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स्क्रीन पर काम करना व्यक्ति को पड़ेगा महंगा, आंसू सूखने के बाद दर्द कैसे होगा बयां - Increased patients with blue light syndrome

अगर आपकी आंखों में तेज जलन, लाल होना और किसी तरह की रेत जैसे चुभने की परेशानी है. तो सतर्क हो जाइए. आपने अपनी आंखों को काफी नुकसान पहुंचा लिया है. आपकी आंखों में आंसू सूख रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है आपका इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल करना. ज्यादा समय तक इनका इस्तेमाल आपकी आंखों का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है. वाराणसी में ऐसे मरीजों की संख्या बहुत ही तेजी से बढ़ी है.

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Published : Oct 24, 2022, 2:16 PM IST

वाराणसी: आजकल लोगों की दिनचर्या में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल उनकी लाइफ का अहम हिस्सा बन गया है. जिसमें मोबाइल फोन और लैपटॉप का सबसे ज्यादा यूज किया जाता है. इन गैजेट्स ने लोगों का काम तो आसान किया है, लेकिन आंखों को बहुत नुकसान पहुंचाया है. छोटे स्क्रीन पर अधिक समय काम करने से लोगों की आंखों में समस्या होने लगती है. इससे आंखों के आंसू सूख रहे हैं.

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रत्युष रंजन ने बताया कि आंखों में सूखापन तीन स्तर (Increased patients with blue light syndrome) का होता है. माइल्ड, मॉडरेट और सीवीयर. इनमें दिक्कतें भी अलग-अलग होती हैं. माइल्ड ड्राई आई की समस्या होने पर आंखों में जलन होगी, भारीपन लगेगा और ऐसा लगेगा कि पलक के नीचे रेत जैसा कुछ चुभ रहा है. मॉडरेट ड्राई आई में आंख लाल होने लगेगी. सीवियर में माइल्ड और मॉडरेट के लक्षण के साथ आंखों से पानी भी आने लगता है. इससे आंखों में खुजली भी हो सकती है. आंख से कीचड़ भी आने लगता है.

जानकारी देत नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रत्युष रंजन
ब्लू लाइट सिंड्रोम से कैसे बचें: डॉ. प्रत्युष रंजन ने कहा कि इससे बचाव (Preventing Blue Light Syndrome) के लिए स्क्रीन टाइम कम करना होगा. जो भी आपके टेक्निकल काम हैं उनको बड़े स्कीन पर करना होगा. स्क्रीन की ब्राइटनेट्स मीडियम रखें. कमरे में लाइट मीडियम रखें. स्क्रीन में ब्लू लाइट फिल्टर का भी प्रयोग करना चाहिए. इसके साथ ही हर बीस मिनट में बीस सेकेंड के लिए बीस फीट दूर देखना होगा. रात को सोने का समय तय कर लें. स्क्रीन आपकी नींद को भी प्रभावित करती है.
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ज्यादा समय स्क्रीन पर काम करने से सूख रहे आंसू
आंखों का ब्लिंक रेट हो रहा कम: ब्लू लाइट सिंड्रोम स्क्रीन यूजर्स में कॉमन (blue light syndrome symptoms) होता है. अगर आप 2 घंटे से ज्यादा लगातार स्क्रीन यूज कर रहे हैं, तो आप इसके हाई लेवल के रिस्क पर हैं. यह बीमारी नहीं है. डिसऑर्डर है, जिसे जीवन शैली सही कर ठीक किया जा सकता है. स्क्रीन टाइम ज्यादा होने से आंखों का ब्लिंक रेट कम हो जाता है. जितना छोटा स्क्रीन होता है उतना ज्यादा ब्लिंक रेट होता है.पढ़ें- सिगरा स्टेडियम में दीपावली के पूर्व संध्या पर दीपोत्सव का हुआ आयोजन

डॉ. रंजन ने बताया कि लैपटॉप पर 60 फीसदी ब्लिंक रेट कम हो जाता है. वहीं, मोबाइल पर लगभग 80 फीसदी ब्लिंक रेट कम होता है. लोगों की नौकरी का काम स्क्रीन पर ही करना पड़ता है. रात में अंधेरे में लोग मोबाइल यूज करते हैं. ये सभी चीजें आंखों को ड्राई कर रही हैं. 18 साल से छोटे बच्चों में स्क्रीन टाइम ज्यादा होने से मायोपिया यानी माइनस नंबर पर चश्मा लगने की दिक्कत भी बढ़ जाती है. ये दोनों मिलकर छोटे बच्चों के चश्मे का नंबर तेजी से बढ़ाते हैं, जबकि बड़ों की आंखों को स्ट्रेंड करता है. इसके 3 तरह से नुकसान होंगे. पहला तो ड्राई आई होगा. जलन, भारीपन, दर्द और धुंधलापन की शिकायत हो सकती है. इसके सीवियर केस में आपकी आंख में हमेशा पानी आता रहेगा. दूसरी दिक्कत सिर में दर्द हो सकता है. सिर में भारीपन लगता है, आंख भारी लगने लगती है. तीसरी दिक्कत आपको गर्दन में भी दिक्कत हो सकती है. ये तीनों दिक्कतें आपको डिजिटलाइज्ड स्ट्रेन की वजह से होती हैं.

पढ़ें- लखीमपुर खीरी में फिर तेंदुए का हमला, एक बच्ची को बनाया निवाला

वाराणसी: आजकल लोगों की दिनचर्या में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल उनकी लाइफ का अहम हिस्सा बन गया है. जिसमें मोबाइल फोन और लैपटॉप का सबसे ज्यादा यूज किया जाता है. इन गैजेट्स ने लोगों का काम तो आसान किया है, लेकिन आंखों को बहुत नुकसान पहुंचाया है. छोटे स्क्रीन पर अधिक समय काम करने से लोगों की आंखों में समस्या होने लगती है. इससे आंखों के आंसू सूख रहे हैं.

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रत्युष रंजन ने बताया कि आंखों में सूखापन तीन स्तर (Increased patients with blue light syndrome) का होता है. माइल्ड, मॉडरेट और सीवीयर. इनमें दिक्कतें भी अलग-अलग होती हैं. माइल्ड ड्राई आई की समस्या होने पर आंखों में जलन होगी, भारीपन लगेगा और ऐसा लगेगा कि पलक के नीचे रेत जैसा कुछ चुभ रहा है. मॉडरेट ड्राई आई में आंख लाल होने लगेगी. सीवियर में माइल्ड और मॉडरेट के लक्षण के साथ आंखों से पानी भी आने लगता है. इससे आंखों में खुजली भी हो सकती है. आंख से कीचड़ भी आने लगता है.

जानकारी देत नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रत्युष रंजन
ब्लू लाइट सिंड्रोम से कैसे बचें: डॉ. प्रत्युष रंजन ने कहा कि इससे बचाव (Preventing Blue Light Syndrome) के लिए स्क्रीन टाइम कम करना होगा. जो भी आपके टेक्निकल काम हैं उनको बड़े स्कीन पर करना होगा. स्क्रीन की ब्राइटनेट्स मीडियम रखें. कमरे में लाइट मीडियम रखें. स्क्रीन में ब्लू लाइट फिल्टर का भी प्रयोग करना चाहिए. इसके साथ ही हर बीस मिनट में बीस सेकेंड के लिए बीस फीट दूर देखना होगा. रात को सोने का समय तय कर लें. स्क्रीन आपकी नींद को भी प्रभावित करती है.
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ज्यादा समय स्क्रीन पर काम करने से सूख रहे आंसू
आंखों का ब्लिंक रेट हो रहा कम: ब्लू लाइट सिंड्रोम स्क्रीन यूजर्स में कॉमन (blue light syndrome symptoms) होता है. अगर आप 2 घंटे से ज्यादा लगातार स्क्रीन यूज कर रहे हैं, तो आप इसके हाई लेवल के रिस्क पर हैं. यह बीमारी नहीं है. डिसऑर्डर है, जिसे जीवन शैली सही कर ठीक किया जा सकता है. स्क्रीन टाइम ज्यादा होने से आंखों का ब्लिंक रेट कम हो जाता है. जितना छोटा स्क्रीन होता है उतना ज्यादा ब्लिंक रेट होता है.पढ़ें- सिगरा स्टेडियम में दीपावली के पूर्व संध्या पर दीपोत्सव का हुआ आयोजन

डॉ. रंजन ने बताया कि लैपटॉप पर 60 फीसदी ब्लिंक रेट कम हो जाता है. वहीं, मोबाइल पर लगभग 80 फीसदी ब्लिंक रेट कम होता है. लोगों की नौकरी का काम स्क्रीन पर ही करना पड़ता है. रात में अंधेरे में लोग मोबाइल यूज करते हैं. ये सभी चीजें आंखों को ड्राई कर रही हैं. 18 साल से छोटे बच्चों में स्क्रीन टाइम ज्यादा होने से मायोपिया यानी माइनस नंबर पर चश्मा लगने की दिक्कत भी बढ़ जाती है. ये दोनों मिलकर छोटे बच्चों के चश्मे का नंबर तेजी से बढ़ाते हैं, जबकि बड़ों की आंखों को स्ट्रेंड करता है. इसके 3 तरह से नुकसान होंगे. पहला तो ड्राई आई होगा. जलन, भारीपन, दर्द और धुंधलापन की शिकायत हो सकती है. इसके सीवियर केस में आपकी आंख में हमेशा पानी आता रहेगा. दूसरी दिक्कत सिर में दर्द हो सकता है. सिर में भारीपन लगता है, आंख भारी लगने लगती है. तीसरी दिक्कत आपको गर्दन में भी दिक्कत हो सकती है. ये तीनों दिक्कतें आपको डिजिटलाइज्ड स्ट्रेन की वजह से होती हैं.

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