वाराणसी: सनातन धर्म में तिथियों का विशेष महत्व होता है. तिथियों के निर्धारण के साथ ही पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और इनको मानते हुए ही शुभ और अशुभ दिन की गणना भी की जाती है. इन्हीं तीनों में से एकादशी तिथि को सनातन धर्म में विशेष महत्व दिया जाता है, क्योंकि एकादशी की तिथि श्री हरि विष्णु की तिथि मानी जाती है और एकादशी तिथि पर ही भगवान विष्णु शयन करने जाते हैं और इस दिन ही भगवान निंद्रा से उठते भी है. यही वजह है कि एकादशी तिथि से शुरू होने वाले महीने को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है. जिसकी शुरुआत इस बार 20 जुलाई 2021 यानी दिन मंगलवार से होने जा रही है. चार महीनों तक भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में निंद्रा में रहते हैं और सभी तरह के शुभ कार्य पूर्णतया रुक जाते हैं, तो आइए जानते हैं 26 एकादशी तिथियों में श्रेष्ठ तिथि श्रीहरि शयनी एकादशी के बारे में.
यह है एकादशी व्रत का महत्व
इस बारे में ज्योतिषाचार्य व श्री काशी विश्वनाथ न्यास के पूर्व सदस्य पंडित प्रसाद दीक्षित ने बताया कि 26 एकादशियों में विष्णु शयनी एकादशी का अपना विशेष महत्व होता है. विष्णु शयनी एकादशी का व्रत भगवान श्री हरि के निमित्त किया जाता है. धर्मशास्त्र से स्पष्ट है कि एकादशी व्रत करने वालों को इस संसार में समस्त प्रकार का सुख-वैभव अवश्य प्राप्त होता है. एकादशी व्रत के विषय में यजुर्वेद संहिता में भी कहा गया है कि मत्स्य, कूर्म, ब्रह्मांड, वाराह, स्कंध और भविष्य आदि सभी पुराणों में अनेक वर्गों की विधियां और विवरण देखने में आते हैं. व्रत के बाद व्रत कथा सुनाने की विधि का वर्णन पुराणों में यत्र-तत्र-सर्वत्र सुलभ है. 'हेमाद्रि व्रत खंड' में व्रत करने के अधिकार के विषय में भी लिखा गया है.
20 जुलाई को जाएंगे योग निंद्रा में और जागेंगे 15 नवंबर को
पंडित प्रसाद दीक्षित के मुताबिक आषाढ़ मास शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि विष्णु शयनी एकादशी नाम से प्रसिद्ध है. एकादशी मंगलवार दिनांक 20 जुलाई 2021 को है. एकादशी तिथि शाम 4:29 तक है, इसके बाद द्वादशी तिथि लग जाएगी. यानी इस दिन से 4 माह के लिए भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और सोमवार दिनांक 15 नवंबर 2021 को कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि देवोत्थान एकादशी को जागेंगे. विष्णु शयनी एकादशी के बाद 4 महीना तक भगवान शिव की पूजन का भी विधान है.
करना होता है यह पालन
पंडित प्रसाद दीक्षित के मुताबिक इन चार महीनों तक भगवान विष्णु के निमित्त एक बार भोजन करना इत्यादि शुभ माना जाता है. इन 4 महीनों में भगवान विष्णु के ध्यान के साथ ही भगवान शिव के पूजन का भी विधान है. भगवान शिव के पूजन से श्री हरि अत्यंत प्रसन्न होते होते हैं. विष्णु शयनी एकादशी के दिन नियम संयम से व्रत रहे. दिन में व्रत रहते हुए रात्रि को हरि कीर्तन करें. व्रत के पूर्व दिन संयम रख संकल्प व्रत आरंभ करना होता है. यज्ञ, विवाह, श्राद्ध, होम, पूजा, पुरश्चरण आदि में आरंभ से पहले सूतक लगता है, आरंभ के बाद नहीं लगता. एकादशी के दिन भोजन निषेध माना गया है. दूध अथवा जलपान करके उपवास हो सकता है. एकादशी का व्रत सर्व साधारण जनता के लिए अपरिहार्य सिद्ध होता है. गृहस्थ, ब्रह्मचारी, सात्विक किसी को भी एकादशी के दिन भोजन नहीं करना चाहिए. यह नियम शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में लागू रहेगा. एकादशी के दिन बार-बार खाना, मल मूत्र का त्याग करना, मिथ्या बोलना तथा ईर्ष्या करना निषेध माना गया है, जो लोग एकादशी के दिन नियम पूर्वक व्रत-उपवास करते हैं, उनके जीवन में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं रहती. मरणोपरांत उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति अवश्य होती है.
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यह है इस व्रत से जुड़ी कहानी
शास्त्र के मतानुसार जब राजा बलि से तीन पग भूमि दान लेने के पश्चात भगवान श्री हरि बलि पर अत्यंत प्रसन्न हुए तब भगवान विष्णु ने बलि से कहा कि तुम वरदान मांग लो. राजा बलि की इच्छा थी कि भगवान विष्णु पाताल लोक में बलि के साथ ही निवास करें. तब भगवान विष्णु ने कहा कि आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी से 4 माह के लिए वे पाताल लोक में ही निवास करेंगे. इस प्रकार चातुर्मास का भी प्रारंभ हो जाता है. एक कथा के अनुसार असुर शंखासुर जब मारा गया तब भगवान विष्णु थक गए थे और वह 4 माह तक छीर सागर में विश्राम करने चले गए. यहीं से 4 महीने का चातुर्मास प्रारंभ हुआ. 4 महीने बाद कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान श्री हरि उठ जाते हैं और उसके बाद ही सारे शुभ कार्य प्रारंभ भी होते हैं.