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काशी में प्राचीन संस्कृति को किया जा रहा जीवंत, भारत समेत 4 देशों से जुटे विद्वान - sampoornanand sanskrit university

काशी में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शास्त्रार्थ का आयोजन किया गया है. कार्यक्रम में नेपाल, भूटान, श्रीलंका समेत कई देशों के विद्वान शामिल हुए है. कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य प्राचीन विद्या के साथ आधुनिक विद्या का समावेश करके कैसे भारत को आगे बढ़ाना है.

काशी का गौरव वापस लाने में जुटी ये यूनिवर्सिटी, दुनिया भर के विद्वान करेंगे शास्त्रार्थ
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Published : Jul 14, 2019, 8:21 AM IST

वाराणसी:धर्म अध्यात्म और संस्कृति की नगरी काशी में वैदिक परंपरा को एक बार फिर जीवंत रखने की पहल की जा रही है. इसके लिए काशी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शास्त्रार्थ का आयोजन किया गया है. इस आयोजन में देश-विदेश के विद्वान विभिन्न विषयों पर एक दूसरे से वैदिक काल के अनुसार शास्त्रार्थ कर रहे हैं.आयोजन में व्याकरण, न्याय, ज्योतिष आदि विषयों पर शास्त्रार्थ किया जा रहा है.

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शास्त्रार्थ का आयोजन किया गया.

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शास्त्रार्थ का आयोजन

  • संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में कार्यक्रम आयोजन हो रहा है.
  • आयोजन में नेपाल, भूटान, श्रीलंका समेत कई देशों के विद्वान कार्यक्रम में शामिल हुए है.
  • आयोजन में व्याकरण, न्याय, ज्योतिष आदि विषयों पर शास्त्रार्थ किया जा रहा है.
  • व्याख्या सभा के साथ-साथ तीन दिवसीय संगोष्ठी संस्कृत वादन और मित्रविंदा भी आयोजन किया जा रहा है.
  • प्राचीन विद्या के साथ आधुनिक विद्या का समावेश करके कैसे भारत को आगे बढ़ाया जाए इस पर परिचर्चा की जा रही है.


    वैदिक काल से ऋषि मुनियों की गुरुकुल परंपरा के अनुरूप छात्रों के बीच शास्त्रार्थ परंपरा होती थी, जो आधुनिक काल में धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है. उसी परंपरा को जीवित करने के लिए इस यात्रा का आयोजन किया गया है. आज कई ऐसे विषय हैं जिस के प्रचार प्रसार में करोड़ों का खर्च हो रहा है जैसे स्वच्छता अभियान, जबकि प्राचीन विद्या में बाल काल से ही सिखाया जाता है. स्वच्छता रखना है. खाने से पहले हाथ पैर धोने हैं. भारतीय संस्कृति पूर्णरूपेण जीवित हो जाए इसलिए इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है.
    डॉ. दिव्य चैतन्य ब्रम्हचारी, अध्यापक

वाराणसी:धर्म अध्यात्म और संस्कृति की नगरी काशी में वैदिक परंपरा को एक बार फिर जीवंत रखने की पहल की जा रही है. इसके लिए काशी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शास्त्रार्थ का आयोजन किया गया है. इस आयोजन में देश-विदेश के विद्वान विभिन्न विषयों पर एक दूसरे से वैदिक काल के अनुसार शास्त्रार्थ कर रहे हैं.आयोजन में व्याकरण, न्याय, ज्योतिष आदि विषयों पर शास्त्रार्थ किया जा रहा है.

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शास्त्रार्थ का आयोजन किया गया.

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शास्त्रार्थ का आयोजन

  • संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में कार्यक्रम आयोजन हो रहा है.
  • आयोजन में नेपाल, भूटान, श्रीलंका समेत कई देशों के विद्वान कार्यक्रम में शामिल हुए है.
  • आयोजन में व्याकरण, न्याय, ज्योतिष आदि विषयों पर शास्त्रार्थ किया जा रहा है.
  • व्याख्या सभा के साथ-साथ तीन दिवसीय संगोष्ठी संस्कृत वादन और मित्रविंदा भी आयोजन किया जा रहा है.
  • प्राचीन विद्या के साथ आधुनिक विद्या का समावेश करके कैसे भारत को आगे बढ़ाया जाए इस पर परिचर्चा की जा रही है.


    वैदिक काल से ऋषि मुनियों की गुरुकुल परंपरा के अनुरूप छात्रों के बीच शास्त्रार्थ परंपरा होती थी, जो आधुनिक काल में धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है. उसी परंपरा को जीवित करने के लिए इस यात्रा का आयोजन किया गया है. आज कई ऐसे विषय हैं जिस के प्रचार प्रसार में करोड़ों का खर्च हो रहा है जैसे स्वच्छता अभियान, जबकि प्राचीन विद्या में बाल काल से ही सिखाया जाता है. स्वच्छता रखना है. खाने से पहले हाथ पैर धोने हैं. भारतीय संस्कृति पूर्णरूपेण जीवित हो जाए इसलिए इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है.
    डॉ. दिव्य चैतन्य ब्रम्हचारी, अध्यापक

Intro:वाराणसी। धर्म अध्यात्म और संस्कृति की नगरी काशी में वैदिक परंपरा को एक बार फिर जीवंत करने की पहल की जा रही है। वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय शास्त्रार्थ का आयोजन किया गया है। इस आयोजन में देश विदेश के विद्वान विभिन्न विषयों पर एक दूसरे से वैदिक काल के अनुसार शास्त्रार्थ कर रहे हैं। ये आयोजन देश की आजादी के बाद पहली बार आयोजित किया गया है, जिसमें संस्कृत के विद्वान शामिल हुए हैं। इस शास्त्रार्थ में नेपाल, भूटान, श्री लंका, म्यानमार के साथ साथ भारत देश के दक्षिण से लेकर उत्तर तक कई विद्वान भाग ले रहे हैं।


Body:VO1: काशी के संपूर्णानंद विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय शास्त्रार्थ के आयोजन के बारे में बताया गया कि भारतीय शिक्षण मंडल गुरुकुल शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा बनाने की दिशा में गुरुकुल परंपरा को स्थापित कर उसको माध्यम से गुरुकुलओं को संगठन नूतन गुरुकुल की स्थापना और आचार्य शिक्षण का कार्य किया जा रहा है। गुरुकुल शिक्षा के एक बार फिर से उत्थान के इस कार्य में शास्त्रीय व्याख्या अर्थ परंपरा को पुनर्जीवित कर करने की पहल की गई है, जिसे लेकर विद्वता की नगरी काशी में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और अकादमी के तत्वधान त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय वाक्यार्थ सभा का आयोजन किया गया है। इस सभा में नेपाल, भूटान और भारत के 100 से भी अधिक शास्त्र विद्वान शामिल हुए हैं। व्याख्या सभा के साथ-साथ 3 दिवसीय संगोष्ठी संस्कृत वादन और मित्रविंदा आयोजित है इस आयोजन में शास्त्र क्या है, व्याकरण, न्याय, ज्योतिष आदि विषयों पर शास्त्रार्थ हो रहा है। अध्यापक प्राचीन विद्या के साथ आधुनिक विद्या का समावेश करके कैसे भारत को आगे बढ़ाया जाए इस पर परिचर्चा कर रहे हैं।

बाइट: साकेत शुक्ला, अध्यापक

Regards
Arnima Dwivedi
Varanasi
7523863236


Conclusion:काशी में संस्कृत के विद्वान और अध्यापक डॉक्टर दिव्य चैतन्य ब्रह्मचारी ने बताया की वैदिक काल से ऋषि मुनियों की गुरुकुल परंपरा के अनुरूप छात्रों के बीच शास्त्रार्थ परंपरा होती थी जो आधुनिक काल में धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है उसी परंपरा को जीवित करने के लिए इस यात्रा का आयोजन किया गया है दिव्य चैतन्य ब्रह्मचारी की माने तो इस परंपरा के जीवन तूने से हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक वैदिक विचार एक बार फिर से बढ़ेंगे अगर हमारी प्राचीन विद्या को फिर से जीवंत किया जाए तो आज कई ऐसे विषय हैं जिस के प्रचार प्रसार में करोड़ों का खर्च हो रहा है जैसे स्वच्छता जबकि प्राचीन विद्या में बाल काल से ही सिखाया जाता है स्वच्छता रखना है खाने से पहले हाथ पैर धोने हैं भारतीय संस्कृति पूर्णरूपेण जीवित हो जाए इसलिए इस छात्रा को करवाया जा रहा है।

बाइट: डॉ दिव्य चैतन्य ब्रम्हचारी, अध्यापक
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