वाराणसी: पूर्वांचल में भले ही ठंड बढ़ रही हो, लेकिन वाराणसी के सांसद व देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को एक बार फिर मंच से गाय हमारे लिए पूजनीय है कहकर सूबे की सियासत में गर्माहट ला दी है. ऐसे में उत्तर प्रदेश में एक बार फिर सियासी मुद्दा गाय, गंगा और मंदिर हो गया. खैर, इन सियासी बातों से हटकर हम गाय को लेकर एक अच्छी खबर बताने जा रहे हैं. गुजरात की गीर गाय का पालन अब वाराणसी में गौशाला प्रेमी कर रहे हैं. यहां के लोगों को भी इस गाय का दूध, दही और मक्खन खासा पसंद आ रहा है. वाराणसी जिले में लगभग विभिन्न गौशालाओं में करीब 200 से अधिक संख्या में गीर गाय का पालन किया जा रहा है.
वहीं, वाराणसी शहर से करीब 8 किलोमीटर दूर स्थित रमना गांव के निवासी व गौ पालक हरेंद्र पटेल ने करीब 40 गीर गाय पाल रखे हैं. वहीं, ईटीवी भारत की टीम गीर गायों के पालक व गौशाला की व्यवस्थाओं की देखरेख को जानने के लिए रमना गांव पहुंची. वहीं, बताया गया कि यह वाराणसी का सबसे अधिक गीर गाय रखने वाला गौशाला है तो वहीं, दूसरे गौशालाओं में भी एक बार फिर गीर गाय की मांग बढ़ी है.
यही कारण है कि अब काशीवासी भारी संख्या में गुजरात से गीर गायों को मंगवा रहे हैं. आपको बता दें गीर गाय एक दिन में 25 लीटर तक दूध दे सकती है. लेकिन थोड़ी उम्र बढ़ जाने पर कम से कम 12 लीटर तक दूध देती है. गौशालाओं में इन्हें बांधकर कम रखा जाता है. ज्यादा समय इन्हें एक खुले स्थान पर छोड़ दिया जाता है. वाराणसी में इनके सांड भी तैयार किए जा रहे हैं, जो आगे गीर गाय की नस्ल को बढ़ाएंगे.
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दो गाय से शुरू किया सफर
हरेंद्र प्रताप ने बताया कि छोटे-बड़े मिलाकर उनके पास 30 गीर गए हैं. सात और गाय गुजरात से मंगाया है. गायों के साथ मेहनत बहुत करना पड़ता है. लेकिन उनका शौक है. वहीं, गंगा तिरी गाय और इसमें ज्यादा फर्क नहीं होता. दोनों ही देशी गाय हैं. ये उनसे बड़ी होती है. इनके सिंह भी काफी बड़े होते हैं. प्रोटीन की बात करें तो दोनों गायों में बराबर पाया जाता है. आज से लगभग 3 साल पहले हमने दो गाय मंगाए थे. लेकिन इंटरेस्ट बढ़ता गया तो और गाय मनाया जा रहा है. इन गायों की दूध को बनारस के लोग भी पसंद कर रहे हैं. शहरी क्षेत्रों में यह दूध 100 रुपये प्रति लीटर बिक जाता है. वहीं, इनके एक महीने का खर्च 40 से 45 हजार रुपये तक आता है.
![वाराणसी के गौपालकों को भा रही गुजरात की गीर गाय](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/up-var-1-neer-cow-vis-with-byte-up10036_24122021091326_2412f_1640317406_359.jpg)
हिमांशु राज पांडेय ने बताया कि गीर गाय को लेकर यहां के लोगों में आज से कुछ वर्ष पहले इंटरेस्ट पैदा हुआ था. शहर में एक या दो गौशाला में 2 या 4 की संख्या में गीर गाय हुआ करती थी. वैश्विक महामारी के दौर में गीर गाय का दूध, दही और घी अमृत की तरह फायदा किया. इसलिए गीर गाय की दूध की मांग बढ़ गई है. जिन्होंने प्रत्येक दिन प्रति नियम से इसका ग्रहण किया वे स्वास्थ्य थे. कई रिसर्च में यह भी पाया गया कि दूध और गोमूत्र में स्वर्ण अर्क भी पाया जाता है, जो कैंसर जैसी जटिल बीमारी को ठीक करने में सहायक होता है.
गुजरात से वाराणसी आई गीर गाय
वाराणसी के वो गौ पालक जो गीर गाय को यहां पाल रहे हैं कि टीम गुजरात व राजस्थान गए. गुजरात के जूनागढ़ में एक गांव है, जिसका नाम गीर है. वहां से गाय यहां लाई गई हैं. आश्चर्य की बात यह है कि गीर गाय के दूध की बनारस में कमी है. बावजूद इसके शहर व ग्रामीण इलाकों के गौशालाओं में करीब 200 गीर गाय हैं. अन्य गौशालाओं में केवल 6 से 7 गीर गाय है.
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