वाराणसी: गौरैया जिसे हम अपने छुटपन की संगिनी कहते हैं, जिसको देखते ही बचपन के वो दिन जहन में आते हैं, जब हम सुबह-सुबह उठकर इनसे बाते किया करते थे. वहीं वो पल भी याद आते हैं जब स्कूल से वापस आते हमारी शाम इनके चहचहाहट को सुनकर ही बीतती थी.
गौरैया को भूल रहे लोग
विकास की रफ्तार में बढ़ते-बढ़ते लोग इतने आगे आ गए कि अपने छुटपन की संगिनी को भूल गए. विकास की गति में अपना योगदान देने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण गौरैया धीरे-धीरे विलुप्त होने लगी है. सुबह-सुबह जहां इनके चहकने की आवाज से लोगों की आंखें खुलती थी. वहां अब इनके न होने से खामोशी सुनाई देती है.
कई कवायदों के बाद भी गुम हो रही गैरैया
गौरैया को बचाने के लिए बहुत सारी कवायद की जा रही है. मगर फिर भी गौरैया दूर जाती नजर आ रही हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में रहने वाले एक परिवार ने इन गौरैया के संरक्षण का जो बीड़ा उठाया है वह बेहद ही सराहनीय है.
16 साल से इंद्रपाल कर रहे गौरैया का संरक्षण
बता दें कि वाराणसी के गुरुबाग इलाके में रहने वाले इंद्रपाल सिंह बत्रा का परिवार पिछले 16 सालों से गौरैया के संरक्षण में अपना योगदान दे रहा है. विकास के दौर में भी उन्होंने अपने घर में गौरैया के रहने का ठिकाना बनाया है, जहां एक दो नहीं बल्कि 100 ऐसे ठिकाने हैं, जिसमें लगभग ढ़ाई हजार गौरैया निवास करती हैं.
टेरेस को बना डाला गार्डन
गौरतलब है कि गौरैया एक घरेलू चिड़िया मानी जाती है. इसे ऐसा घरेलू माहौल चाहिए होता है, जहां यह खुद को सुरक्षित महसूस कर सके. यह बड़े-बड़े बिल्डिंगों की अपेक्षा हरियाली में रहना ज्यादा पसंद करती है. यही देखते हुए इस परिवार ने अपने टेरेस को गार्डन बना दिया और पूरे घर में जगह-जगह पेड़ पौधे सजा दिए, जिससे गौरैया यहां आकर के बेफिक्र होकर के रह सके. यहां रहने वाली गौरैया बेफिक्री के साथ रहती भी है.
ढ़ाई हजार गैरैयों की सुनाई देती है चहचहाहट
सबसे आश्चर्य करने वाली बात ये है कि वाराणसी के अन्य हिस्सों में इनके चहकने की आवाज इतनी नहीं आती, जितना इस क्षेत्र से आती है. यहां एक किलोमीटर की परिधि में रहने वाली गौरैया यही निवास करती है.
गौरैयों को बचाने के लिए कर रहे काम
ईटीवी भारत से खास बातचीत में गौरैया का संरक्षण करने वाले इंद्रपाल सिंह बत्रा ने बताया कि वे पिछले 15- 16 सालों से विलुप्त होती गौरैया का ध्यान रखते हैं. शुरू में उनके यहां पक्षियों का जमावड़ा होता था, लेकिन जैसे-जैसे यहां कॉलोनी का विकास होता गया वैसे-वैसे पक्षियों के गायबन होती गई.
वे बताते हैं कि उन्हें हमेशा से पक्षियों को दाना खिलाने का शौक था, लेकिन बाद में जब ये गायब होने लगी तो उन्होंने डिस्कवरी चैनल देखा और अन्य लोगों से साझा करके गमले लगाने की तकनीक ढूंढ़ निकाली. इसके बाद उन्होंने अपने घर में लगभग 100 गमले वाले घोसले लगाएं और सुबह शाम इनको दाना देने लगा.
इसके बाद से धीरे-धीरे करके लगभग ढ़ाई हजार गौरैया यहां आती है और दाना चुगती हैं. उन्होंने बताया कि पहले थोड़ा सा मुश्किल होता था, लेकिन अब आदत सी हो गई है. ऐसा लगता है कि यह भी उनके परिवार का हिस्सा है. उन्होंने बताया कि जैसे मनुष्य एक दूसरे से बात करते हैं, वैसे यह भी अपनी भाषा में बातें करती हैं.
गौरैया से लगाव
वहीं इंद्र पाल सिंह बत्रा की बेटी अमृता बत्रा ने बताया कि वे पिछले 3-4 सालों से गौरैया के साथ ज्यादा घुली मिली है. उन्हें बहुत अच्छा लगता है. अब उनको इनकी आदत हो गई है. उनका कहना है कि उन्हें गौरैया को टाइम टू टाइम उनको खाना खिलाने और उनका ध्यान रखने में अच्छा लगता है. उन्होंने बताया कि इनको बिस्किट और ककुनी खाना ज्यादा पसंद हैं और हर दो 2 घंटे पर इनको दाना दिया जाता है.
मजे की बात तो यह है कि इंद्रपाल सिंह को यहां आने वाले टूरिस्ट चिरैया बाबा के नाम से जानते हैं. बता दें कि जो भी टूरिस्ट बनारस आते हैं उनमे से लगभग लोग अपने टूरिस्ट गाइड की मदद से यहां गौरैया से मिलने जरूर आते हैं. टूरिस्ट गाइड के लोगों ने ही उनका नाम चिरैया बाबा रख दिया है.