वाराणसी: कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या मंगलवार के दिन 25 अक्टूबर 2022 को जो ग्रहण पड़ेगा. उसकी कुल अवधि 40 मिनट की होगी. इसमें ग्रहण का सूतक 12 घंटे पूर्व अर्थात 25 तारीख को 4:29 सुबह पर लग चुका है. ग्रहण का स्पर्श 25 तारीख को दिन में शाम 4:29 पर होगा. ग्रहण का मध्य 5:14 पर होगा एवं ग्रहण का मोक्ष राशि के हिसाब से 5:42 मिनट पर होगा. यह ग्रहण विशेष तरह से स्वाति नक्षत्र पर लग रहा है. इसलिए तुला राशि वालों के लिए बहुत ही अशुभ माना गया है. अतः उन्हें यह ग्रहण का दर्शन नहीं करना चाहिए.
इस बारे में आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने बताया कि 26 अक्टूबर को बुध ग्रह तुला राशि में प्रवेश करेंगे. यहां पर सूर्य, शुक्र और केतु पहले से विराजमान रहेंगे. इससे तुला राशि में ग्रहण शुभ नहीं माना जाता. वहीं, दिवाली के पहले मंगल मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे और शनि मकर राशि में मार्गी होंगे. सूर्य तुला राशि पर है जो सूर्य की नीच राशि है और राजनीतिक उथल-पुथल नई-नई संक्रमित बीमारियां साथ साथ में अत्याधिक बरसात और विश्व स्तर पर उतार चढ़ाव हो सकता है.
जानते हैं राशि के अनुसार किस राशि वालों के लिए कैसा रहेगा ग्रहण
मेष: मेष राशि जातकों के लिए स्त्री का कष्ट है एवं स्त्री वर्ग से हानि है.
वृष: वृष राशि वालों के लिए यह ग्रहण मध्य मस्त है किंतु चिंताजनक है.
मिथुन: इस राशि वाले जातकों के लिए यह ग्रहण जनता से युक्त एवं अशुभ है.
कर्क: इस राशि वाले जातकों के लिए यह ग्रहण व्यथा से युक्त है सिंह राशि वाले जातकों के लिए यह ग्रहण श्री संयुक्त है अर्थात कुछ लाभ कर है.
कन्या: इस राशि वाले जातकों के लिए यह ग्रहण छति दायक है
तुला: इस राशि वालों के लिए यह ग्रहण का दृश्य नहीं करना चाहिए उन्हें कष्ट से युक्त है
वृश्चिक: इस राशि वाले जातकों के लिए यह ग्रहण हानिकारक है
धनु: इस राशि वाले जातकों के लिए यह ग्रहण किंचित लाभप्रद है, मकर राशि वालों के लिए यह ग्रहण सुख कर है
कुंभ: इस राशि वाले जातकों के लिए इसमें मांन की हानि है मीन राशि वाले जातकों के लिए यह ग्रहण मृत्यु समतुल्य कष्टदायक है
सिंह: इस राशि वाले जातकों के लिए यह ग्रहण श्री संयुक्त है अर्थात कुछ लाभ कर हैं.
मकर: इस राशि वालों के लिए यह ग्रहण सुख कर है.
मीन: इस राशि वाले जातकों के लिए यह ग्रहण मृत्यु समतुल्य कष्टदायक है.
ग्रहण काल में क्या करें, क्या न करें
ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना, सोना, केश विन्यास करना, रति क्रीड़ा करना, मंजन करना, वस्त्र निचोड़ना, ताला खोलना वर्जित है. ग्रहण लगने से पूर्व स्नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करना चाहिए.
भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं चंद्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख ग्रहण के समय सोने से रोग पकड़ता है. लघुशंका करने से घर में दरिद्रता आती है, मल त्यागने से पेट में कृमि रोग पकड़ता है. स्त्री प्रसंग करने से सूअर की योनि मिलती है और मालिश या उबटन किया तो व्यक्ति कुष्ठ रोगी होता है. ग्रहण काल में किया हुआ जप अनंत गुना फलदायी होता है. ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप करे. मंत्र जाप न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है. ग्रहण समाप्त हो जाने पर स्नान करके ब्राम्हण को दान करने का विधान है.
देवी भागवत में आता है कि सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है. उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है. फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है. ग्रहण के बाद पुराना पानी, अन्न नष्ट कर नया भोजन पकाया जाता है और ताजा भरकर पीया जाता है. ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण उसका शुद्ध बिंब देखकर भोजन करना चाहिए. ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए.
सूर्यग्रहण में ग्रहण से 4 प्रहर पूर्व एक प्रहर 3 घंटे का होता है. इस हिसाब से 12 घंटे पूर्व और चंद्रग्रहण में 3 प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए (1 प्रहर 3 घंटे) । बूढ़े, बालक और रोगी एक ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, प्रहर पूर्व खा सकते हैं। ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ना चाहिए. वस्त्रदान देने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है. गर्भवती स्त्रियों के लिये विशेष सावधानी गर्भवती स्त्री को सूर्य और चंद्रग्रहण नहीं देखना चाहिए.
स्कंद पुराण के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे क्योंकि उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन जाता है. गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है. इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहु का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है. ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए.
सूर्य व चंद्र ग्रहण के समय मनुष्य के पेट की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है. इसके कारण इस समय किया गया भोजन अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें पैदा कर शारीरिक या मानसिक हानि पहुंच सकती है. ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियां डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते हैं पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र किया जा सकता है.
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