वाराणसी : कोरोना संक्रमण की पहली लहर जब आयी तो भारत के लिए यह बीमारी नयी थी. इससे जुड़ा इलाज तो बिल्कुल नया था. शायद यही वजह है कि उस वक्त इस बीमारी के जांच की व्यवस्था या जांच किट तक को लेकर भारत दूसरे देशों पर निर्भर रहा. लेकिन आत्मनिर्भर भारत के तहत समय के साथ ही जांच किट की मैन्युफैक्चरिंग भारत में भी शुरू हो गई.
शुरुआत में rt-pcr जांच किट और फिर बाद में संक्रमण की जांच के लिए रैपिट एंटीजन किट के जरिए जांच होने लगी. इसके लिए पहले एक कंपनी फिर धीरे-धीरे कई मेडिकल प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों ने इस किट का उत्पादन शुरू कर दिया. एंटीजन किट के जरिए जांच रिपोर्ट तुरंत हासिल हो जाती है? लेकिन आरटी-पीसीआर रिपोर्ट 24 से 48 घंटे बाद आती है. अलग-अलग कंपनियों की जांच किट में कई बार रिपोर्ट के निगेटिव आने की वजह से जांच किट पर भी सवाल उठने लगते हैं. तो क्या है इस आरटी-पीसीआर जांच किट की सत्यता और क्या सच में रिपोर्ट निगेटिव आना ही आपके कोविड-19 संक्रमण न होने की गारंटी है. इसी मामले की पड़ताल ईटीवी भारत ने की.
कई बार उठते हैं जांच किट पर सवाल
कोविड-19 संक्रमण की जांच के लिए rt-pcr जांच को सबसे बेहतर माना जाता है क्योंकि सर्दी, खांसी जुखाम या बुखार होने पर इस जांच के जरिए आप 100% संक्रमित हैं या नहीं, इस बात की जानकारी हासिल कर सकते हैं. स्वास्थ्य विभाग भी इस जांच को सबसे बेहतर मानता है लेकिन कई केस ऐसे हैं जिनमें लोगों की रिपोर्ट निगेटिव आई और उनका संक्रमण धीरे-धीरे बढ़ने के बाद उनको अस्पताल तक पहुंचना पड़ गया. इसलिए जांच किट पर सवाल उठना लाजमी है.
यह भी पढ़ें : युवाओं ने शुरू किया हवन मोहल्ला सैनिटाइजेशन, वातावरण को कर रहे शुद्ध
गुणवत्ता पर सवाल है बेकार
सवाल यह भी है कि क्या अलग-अलग कंपनियों की तैयार हो रही जांच किट की निगरानी वास्तव में की जा रही है. जिला या प्रदेश स्तर पर स्वास्थ्य विभाग की विशेष टीमें क्या इस जांच किट की गुणवत्ता परखतीं हैं? इस बारे में वाराणसी के एडिशनल सीएमओ डॉ. पीपी गुप्ता का कहना है कि जांच किट की गुणवत्ता पर सवाल उठना ही नहीं चाहिए क्योंकि आईसीएमआर जो जांच किट से लेकर दवा व अन्य चीजों को परखने के बाद ही इसे उपयोग की अनुमति देती है. वह अलग-अलग कंपनियों की rt-pcr जांच किट की पड़ताल के बाद ही उसे इस्तेमाल की अनुमति दे रही है. हालांकि rt-pcr जांच किट की एक्यूरेसी 70% ही बताई जाती है. 30% जांच सही समय या फिर सिम्टम्स पर निर्भर करता है.
रिपोर्ट निगेटिव आना सुरक्षा की नहीं है गारंटी
डॉ. गुप्ता का कहना है कि कई बार ऐसा देखने में आया है कि हल्के सिम्टम्स या फिर किसी संक्रमित के संपर्क में आने के साथ ही लोग जांच करवाने पहुंच जाते हैं लेकिन रिपोर्ट निगेटिव आती है. ऐसी स्थिति में यदि rt-pcr जांच रिपोर्ट निगेटिव है तो जांच करवाने वाले व्यक्ति को कम से कम 7 दिनों तक आइसोलेशन में रहने की सलाह दी जाती है ताकि वह संक्रमण को दूसरों तक न पहुंचा सके. खुद भी सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित रखें.
नहीं उठना चाहिए सवाल..लेकिन निगरानी है जरूरी
वहीं, एक्सपर्ट का भी साफ कहना है कि जांच किट की गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठना चाहिए. यह सेंट्रल स्वास्थ्य डिपार्टमेंट की निगरानी में तैयार होती है. जांच के बाद ही आगे बढ़ाई जाती है लेकिन लोकल स्तर पर भी इसकी निगरानी करना बेहद आवश्यक है. एक्सपर्ट का कहना है कि यह संक्रमण को रोकने की पहली सीढ़ी है. इसलिए यह बेहद जरूरी है. जांच कब कराएं, सिम्टम्स होने के बाद अपने को सुरक्षित कैसे रखें, यह सब जानना बेहद आवश्यक है. इसलिए जब कभी भी हल्के सिम्टम्स हों तो तुरंत जांच करवाने न पहुंचे. किसी के संपर्क में आने के कम से कम 3 दिन बाद जांच करवाएं ताकि रिपोर्ट कंफर्म आए. ऐसा न होने पर संदेह की स्थिति बनी रहेगी. यानी, जांच की गुणवत्ता पर सवाल नहीं उठना चाहिए लेकिन इसकी निगरानी आवश्यक है.