वाराणसी: 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा. मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण करने को दान करने से जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिल जाती है. बनारस जिसे मंदिरों का शहर कहा जाता है. वहां पर एक ऐसा अनूठा और अनोखा मंदिर भी है. जहां सिर्फ खिचड़ी के दिन ही नहीं बल्कि साल के 365 दिन भक्तों को खिचड़ी ही प्रसाद के रूप में खिलाई जाती है. बनारस का यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है और यहां पर आज भी प्रतिदिन ढाई हजार से ज्यादा भक्तों को खिचड़ी प्रसाद का वितरण रोज सुबह 7:00 बजे से लेकर शाम तक किया जाता है. यह सिलसिला अनवरत कई सालों से जारी है. मकर संक्रांति यानी खिचड़ी के दिन यहां 15 से 20 हजार श्रद्धालु खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण करते हैं. आइए हम आपको बताते हैं बनारस के इस विशेष खिचड़ी बाबा मंदिर की मान्यता और मकर संक्रांति के पर्व पर जुड़ी पौराणिक कथा.
छठवीं पीढ़ी कर रही मंदिर की सेवाः मंदिर के व्यवस्थापक संजय महाराज की छठवीं पीढ़ी इस मंदिर की सेवा में लगी हुई है. संजय महाराज और उनके परिवार के अन्य सदस्य सुबह 4:00 बजे ही मंदिर पहुंचकर खिचड़ी का प्रसाद बनाना शुरू कर देते हैं. एक बड़ी सी कढ़ाई में प्रतिदिन 3 कुंतल चावल और 5 किलो नमक, 1 किलो हल्दी, मसाले, 20 किलो से ज्यादा आलू, टमाटर समेत अलग-अलग सीजन की अलग-अलग सब्जियों के प्रयोग के साथ इस खिचड़ी को तैयार किया जाता है. पौष्टिक रूप से खिचड़ी को हमेशा से स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना गया है. इस वजह से यहां पर सुबह से लेकर शाम तक खिचड़ी महाप्रसाद प्रतिदिन बनता रहता है.
प्रतिदिन 3 हजार लोगों को वितरित होता है खिचड़ी प्रसादः संजय महाराज का कहना है कि 3 कुंतल से ज्यादा चावल की खिचड़ी को रोजाना ढाई हजार से ज्यादा भक्तों में प्रतिदिन वितरित किया जाता है. सबसे खास बात यह है कि यह सिलसिला 1937 में खिचड़ी बाबा के शरीर त्यागने के साथ उनके परिवार की परंपरा के रूप में आगे बढ़ा और अब तक जारी है. संजय महाराज का कहना है कि खिचड़ी बाबा कौन थे. यह किसी को नहीं पता है. लेकिन लोग उन्हें भगवान शंकर का बारहवां अवतार मानकर उनकी पूजा की जाती है. ऐसी कथा कही गई है कि वह पश्चिम बंगाल से वाराणसी आए और दशाश्वमेध घाट पर गुरु बृहस्पति भगवान के मंदिर के सामने गंगा घाट जाने वाले रास्ते पर ही सड़क पर निर्वस्त्र बैठा करते थे. सुबह से शाम तक वहीं पर रहते हुए खिचड़ी प्रसाद के रूप में वह भोजन तैयार करते थे. जो खुद भी खाते थे और वहां रहने वाले गरीब और असहाय लोगों को भी खिलाते थे. खिचड़ी खिलाते खिलाते वह खिचड़ी बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए. लोग उनके प्रसाद को लेने दूर-दूर से आने भी लगे हैं.
यह है मान्यताः किंवदंती कथाओं के अनुसार उनके द्वारा वितरित की गई खिचड़ी प्रसाद से कई लोगों के असाध्य रोग सही होने लगे. जिससे उनके खिचड़ी प्रसाद की मान्यता और बढ़ती गई और हर वर्ग के लोग इस प्रसाद को ग्रहण करने के लिए उनके पास पहुंचने लगे. इस वजह से यह परंपरा अनवरत रूप से जारी है. आज भी जो भक्त इस मंदिर में अपनी श्रद्धा रखते हुए किसी मनोकामना की इच्छा जाहिर करते हैं तो उसकी पूर्ति के बाद यहां पर खिचड़ी और अन्य चीजें दान करते हैं. भक्तों के दान पुण्य और उन्हीं के सहयोग से यहां पर यह भारी अनुष्ठान अनवरत रूप से चलता रहता है. इसके लिए सुबह से शाम तक यहां पर एक खास तरह की कढ़ाई चढ़ाई जाती है. जिसमें एक के बाद एक खिचड़ी का भोग लगातार तैयार होता ही रहता है. यहां हर वर्ग चाहे वह गरीब हो या अमीर हो बाहर से आने वाले सैलानी हो या लोकल रहने वाले लोग हर कोई यहां आकर इस प्रसाद ग्रहण करता है.
मांगों को पूरा करते हैं खिचड़ी बाबाः वहीं, बहुत से लोग तो इसी प्रसाद के जरिए अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं. ऐसी मान्यता भी है कि काशी में कोई भूखा नहीं सोता है. यहां माता अन्नपूर्णा सबका पेट भरती हैं. इसी मान्यता के साथ शंकर रूपी बाबा ने इस परंपरा की शुरुआत की और आज भी प्रतिदिन सैकड़ों गरीब परिवारों का पेट इसी खिचड़ी महाप्रसाद से भरा जाता है.यहां आने वाले भक्तों का भी मानना है कि जो मांगो उसकी पूर्ति बाबा करते हैं. यही वजह है कि भक्त यहां पर अपनी श्रद्धा अनुसार खिचड़ी का दान करते हैं. खिचड़ी का भोग लगवा कर भक्तों में वितरित भी करवाते हैं. भक्तों का कहना है कि बाबा को हम कुछ देते नहीं बल्कि हर बार उनसे कुछ लेने आते हैं. फिलहाल खिचड़ी के मौके पर बनारस का यह खिचड़ी बाबा मंदिर निश्चित तौर पर एक अलग और अनूठे भक्ति भाव के साथ आज भी कई लोगों का पेट भर रहा है. बल्कि पौराणिक मान्यताओं और कथाओं को भी इस कलयुग में जीवित रखने का काम कर रहा है.
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