वाराणसी: भारतीय संस्कृति के हिंदू धर्मशास्त्रों में पंचदेवों में प्रथम पूज्य देव भगवान श्री गणेशजी की अनन्त गुण विभूषित माना गया है. सुख-समृद्धि के लिए संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत रखने की धार्मिक परंपरा है. चतुर्थी तिथि प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी को समर्पित है. प्रत्येक माह के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि के दिन संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत रखने की मान्यता है.
ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि प्रथम पूज्यदेव श्रीगणेशजी का प्राकट्य महोत्सव माघ मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन मनाने की धार्मिक व पौराणिक मान्यता है. माघ मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को वक्रतुण्ड चौथ, मात्र चौथ, संकष्टी तिल चतुर्थी, तिल चौथ तिलकुटा चौथ एवं गौरी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है.
इस बार यह पर्व मंगलवार, 10 जनवरी को विधि-विधानपूर्वक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा. माघ कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि मंगलवार, 10 जनवरी को दिन में 12 बजकर 10 मिनट से बुधवार, 11 जनवरी को दिन में 2 बजकर 32 मिनट तक रहेगी. चन्द्रोदय रात्रि 8 बजकर 22 मिनट पर होगा. चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि के दिन यह व्रत रखने का विधान है. रात्रि में चन्द्र उदय होने के पश्चात् चन्द्रमा को अर्ध्य देकर उनकी पूजा- अर्चना की जाती है. इस दिन श्री गणेशजी को पूजा-अर्चना करके व्रत करना विशेष कल्याणकारी रहता है.
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत से मनोकामना होगी पूरी
ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि माघ मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि से कष्ठी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का प्रारम्भ किया जाता है. यह व्रत महिला, पुरुष अथवा विद्यार्थी दोनों के लिए समान रूप से फलदायी है. श्री गणेश की विशेष कृपा प्राप्ति एवं मनोकामना की पूर्ति के लिए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत नियमित रूप से चार वर्ष या चौदह वर्ष तक करना चाहिए.
कैसे करें श्रीगणेश जी की पूजा
व्रत के दिन प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के पश्चात् श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए. व्रत के दिन व्रतकर्ता को नमक और तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए. संपूर्ण दिन शुचिता के साथ निराहार व निराजल रहते हुए व्रत के दिन सायंकाल पुनः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके गणेश जी की पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए. गणपति को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, अतएव दूर्वा की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अर्पित करने चाहिए. इस पावन पर्व पर तिल व गुड़ से बने मोदक अर्पित करने की विशेष मान्यता है.
गणपति की महिमा में किए जाने वाले पाठ
श्रीगणेश स्तुति, संकटनाशन श्रीगणेश स्तोत्र, श्रीगणेश सहस्रनाम, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष, श्रीगणेश चालीसा एवं श्रीगणेश जी से सम्बन्धित मंत्र-स्तोत्र आदि जो भी सम्भव हो अवश्य करना चाहिए. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का प्रातः काल पाठ करने से रात्रि के समस्त पापों का नाश, संध्या समय पाठ करने से दिन के सभी पापों का शमन होता है. श्रद्धा भक्ति के साथ 1000 पाठ करने पर मनोरथ की पूर्ति के साथ ही धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष की प्राप्ति भी बतलाई गई है.
ज्योतिषविद् विमल जैन के मुताबिक गणपति को अर्चना से सर्वसंकटों का निवारण तो होता ही है, साथ ही जीवन में सुख- समृद्धि व खुशहाली भी मिलती है. ऐसी भी मान्यता है कि जिन्हें जन्मकुण्डली के अनुसार बुध एवं केतु ग्रह का उत्तम फल प्राप्त न हो रहा हो, उन्हें श्रीगणेश जी पूजा-अर्चना अवश्य करनी चाहिए. उनके लिए गणेश चतुर्थी का व्रत विशेष लाभकारी होता है, जैसा कि नाम से स्पष्ट है संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी यह चतुर्थी गणेश जी को अति प्रिय है, इस दिन व्रत रखकर विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करने से सुख-समृद्धि, खुशहाली मिलती है साथ ही सर्व संकटों का निवारण भी होता है.
श्रीगणेश जी का प्राकट्य ब्रह्मपुराण के अनुसार माता पार्वती ने अपने देह के मैल से भगवान श्रीगणेशजी का सृजन कर उन्हें द्वार पर पहरा देने के लिए बिठाकर स्नान करने चली गई थी, तभी वहां भगवान शिवजी आ गए. भगवान गणेश ने माता की आज्ञा पर शिवजी को अन्दर प्रवेश नहीं करने दिया. इस पर भगवान शिवजी ने क्रोधित होकर श्रीगणेशजी का सिर विच्छेद कर दिया, जो चन्द्रमण्डल पर जाकर टिक गया. बाद में शिवजी को वास्तविकता मालूम होने पर गणेश को हाथी के नवजात शिशु का सिर लगा दिया. सिर विच्छेदन के पश्चात् गणेश का मुख चन्द्रमण्डल पर सुशोभित हो गया, फलस्वरूप चन्द्रमा को अर्घ्य देने की परम्परा प्रारम्भ हो गई. रात्रि में चन्द्र उदय होने के पश्चात् चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है.
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