वाराणसी: बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में जगत के पालन करता भगवान श्री हरि के शालिग्राम रूप का विवाह देवी तुलसी के साथ किया गया. गंगा नदी में स्नान करने के बाद व्रती महिलाओं ने पूरे विधि-विधान से शालिग्राम से देवी तुलसी का विवाह किया. क्योंकि तुलसी वैष्णव के लिए परम आराध्य पौधा है. वाराणसी में देवोत्थान एकादशी पर सभी घाटों पर गंगा नदी में स्नान करने के बाद महिलाओं ने तुलसी का विवाह पूरे विधि-विधान से किया. साथ ही भगवान श्री हरि के रूप शालिग्राम और देवी तुलसी का आशीर्वाद प्राप्त किया.
कैसे हुई तुलसी उत्पत्ति कथा
जब देवता और दानव के बीच समुद्र मंथन हुआ तो उस वक्त मंथन में से कुछ अमृत के कण भूमि पर गिर गए. इसी से तुलसी की उत्पत्ति हुई. उस वक्त ब्रह्मदेव ने तुलसी को भगवान विष्णु को सौंप दिया. तब से तुलसी जी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय हैं. मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा में अगर तुलसी की पत्ती न रखी जाए तो उनकी पूजा पूर्ण नहीं होती. अमृत से उत्पन्न होने के कारण ही तुलसी पाप नाशक और मोक्षदायिनी मानी जाती हैं. यही कारण है कि आयुर्वेद में तुलसी को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है.
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तुलसी उत्पत्ति की दूसरी पौराणिक कहानी
पुराणों में एक और कथा मिलती है. इसमें कहा गया है कि तुलसी नाम की एक गोपी गोलोक में राधा की सखी थी. राधा ने उन्हें कृष्ण के साथ विहार करते देख श्राप दिया कि तुम मनुष्य शरीर धारण कर. श्राप के अनुसार तुलसी धर्म ध्वज राजा की कन्या हुईं. उनकी रूप की तुलना किसी से नहीं हो सकती थी, इसीलिए उनका नाम 'तुलसी' पड़ा. तुलसी ने वन में जाकर घोर तपस्या किया. ब्रह्मा जी से इस प्रकार वर मांगा कि 'मैं कृष्ण की रति से कभी तृप्त नहीं हुई, मैं उन्हीं को पति के रूप में पाना चाहती हूं.' ब्रह्मा के कथानुसार तुलसी का विवाह शंखचूड़ नामक राक्षस से हुआ. शंखचूड़ को वर मिला था कि बिना उसकी स्त्री सतीत्व भंग हुए उसकी मृत्यु नहीं होगी.
कार्तिक की अमावस्या मानी जाती है तुलसी उत्पन्न की तिथि
शंखचूड़ ने जब सभी देवताओं को परास्त कर दिया, तब सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्मा जी के निर्देश के बाद भगवान विष्णु के पास गए. तब मानव कल्याण के लिये भगवान विष्णु ने माया से शंखचूड़ का भेष बदलकर तुलसी का सतीत्व नष्ट किया. जब यह बात तुलसी को पता चली तब उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि 'तुम पत्थर हो जाओ'. फिर जब तुलसी को ज्ञात हुआ कि उसने जगत के पालनहार को श्राप दिया तो वह भगवान से विनती करने लगी. तब भगवान श्री हरि ने कहा तुम यह शरीर छोड़कर लक्ष्मी के सामान मेरी प्रिया होगी. तुम्हारे शरीर से गंडकी नदी और बाल से तुलसी का वृक्ष होगा. तब से बराबर शालिग्राम ठाकुर की पूजा होने लगी. तुलसी दल उनके मस्तक पर चढ़ने लगा. ऐसे में आज एकादशी के दिन कार्तिक मास में तुलसी की पूजा घर-घर होती है. क्योंकि कार्तिक की अमावस्या तुलसी के उत्पन्न होने की तिथि मानी जाती है.
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श्रद्धालु सुमन पांडेय ने बताया कि चार महीने के निद्रा के बाद श्री हरि विष्णु आज उठते हैं. पुराण की कथा के अनुसार मान्यता है कि आज देवी तुलसी से शालिग्राम जी का विवाह होता है. विवाह पूरे रीति-रिवाज से होता है.ढोल नगाड़े के साथ महिलाएं मंगल गीत गाती हैं. सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. मान्यता यह भी है कि बिन तुलसी की भगवान विष्णु की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती.