वाराणसी: काशी की बात निराली है. इस शहर में आज भी एक नहीं, दो राजा बसते हैं. आपको आश्चर्य हो रहा होगा, लेकिन यह सच है. काशी में गंगा उस पार और गंगा इस पार दो अलग-अलग राजा बसते हैं. काशी नरेश को एक तरफ जहां भगवान शंकर की संज्ञा दी जाती है तो वहीं गंगा इस पार रहने वाले लोगों को मुक्ति दिलाने वाले डोमराज परिवार के मुखिया को भी राजा माना जाता है. मंगलवार सुबह डोमराज परिवार के मुखिया जगदीश चौधरी का निधन हो गया. लंबे वक्त से पैर में घाव के बाद अस्पताल में भर्ती जगदीश चौधरी इंफेक्शन फैलने की वजह से दुनिया छोड़कर चले गए, लेकिन महत्वपूर्ण यह हो जाता है कि आखिर उनका दुनिया से जाना क्यों सुर्खियों में बना हुआ है.
क्यों सुर्खियों में हैं डोमराज परिवार के मुखिया
डोमराज परिवार के मुखिया जगदीश चौधरी के सुर्खियों में बने होने के पीछे की बड़ी वजह दो है. एक तो पौराणिक दृष्टि से डोमराज परिवार के मुखिया होने के नाते काफी वे महत्वपूर्ण व्यक्ति थे और दूसरा साल 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबको दरकिनार कर उन्हें अपना प्रस्तावक बनाया था.
दरअसल, वाराणसी में दो महाश्मशान हैं. एक मणिकर्णिका घाट और दूसरा हरिश्चंद्र घाट. इन दोनों घाटों पर शवों का दाह संस्कार करने की जिम्मेदारी डोमराज परिवार की है. लगभग 500 से 600 की संख्या में मौजूद परिवार इन घाटों की व्यवस्था को संभालते हैं. इन सबकी देखरेख डोमराज परिवार के मुखिया ही करते हैं. जगदीश चौधरी भी यह पूरी कमान बीते लंबे वक्त से संभाल रहे थे.
लोकसभा चुनाव में बने थे पीएम मोदी के प्रस्तावक
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अचानक से जब प्रधानमंत्री मोदी ने जगदीश चौधरी को अपना प्रस्तावक बनाने की घोषणा की तो उम्मीद जगी कि डोमराज परिवार की स्थितियां बदल जाएंगी. अब समाज में उन्हें सिर उठा कर जीने का मकसद मिलेगा, लेकिन शायद यह चीजें संभव नहीं हो पाई. प्रस्तावक बनने के बाद जगदीश चौधरी ने भी खुशी जाहिर की थी कि प्रधानमंत्री के प्रयास से उनकी जाति और उससे जुड़े लोगों की जिंदगी में बड़ा बदलाव आएगा, लेकिन क्या ऐसा संभव हुआ. यह सोचने वाली बात है. क्योंकि परिवार के सदस्यों का अभी भी यही कहना है कि हालात वैसे ही हैं, जैसे हुआ करते थे.
परिवार की हालात में नहीं हुआ कोई सुधार
डोमराजा के भांजे लालू चौधरी ने बताया कि अभी कभी-कभी मंत्री और अधिकारी आते हैं और हाल चाल लेते हैं. पहले से स्थिति थोड़ी बदली है, लेकिन बहुत बदलाव नहीं हुआ है. घर की खस्ता हालत पहले भी थी और आज भी है.
क्या है पुरानी मान्यता
कथानक के मुताबिक डोम परिवार के पुरखे कालू डोम ने सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र को श्मशान घाट पर खरीद कर डोमराजा की पदवी पाई थी. आज भी गंगा इस पार मीर घाट इलाके में शेर वाली कोठी डोमराज परिवार की शान कही जाती है. इसके अलावा कथानक यह भी है कि डोमराज परिवार के आदि पूर्वज जन्मना ब्राह्मण थे. भगवान शिव के कोप से ही उन्हें चांडाल कर्म को बाध्य होना पड़ा.
आज भी जल रही अखंड धूनी
कहा जाता है कि महादेव ने स्वयं कहा 'मेरे तारक मंत्र से मोक्ष के अधिकारी बने किसी भी जीव की आत्मा मुझमें तभी एकाकार होगी जब उसकी नश्वर देह की मुखाग्नि के लिए अग्नि डोम परिवार के किसी सदस्य द्वारा प्रदान की जाए.' इस निमित्त उन्होंने मोक्ष तीर्थ मणिकर्णिका पर एक मंडप में अखंड धूनी की स्थापना भी स्वयं अपने हाथों से की, जो आज भी जल रही है.
पुराणों में है वर्णन
विश्वनाथ मंदिर के महंत कुलपति तिवारी ने बताया कि काशी में सदैव से दो राजा रहे हैं. पहले, जिन्हें हम काशी विश्वनाथ के नाम से जानते हैं और दूसरे डोम राजा. डोमराजा और काशी का बड़ा पुराना संबंध है. जिस प्रकार से भगवान विश्वनाथ मनुष्यों के जीवन यापन में मददगार होते हैं. ठीक उसी प्रकार डोमराजा काशी में मानव जीवन के अंतिम नैया को पार लगाते हैं. उनके द्वारा दी गई अग्नि से ही मनुष्य अपने पिता व अन्य संबंधों को मुखाग्नि देता है, जिससे कि उनका शिवलोक गमन होता है. इनका वर्णन अनादि काल से है. पुराणों व धर्म ग्रंथों में भी इनका वर्णन मिलता है.
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