वाराणसी: कहते हैं न कि अगर किसी चीज को पूरे मन से चाहो तो वह चीज मिल ही जाती है. इसे पूरा होने में वक्त जरूर लगता है, लेकिन जब वो काम पूरा होता है तो अलग ही खुशी का अहसास होता है. ऐसी ही कहानी है सुल्तानपुर गांव के महिलाओं की. जी हां इन महिलाओं ने अपने घर-परिवार के काम से अलग समय निकालकर कुछ बेहतरीन करने का सोचा. जहां इन्हें सरकार का साथ मिला, ऐसी अनोखी कलाकृतियां तैयार की (Varanasi women making showpieces from clay) है, जो सहज ही हर किसी का मन मोह सकती है. बड़ी बात यह है कि यह कलाकृतियां किसी लकड़ी या कागज पर नहीं बल्कि मिट्टी पर तैयार की गई है, जिसने इन महिलाओं को अब एक नई पहचान दे दी है.
बता दें कि, सुल्तानपुर गांव की रहने वाली ये महिलाएं अब तक मिट्टी से दीए बनाने का काम करती थी. वर्तमान में विलेज टूरिज्म के प्रोजेक्ट के तहत पर्यटन विभाग ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय (Kashi Hindu University) के जरिए इन महिलाओं के लिए एक ट्रेनिंग प्रोग्राम संचालित किया, जहां इन्हे 20 दिन की ट्रेनिंग मिली. उसके बाद इन महिलाओं ने अलग-अलग आकृतियां बनाने की शुरुआत की. इस क्रम में इन्होंने काशी की पहचान काशी विश्वनाथ धाम (Shri Kashi Vishwanath Dham) संग राम दरबार और अनोखे कलश को तैयार किया है. इन पर बनारस के गंगा घाट (Ganga Ghats of Banaras) को उकेरा गया है. यही नहीं आगामी दिनों में से इसे जीआई टैग भी दिलवाने का काम किया जाएगा.
पहली बार तैयार हुआ गंगा कलश: गांव की दूसरी महिला मंजू ने बताया कि ' हमने पहली बार गंगा कलश तैयार किया है. जिस पर बनारस के गंगा घाट को तैयार किया गया है. सबसे पहले हम लोगों ने घड़ा चाक से गढ़ा है और फिर इसे हाथ से बनाया है. फिरगंगा घाट का फोल्ड बनाया गया है. फोल्ड बनाने के बाद इसे चिपकाया गया है. मगर जब हम लोग इसे तैयार कर रहे थे तो एक तरह की अलग खुशी का अहसास हो रहा था.' वे कहती हैं, 'जब इसे बनाया जा रहा था तो हम सभी के दिल में एक उत्साह था कि हम काशी घाट बना रहे हैं. गगरी या कोई और सामान हो. हमने पुराने तरीके को छोड़कर नए तरीके में हमने इसे ढाला है. बाबा विश्वनाथ की महिमा थी कि जो हमने यह गगरी तैयार की है.'
महिलाओं ने खुद ही तैयार किया है सांचा: मंजू कहती हैं, 'हमारा उद्देश्य ये है कि हमें इस गगरी को लोगों तक पहुंचाना है. इसके साथ ही हम लोगों ने बुद्ध भगवान को भी बनाया है, जिसमें वह उपदेश दे रहे हैं. हमने इन सब डिजाइन के लिए एक सांचा खुद से तैयार किया है. जब हम लोग इसे तैयार कर रहे थे तो वह भी एक तरीके की खुशी थी.' उन्होंने बताया, 'हमें विश्वास नहीं हो रहा था कि हम लोग इसे अपने हाथों से बना रहे हैं. इसमें बस एक कमी रह गई थी कि मिट्टी की दिक्कत होने के कारण इसमें फिनिशिंग नहीं आ पा रही थी. हमें लगता है कि भविष्य में हम घर-परिवार के आगे भी कुछ और कर सकते हैं.'
लकड़ी के जैसे दिखने लगते हैं मिट्टी के उत्पाद: गांव की महिला बन्ना प्रजापति बताती हैं, हम लोगों ने मिट्टी से बहुत सारी चीजें तैयार की हैं. पहले जब बनाते थे तो कुछ खास चिन्ह या डिजाइन नहीं तैयार करते थे. जब हमें बीएचयू के लोगों ने प्रशिक्षण दिया. इसके बाद हमने जग बनाया, पेन पॉट बनाया, तुलसी पॉट बनाया और लैंप भी तैयार किया. इसके साथ ही बहुत से छोटे-छोटे सामान हमने तैयार किए. पहले वह लकड़ी जैसा दिखता जो भी हम तैयार करते थे. जग बनाने के लिए पहले हमने इसको गढ़ा, फिर इसमें चिकनाई के लिए मालिश की गई. इसके बाद सरसों का तेल लगाकर पकाने से इसमें चमक आ गई, जोकि लकड़ी जैसा दिखता है.'
बीएचयू की तरफ से मिली एक महीने की ट्रेनिंग: वे कहती हैं, 'हम इस काम को और भी आगे बढ़ाना चाहते हैं, जिससे हमारा काम और भी अच्छा चले. हालांकि जो उत्पाद तैयार हो रहे हैं उनमें अच्छी फिनिशिंग नहीं आ पा रही है. पहले तो हम लोग किए नहीं. सीखते-सीखते हम इन सब चीजों को तैयार कर रहे हैं. बीएचयू की तरफ से एक महीने की ट्रेनिंग मिल है. इसके बाद हमने इसे मन से सीखा भी है. हमें इस काम में काफी फायदा दिख रहा है. हम जितनी मेहनत करेंगे हमें और भी फायदा मिलेगा.' वहीं गौरी ने बताया, 'हम लोगों को पहले आता नहीं था. इसके लिए हमने कोशिश शुरू की और आज हमने इसे तैयार कर लिया.'
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