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बनारस पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम के विस्तार की क्यों पड़ी जरूरत

उत्तर प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बैठक में वाराणसी के पुलिस कमिश्नर सिस्टम का दायरा बढ़ाते हुए कमिश्नरेट का विस्तार किया है. इसमें लखनऊ और कानपुर भी शामिल हैं.

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बनारस पुलिस कमिश्नरेट
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Published : Nov 3, 2022, 5:29 PM IST

वाराणसीः उत्तर प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बैठक में बुधवार वाराणसी के पुलिस कमिश्नर सिस्टम का दायरा बढ़ाते हुए कमिश्नरेट का विस्तार किया है. इसमें लखनऊ और कानपुर भी शामिल हैं, लेकिन बनारस में हाल ही के दिनों में कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने के बाद अब पूरा जिला एक ही सिस्टम से चलेगा. यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर वह कौन सी वजह है जिसे लेकर बनारस पुलिस कमिश्नरेट के प्लान के बाद कैबिनेट की मुहर इसके विस्तार पर लगी है.

दरसअल, उत्तर प्रदेश में मौजूदा समय में 4 ऐसे जिले हैं, जहां कमिश्नरेट सिस्टम लागू है. इनमें नोएडा, लखनऊ, वाराणसी और कानपुर शामिल हैं. लखनऊ और नोएडा में जनवरी 2020 में कमिश्नरेट सिस्टम लागू हुआ था. वहीं, वाराणसी और कानपुर में मार्च 2021 में कमिश्नरेट सिस्टम लागू हुआ था. नोएडा को छोड़कर शेष तीनों अन्य जिलों के ग्रामीण इलाके की पुलिसिंग के लिए ग्रामीण पुलिस की एक अलग यूनिट बनाई गई थी शहरी क्षेत्र की पुलिसिंग व्यवस्था का मुखिया एडीजी स्तर के पुलिस अफसर को बनाया गया था. वहीं, ग्रामीण क्षेत्र की पुलिसिंग व्यवस्था का मुखिया पुलिस अधीक्षक स्तर के अफसर को बनाया गया था.

इस बारे में अधिकारियों का कहना है कि एक रेवेन्यू एक डिस्ट्रिक्ट को दो पुलिस डिस्ट्रिक्ट में बदलने से पब्लिक को तमाम तरीके की दिक्कतें आती हैं. जेल और न्यायालय की व्यवस्था एक ही है. प्रशासन, रेवेन्यू सहित कई अन्य विभागों के अफसर एक ही रहते हैं. सिर्फ पुलिस के अफसर अलग-अलग हो जाते हैं. इस वजह से पब्लिक को दिक्कत होती है. आम आदमी तो लंबे समय तक समझ ही नहीं पाता है कि वह किस अफसर के सामने जाकर अपनी समस्या सुनाए. इसलिए एक रेवेन्यू डिस्ट्रिक्ट में पुलिस का एक तरह का ही सिस्टम काम करना चाहिए.

वीआईपी ड्यूटी और तीज-त्योहारों के दौरान लॉ एंड ऑर्डर के मद्देनजर को-ऑर्डिनेशन में तमाम तरह की दिक्कतें आती हैं. लखनऊ, वाराणसी और कानपुर तीनों ही प्रदेश के अति महत्वपूर्ण शहर हैं. यहां रोजाना वीआईपी ड्यूटी का प्रेशर भी बरकरार रहता है. ऐसे में बेहतर यही है कि एक जिले में पुलिसिंग का एक सिस्टम ही प्रभावी रहे. लखनऊ, वाराणसी और कानपुर में ग्रामीण पुलिस के लिए अभी इंफ्रॉस्ट्रक्चर तैयार किया जाना है. कमिश्नरेट सिस्टम का इंफ्रॉस्ट्रक्चर तैयार करने का काम भी चल ही रहा है. इसके साथ ही कमिश्नरेट सिस्टम में अधिकारियों की संख्या भी पर्याप्त है. इसलिए एक जिले में पुलिसिंग का एक सिस्टम ही बेहतर है.

अपराध पर अंकुश लगाने के लिहाज से भी एक जिले में पुलिसिंग का एक सिस्टम अच्छा है. शहरी क्षेत्र में अपराध करने के बाद बदमाश उससे सटे ग्रामीण इलाकों की ओर रुख करते हुए भागते हैं. कमिश्नरेट और ग्रामीण इलाके की पुलिस के बीच तत्काल अच्छा को-ऑर्डिनेशन न हो पाने से बदमाशों की धरपकड़ में दिक्कत आती है. एक सिस्टम लागू होने से जिले और शहर के एंट्री प्वाइंट्स की पुलिस प्रभावी तरीके से निगरानी कर सकेगी. इसके अतिरिक्त एक कमिश्नरेट व्यवस्था लागू होने से शहर की यातायात व्यवस्था और अपराध के साथ त्यौहार से लेकर अन्य चीजों पर भी निगरानी करना आसान हो जाएगा.

पढ़ेंः बेसिक और माध्यमिक शिक्षा का एक ही होगा महानिदेशक, औद्योगिक नीति को भी कैबिनेट की मंजूरी

वाराणसीः उत्तर प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बैठक में बुधवार वाराणसी के पुलिस कमिश्नर सिस्टम का दायरा बढ़ाते हुए कमिश्नरेट का विस्तार किया है. इसमें लखनऊ और कानपुर भी शामिल हैं, लेकिन बनारस में हाल ही के दिनों में कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने के बाद अब पूरा जिला एक ही सिस्टम से चलेगा. यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर वह कौन सी वजह है जिसे लेकर बनारस पुलिस कमिश्नरेट के प्लान के बाद कैबिनेट की मुहर इसके विस्तार पर लगी है.

दरसअल, उत्तर प्रदेश में मौजूदा समय में 4 ऐसे जिले हैं, जहां कमिश्नरेट सिस्टम लागू है. इनमें नोएडा, लखनऊ, वाराणसी और कानपुर शामिल हैं. लखनऊ और नोएडा में जनवरी 2020 में कमिश्नरेट सिस्टम लागू हुआ था. वहीं, वाराणसी और कानपुर में मार्च 2021 में कमिश्नरेट सिस्टम लागू हुआ था. नोएडा को छोड़कर शेष तीनों अन्य जिलों के ग्रामीण इलाके की पुलिसिंग के लिए ग्रामीण पुलिस की एक अलग यूनिट बनाई गई थी शहरी क्षेत्र की पुलिसिंग व्यवस्था का मुखिया एडीजी स्तर के पुलिस अफसर को बनाया गया था. वहीं, ग्रामीण क्षेत्र की पुलिसिंग व्यवस्था का मुखिया पुलिस अधीक्षक स्तर के अफसर को बनाया गया था.

इस बारे में अधिकारियों का कहना है कि एक रेवेन्यू एक डिस्ट्रिक्ट को दो पुलिस डिस्ट्रिक्ट में बदलने से पब्लिक को तमाम तरीके की दिक्कतें आती हैं. जेल और न्यायालय की व्यवस्था एक ही है. प्रशासन, रेवेन्यू सहित कई अन्य विभागों के अफसर एक ही रहते हैं. सिर्फ पुलिस के अफसर अलग-अलग हो जाते हैं. इस वजह से पब्लिक को दिक्कत होती है. आम आदमी तो लंबे समय तक समझ ही नहीं पाता है कि वह किस अफसर के सामने जाकर अपनी समस्या सुनाए. इसलिए एक रेवेन्यू डिस्ट्रिक्ट में पुलिस का एक तरह का ही सिस्टम काम करना चाहिए.

वीआईपी ड्यूटी और तीज-त्योहारों के दौरान लॉ एंड ऑर्डर के मद्देनजर को-ऑर्डिनेशन में तमाम तरह की दिक्कतें आती हैं. लखनऊ, वाराणसी और कानपुर तीनों ही प्रदेश के अति महत्वपूर्ण शहर हैं. यहां रोजाना वीआईपी ड्यूटी का प्रेशर भी बरकरार रहता है. ऐसे में बेहतर यही है कि एक जिले में पुलिसिंग का एक सिस्टम ही प्रभावी रहे. लखनऊ, वाराणसी और कानपुर में ग्रामीण पुलिस के लिए अभी इंफ्रॉस्ट्रक्चर तैयार किया जाना है. कमिश्नरेट सिस्टम का इंफ्रॉस्ट्रक्चर तैयार करने का काम भी चल ही रहा है. इसके साथ ही कमिश्नरेट सिस्टम में अधिकारियों की संख्या भी पर्याप्त है. इसलिए एक जिले में पुलिसिंग का एक सिस्टम ही बेहतर है.

अपराध पर अंकुश लगाने के लिहाज से भी एक जिले में पुलिसिंग का एक सिस्टम अच्छा है. शहरी क्षेत्र में अपराध करने के बाद बदमाश उससे सटे ग्रामीण इलाकों की ओर रुख करते हुए भागते हैं. कमिश्नरेट और ग्रामीण इलाके की पुलिस के बीच तत्काल अच्छा को-ऑर्डिनेशन न हो पाने से बदमाशों की धरपकड़ में दिक्कत आती है. एक सिस्टम लागू होने से जिले और शहर के एंट्री प्वाइंट्स की पुलिस प्रभावी तरीके से निगरानी कर सकेगी. इसके अतिरिक्त एक कमिश्नरेट व्यवस्था लागू होने से शहर की यातायात व्यवस्था और अपराध के साथ त्यौहार से लेकर अन्य चीजों पर भी निगरानी करना आसान हो जाएगा.

पढ़ेंः बेसिक और माध्यमिक शिक्षा का एक ही होगा महानिदेशक, औद्योगिक नीति को भी कैबिनेट की मंजूरी

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