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विश्वकर्मा जयंती विशेष: काशी की खास कला है वुड कार्विंग, जिसकी दुनिया है दीवानी

17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है. इस दिन शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है. शिल्प और शिल्पकारी की बात करें तो भला काशी का नाम कैसे पीछे रह सकता है. काशी की विभिन्न कलाओं के साथ-साथ काष्ठ कला की भी अपनी अलग पहचान है. यहां के शिल्पी बेजान लकड़ी में भी अपने हुनर से जान डाल देते हैं.

विश्वकर्मा जयंती विशेष
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Published : Sep 17, 2021, 9:16 AM IST

Updated : Sep 17, 2021, 2:00 PM IST

वाराणसी: भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का रचनाकार शिल्पकार माना जाता है. मान्यता है कि आज ही के दिन यानि 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था. पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रृष्ट्रि के रचना ब्रह्मा जी ने की और उस श्रृष्ट्रि को सुंदर मनोहारी बनाने का काम विश्वकर्मा जी ने किया, और जब सुंदर मनोहारी रचना की बात हो तो देवनगरी काशी का नाम बरबस मन में आ ही जाता है. काशी की कलाएं अप्रतिम. वैसे तो काशी में आपको तरह तरह की कलाएं देखने समझने को मिल जाएंगी. मगर यहां की काष्ठ कला अपनी अलग पहचान रखता है. यहां के शिल्पी बेजान लकड़ी में भी अपने हुनर से जान डाल देते हैं. यही वजह है कि पूरी दुनिया काशी के काष्ठ कला की दीवानी है.

आज हम बात कर रहे हैं काशी की ऐसी ही एक खास काष्ठ कला वुड कार्विंग की, जिसकी अपनी अलग पहचान है. इस कला में कई ऐसे कारीगर हैं जो अपनी कई पीढ़ियों से इस कला को निखारने में लगे हुए हैं. यही वजह है कि पीएम मोदी ने भी इस कला के कलाकारों की सराहना की है. आइए जानते हैं क्या है काशी की ये खास कला.

विश्वकर्मा जयंती विशेष: काशी की खास कला हैं वुड कार्विंग






काशी की खास कला हैं वुड कार्विंग

काष्ठ शिल्प कला की जब भी बात होती है तो उसमें वुड कार्विंग की बारीक कला का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. शिल्पी द्वारा कैमा की लकड़ी को अद्भुत तरीके से एक स्वरूप देने का काम किया जाता है. खास बात यह है कि इसमें लकड़ी को बिना किसी मशीन के द्वारा काटे इस पर अलग अलग तरीके की आकृति उकेरी जाती है, यदि इसमें हाथी या घोड़े बनाए जाते हैं तो उसके अंदर छोटे-छोटे कई सारे हाथी घोड़े बनाए जाते हैं. वह भी लकड़ी को बिना काटे. यही वजह है कि इस कलाकृति का डंका पूरे दुनिया में बचता रहा है. खासकर बुद्धिस्ट यूरोप देशों की बात करें तो यहां पर लॉर्ड बुद्धा के विभिन्न मुद्राओं वाली मूर्तियों के साथ बिना जोड़े एक ही लकड़ी में हाथी के ऊपर कई हाथी, खूबसूरत स्मोकिंग पाइप, तिरंगे के साथ पेन स्टैंड, अशोक स्तम्भ तथा इंटीरियर डेकोरेशन से जुड़ी चीजों की डिमांड बेहद ज्यादा रहती है. यही वजह है कि 50 रुपये से लेकर के लगभग साढ़े 6 लाख तक वुड कार्विंग की कलाकृति को बेचा गया है.


कारीगर बढ़ा रहे इसकी खूबसूरती

काशी के कारीगर इस कला में खुद को समर्पित करके उसकी खूबसूरती बढ़ा रहे हैं. इन्हीं में से एक शिल्पकार है वाराणसी के लहरतारा में रहने वाले प्रेम शंकर विश्वकर्मा. यह बीते 70 सालों से वुड कार्विंग का काम कर रहे हैं. इनकी नई पीढ़ियां भी इस काम में समर्पित है. बता दे कि यह वुड कार्विंग के जरिए अलग अलग तरीके की कलाकृति को करते हैं. इनकी कलाकृति इतनी खूबसूरत है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें तीन बार सम्मानित किया. प्रेम शंकर विश्वकर्मा बताते हैं कि उनकी सांसें वुड कार्विंग में बसती है, वह बीते कई सालों से वुड कार्विंग का काम करते हैं. वर्तमान में उन्होंने बाबा विश्वनाथ के मॉडल व प्रधानमंत्री व उनकी मां के चित्र को बनाया था,जो लोगों को खूब पसंद आया. उन्होंने बताया कि यह खास तरीके की कला होती है. खास बात यह है कि इसमें किसी भी तरीके के केमिकल का प्रयोग नहीं होता बल्कि लकड़ी पर अलग-अलग कलाकृति को बनाया जाता है और उसके बाद मोम से पॉलिश कर दिया जाता है.

कोरोना ने तोड़ा हौसला लेकिन अभी भी है उम्मीद

संदीप बताते हैं कि कोरोना वायरस ने हमारे व्यवसाय को पूरी तरीके से खत्म कर दिया. क्योंकि हमारा व्यवसाय लगभग 80 प्रतिशत पर्यटकों पर निर्भर है. कोरोना वायरस बाद से काशी में पर्यटकों का आवागमन बेहद कम हो गया, जिसके वजह से हमारा व्यवसाय भी बिल्कुल ठप है. हमारे सामने एक बड़ा संकट भी खड़ा हो गया है, लेकिन हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में जब देव दीपावली व अन्य त्योहारों पर काशी में पर्यटकों का आगमन होगा, तो हमारा व्यवसाय भी पटरी पर लौटेगा. आगामी त्योहारों से हमें उम्मीद है और इसी उम्मीद के साथ हम काम कर रहे हैं कि आने वाले दिन हमारे लिए बेहतर होगा.

सरकार उपलब्ध कराए बाजार का प्लेटफार्म

वुड कार्विंग से जुड़े संदीप विश्वकर्मा बताते हैं कि हमारे पूर्वज वुड कार्विंग का काम करते आए हैं, लेकिन अब तक वह पहचान नहीं मिल पाई जो पहचान मिलनी चाहिए थी. हम बहुत मेहनत से इस कलाकृति को बनाते हैं, लेकिन उसके लिए हमें बाजार बेहतर नहीं मिल पाता, सरकार को एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का बाजार उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे शिल्पी बिना किसी समस्या के अपने उत्पादों की बिक्री कर सकें. क्योंकि बाजार के अभाव में कहीं न कहीं हमारी कलाकृति मरती जा रही है.

वुड कार्विंग की जीआई प्रक्रियाधीन

बता दें कि हाथी के दांत पर कलाकारी बंद होने के बाद लगभग डेढ़ सौ साल पहले चंदन की लकड़ी पर कार्विंग का काम किया जाता था, लेकिन इस पर भी प्रतिबंध के बाद कैमा की लकड़ी पर यह काम शुरू हुआ. इसको लेकर जीआई प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है लेकिन अभी तक इसे पूर्ण रूप से जीआई टैग नहीं मिला है. बता दें कि पूर्वांचल में बनारसी साड़ी, भदोही कालीन, मिर्जापुरी दरी, लकड़ी खिलौना, गुलाबी मीनाकारी, सॉफ्ट स्टोन क्राफ्ट, वॉल हैंगिंग, निजामाबाद ब्लैक पॉटरी इत्यादि को जीआई टैग मिल चुका है.

वाराणसी: भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का रचनाकार शिल्पकार माना जाता है. मान्यता है कि आज ही के दिन यानि 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था. पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रृष्ट्रि के रचना ब्रह्मा जी ने की और उस श्रृष्ट्रि को सुंदर मनोहारी बनाने का काम विश्वकर्मा जी ने किया, और जब सुंदर मनोहारी रचना की बात हो तो देवनगरी काशी का नाम बरबस मन में आ ही जाता है. काशी की कलाएं अप्रतिम. वैसे तो काशी में आपको तरह तरह की कलाएं देखने समझने को मिल जाएंगी. मगर यहां की काष्ठ कला अपनी अलग पहचान रखता है. यहां के शिल्पी बेजान लकड़ी में भी अपने हुनर से जान डाल देते हैं. यही वजह है कि पूरी दुनिया काशी के काष्ठ कला की दीवानी है.

आज हम बात कर रहे हैं काशी की ऐसी ही एक खास काष्ठ कला वुड कार्विंग की, जिसकी अपनी अलग पहचान है. इस कला में कई ऐसे कारीगर हैं जो अपनी कई पीढ़ियों से इस कला को निखारने में लगे हुए हैं. यही वजह है कि पीएम मोदी ने भी इस कला के कलाकारों की सराहना की है. आइए जानते हैं क्या है काशी की ये खास कला.

विश्वकर्मा जयंती विशेष: काशी की खास कला हैं वुड कार्विंग






काशी की खास कला हैं वुड कार्विंग

काष्ठ शिल्प कला की जब भी बात होती है तो उसमें वुड कार्विंग की बारीक कला का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. शिल्पी द्वारा कैमा की लकड़ी को अद्भुत तरीके से एक स्वरूप देने का काम किया जाता है. खास बात यह है कि इसमें लकड़ी को बिना किसी मशीन के द्वारा काटे इस पर अलग अलग तरीके की आकृति उकेरी जाती है, यदि इसमें हाथी या घोड़े बनाए जाते हैं तो उसके अंदर छोटे-छोटे कई सारे हाथी घोड़े बनाए जाते हैं. वह भी लकड़ी को बिना काटे. यही वजह है कि इस कलाकृति का डंका पूरे दुनिया में बचता रहा है. खासकर बुद्धिस्ट यूरोप देशों की बात करें तो यहां पर लॉर्ड बुद्धा के विभिन्न मुद्राओं वाली मूर्तियों के साथ बिना जोड़े एक ही लकड़ी में हाथी के ऊपर कई हाथी, खूबसूरत स्मोकिंग पाइप, तिरंगे के साथ पेन स्टैंड, अशोक स्तम्भ तथा इंटीरियर डेकोरेशन से जुड़ी चीजों की डिमांड बेहद ज्यादा रहती है. यही वजह है कि 50 रुपये से लेकर के लगभग साढ़े 6 लाख तक वुड कार्विंग की कलाकृति को बेचा गया है.


कारीगर बढ़ा रहे इसकी खूबसूरती

काशी के कारीगर इस कला में खुद को समर्पित करके उसकी खूबसूरती बढ़ा रहे हैं. इन्हीं में से एक शिल्पकार है वाराणसी के लहरतारा में रहने वाले प्रेम शंकर विश्वकर्मा. यह बीते 70 सालों से वुड कार्विंग का काम कर रहे हैं. इनकी नई पीढ़ियां भी इस काम में समर्पित है. बता दे कि यह वुड कार्विंग के जरिए अलग अलग तरीके की कलाकृति को करते हैं. इनकी कलाकृति इतनी खूबसूरत है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें तीन बार सम्मानित किया. प्रेम शंकर विश्वकर्मा बताते हैं कि उनकी सांसें वुड कार्विंग में बसती है, वह बीते कई सालों से वुड कार्विंग का काम करते हैं. वर्तमान में उन्होंने बाबा विश्वनाथ के मॉडल व प्रधानमंत्री व उनकी मां के चित्र को बनाया था,जो लोगों को खूब पसंद आया. उन्होंने बताया कि यह खास तरीके की कला होती है. खास बात यह है कि इसमें किसी भी तरीके के केमिकल का प्रयोग नहीं होता बल्कि लकड़ी पर अलग-अलग कलाकृति को बनाया जाता है और उसके बाद मोम से पॉलिश कर दिया जाता है.

कोरोना ने तोड़ा हौसला लेकिन अभी भी है उम्मीद

संदीप बताते हैं कि कोरोना वायरस ने हमारे व्यवसाय को पूरी तरीके से खत्म कर दिया. क्योंकि हमारा व्यवसाय लगभग 80 प्रतिशत पर्यटकों पर निर्भर है. कोरोना वायरस बाद से काशी में पर्यटकों का आवागमन बेहद कम हो गया, जिसके वजह से हमारा व्यवसाय भी बिल्कुल ठप है. हमारे सामने एक बड़ा संकट भी खड़ा हो गया है, लेकिन हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में जब देव दीपावली व अन्य त्योहारों पर काशी में पर्यटकों का आगमन होगा, तो हमारा व्यवसाय भी पटरी पर लौटेगा. आगामी त्योहारों से हमें उम्मीद है और इसी उम्मीद के साथ हम काम कर रहे हैं कि आने वाले दिन हमारे लिए बेहतर होगा.

सरकार उपलब्ध कराए बाजार का प्लेटफार्म

वुड कार्विंग से जुड़े संदीप विश्वकर्मा बताते हैं कि हमारे पूर्वज वुड कार्विंग का काम करते आए हैं, लेकिन अब तक वह पहचान नहीं मिल पाई जो पहचान मिलनी चाहिए थी. हम बहुत मेहनत से इस कलाकृति को बनाते हैं, लेकिन उसके लिए हमें बाजार बेहतर नहीं मिल पाता, सरकार को एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का बाजार उपलब्ध कराना चाहिए, जिससे शिल्पी बिना किसी समस्या के अपने उत्पादों की बिक्री कर सकें. क्योंकि बाजार के अभाव में कहीं न कहीं हमारी कलाकृति मरती जा रही है.

वुड कार्विंग की जीआई प्रक्रियाधीन

बता दें कि हाथी के दांत पर कलाकारी बंद होने के बाद लगभग डेढ़ सौ साल पहले चंदन की लकड़ी पर कार्विंग का काम किया जाता था, लेकिन इस पर भी प्रतिबंध के बाद कैमा की लकड़ी पर यह काम शुरू हुआ. इसको लेकर जीआई प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है लेकिन अभी तक इसे पूर्ण रूप से जीआई टैग नहीं मिला है. बता दें कि पूर्वांचल में बनारसी साड़ी, भदोही कालीन, मिर्जापुरी दरी, लकड़ी खिलौना, गुलाबी मीनाकारी, सॉफ्ट स्टोन क्राफ्ट, वॉल हैंगिंग, निजामाबाद ब्लैक पॉटरी इत्यादि को जीआई टैग मिल चुका है.

Last Updated : Sep 17, 2021, 2:00 PM IST
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