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वाराणसी : विज्ञान व्यख्यानमाला में वक्ताओं ने विज्ञान और वेद के सम्बन्धों पर रखे विचार

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विज्ञान व्याख्यानमाला के अन्तर्गत 'वैदिक यज्ञ-विज्ञान एवं वैज्ञानिक सिद्धांतों के उत्स' विषय विज्ञान व्यख्यानमाला का आयोजन किया गया. इस दौरान पूर्व कुलपति प्रो. मिश्र ने कहा कि संपूर्ण प्रकृति यज्ञमय है. यज्ञ संस्था एक विज्ञान है, जिसका सृष्टि में बहुत ही महत्व है.

विज्ञान व्यख्यानमाला.
विज्ञान व्यख्यानमाला.
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Published : Jun 26, 2020, 4:37 PM IST

वाराणसी: सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विज्ञान व्याख्यानमाला के अन्तर्गत 'वैदिक यज्ञ-विज्ञान एवं वैज्ञानिक सिद्धांतों के उत्स' विषय विज्ञान व्यख्यानमाला का आयोजन किया गया. इसमें सभी वक्ताओं ने अपने विचार रखें. प्रारम्भ में डॉ. विजय कुमार शर्मा ने मंगलाचरण किया. इस दौरान वेद विभाग के अध्यक्ष प्रो. महेंद्र नाथ पांडेय ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

कार्यक्रम के आरंभ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आचार्य युगल किशोर मिश्र ने कहा कि भारतीय वैदिक सिद्धांतों की जिस ज्ञान गंगा को भारतीय ऋषियों-महर्षियों ने हजारों साल पहले प्रवाहमान किया. प्रकृति के उन रहस्यों की व्याख्या करने में आज का आधुनिक विज्ञान अभी भी मूक है. उन्होंने कहा कि हमारे पुराणों में जो सृष्टि का क्रम बतलाया गया है, वहीं क्रम स्वीकार करता है. सृष्टि में सर्व प्रथम ब्रह्मलोक की रचना हुई, उसके बाद ब्रह्मांड में सृष्टि हुई और उसके बाद पृथ्वी पर वृक्ष आदि उत्पन्न हुए. इसके पश्चात सरीसृप वर्ग उसके बाद पशु वर्ग तदनंतर पक्षी गण की सृष्टि हुई. सबसे अंत में मनुष्य की रचना हुई.

युगल किशोर मिश्र ने कहा कि संपूर्ण प्रकृति यज्ञमय है. यज्ञ संस्था एक विज्ञान है, जिसका सृष्टि में बहुत ही महत्व है. संपूर्ण जगत का मूल तत्व एक ही है यज्ञ विज्ञान. यज्ञ विधियों का प्रारंभ से ही अखंड दृष्टि का विकास एवं सृष्टि के प्रत्येक पदार्थ के साथ सामरस्य स्थापना में है.

कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने कहा कि वेद विज्ञान अनुसंधान के द्वारा यह चौथा व्याख्यान है, जोकि यह सदैव जनोपयोगी है. वेदों का अर्थ भारतीय अध्यात्मविद्या की व्याख्या न होकर विश्वव्यापी अध्यात्मविद्या की व्याख्या है. सनातन धर्म या सनातनी आत्मविद्या एक काल देश या जन विशेष की संपत्ति नहीं है. अपितु वह तो मानव जाति की जन्मसिद्ध संपत्ति है. वैदिक विज्ञान प्रारंभ से ही वृक्षलता आदि को चेतन एवं संज्ञ मानता रहा है, किंतु बहुत काल तक विज्ञान इन्हें चेतन नहीं मानता था, जबकि वेदादि शास्त्र सदा से इन्हें चेतन कहते आए हैं.

वाराणसी: सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विज्ञान व्याख्यानमाला के अन्तर्गत 'वैदिक यज्ञ-विज्ञान एवं वैज्ञानिक सिद्धांतों के उत्स' विषय विज्ञान व्यख्यानमाला का आयोजन किया गया. इसमें सभी वक्ताओं ने अपने विचार रखें. प्रारम्भ में डॉ. विजय कुमार शर्मा ने मंगलाचरण किया. इस दौरान वेद विभाग के अध्यक्ष प्रो. महेंद्र नाथ पांडेय ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

कार्यक्रम के आरंभ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आचार्य युगल किशोर मिश्र ने कहा कि भारतीय वैदिक सिद्धांतों की जिस ज्ञान गंगा को भारतीय ऋषियों-महर्षियों ने हजारों साल पहले प्रवाहमान किया. प्रकृति के उन रहस्यों की व्याख्या करने में आज का आधुनिक विज्ञान अभी भी मूक है. उन्होंने कहा कि हमारे पुराणों में जो सृष्टि का क्रम बतलाया गया है, वहीं क्रम स्वीकार करता है. सृष्टि में सर्व प्रथम ब्रह्मलोक की रचना हुई, उसके बाद ब्रह्मांड में सृष्टि हुई और उसके बाद पृथ्वी पर वृक्ष आदि उत्पन्न हुए. इसके पश्चात सरीसृप वर्ग उसके बाद पशु वर्ग तदनंतर पक्षी गण की सृष्टि हुई. सबसे अंत में मनुष्य की रचना हुई.

युगल किशोर मिश्र ने कहा कि संपूर्ण प्रकृति यज्ञमय है. यज्ञ संस्था एक विज्ञान है, जिसका सृष्टि में बहुत ही महत्व है. संपूर्ण जगत का मूल तत्व एक ही है यज्ञ विज्ञान. यज्ञ विधियों का प्रारंभ से ही अखंड दृष्टि का विकास एवं सृष्टि के प्रत्येक पदार्थ के साथ सामरस्य स्थापना में है.

कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने कहा कि वेद विज्ञान अनुसंधान के द्वारा यह चौथा व्याख्यान है, जोकि यह सदैव जनोपयोगी है. वेदों का अर्थ भारतीय अध्यात्मविद्या की व्याख्या न होकर विश्वव्यापी अध्यात्मविद्या की व्याख्या है. सनातन धर्म या सनातनी आत्मविद्या एक काल देश या जन विशेष की संपत्ति नहीं है. अपितु वह तो मानव जाति की जन्मसिद्ध संपत्ति है. वैदिक विज्ञान प्रारंभ से ही वृक्षलता आदि को चेतन एवं संज्ञ मानता रहा है, किंतु बहुत काल तक विज्ञान इन्हें चेतन नहीं मानता था, जबकि वेदादि शास्त्र सदा से इन्हें चेतन कहते आए हैं.

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