ज्यादा डंपिंग ग्राउंड है जो खुले में बने हुए हैं. इनमें हर रोज 600 मीट्रिक टन मेडिकल वेस्ट मिलाकर कूड़ा निकलता है. वर्तमान समय में बनारस में 32 से ज्यादा किशोर (5-18 वर्ष) कूड़ा बीनने के काम में लगे हुए हैं. अगर जिला प्रशासन इस ओर ध्यान दें तो महामारी के प्रसार को कुछ हद तक रोका जा सकता है.