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बनारस में क्या पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट अटक जाएगा, तीन बहनें क्यों पहुंची सुप्रीम कोर्ट? - ROPEWAY VARANASI

वाराणसी में देश के पहले अर्बन ट्रांसपोर्ट रोपवे का अप्रैल में होना था उद्घाटन, अदालती पेंच फंसा, जानिए क्या है पूरा मामला...

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वाराणसी रोपवे प्रोजेक्ट कानून पेंच में फंसा. (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 26, 2025, 9:12 PM IST

Updated : Feb 26, 2025, 9:54 PM IST

वाराणसी: बनारस में देश के पहले अर्बन ट्रांसपोर्ट के रूप में रोपवे प्रोजेक्ट की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में की थी. क्योंकि पुरातन शहर बनारस में मेट्रोमैन श्रीधरन ने मेट्रो और मोनो रेल चलाने में असमर्थता जाहिर कर दी थी. इसके बाद प्रधानमंत्री ने रोपवे प्रोजेक्ट की परिकल्पना को साकार करने का बीड़ा उठाया. अधिकारियों ने उनके सपने को पूरा करने में जान लगा दी. लेकिन पीएम मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर ग्रहण लगता हुआ दिखाई दे रहा है. प्रधानमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन सगी बहनों की याचिका पर रोक लगाने का आदेश दिया है.

तीन बहनों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोकः बनारस में रोपवे का निर्माण स्विट्जरलैंड की कंपनी की देखरेख में हो रहा है. नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया कार्यशाली संस्था के तौर पर काम कर रही है . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को आने वाले 3 महीना में शुरू करने की भी तैयारी चल रही है. इस वक्त फर्स्ट फेज के ट्रायल के लिए गोंडोला को तारों पर दौड़ाया भी जा रहा है, लेकिन इन सारी चीजों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. क्योंकि वाराणसी की रहने वाली तीन सगी बहनों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमएम सुंदरेष और संजय करोल की पीठ ने तथ्यों पर विचार विमर्श करने के बाद संबंधित प्राधिकरण को रोपवे के निर्माण की यथा स्थिति बनाए रखते हुए उसे तत्काल रोकने और अगली सुनवाई अप्रैल में करने के आदेश दिए हैं.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली महिला ने बताई पूरी कहानी. (Video Credit; ETV Bharat)

पिलर नंबर 29 पर फंसा पेंचः वाराणसी की रहने वाली मंशा सिंह, उनकी बहन सुचित्रा सिंह और प्रतिमा सिंह की फ्री होल्ड प्रॉपर्टी गोदौलिया इलाके में है. तीन-तीन मंजिल के मकान के साथ ही आगे पांच दुकानें भी हैं, जिसे रोपवे प्रोजेक्ट के लिए तोड़ दिया गया है. यहां रोपवे के पिलर नंबर 29 यानी अंतिम पिलर का काम जारी था. तीनों महिलाओं ने एप्लीकेशन देकर पहले हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी कि उनकी प्रॉपर्टी का न ही अधिग्रहण किया गया है न ही मुआवजे की रकम दी गई है. जिसकी वजह से पहले हाई कोर्ट में मामला जारी है. हाई कोर्ट में सुनवाई की जा रही थी लेकिन अगली तिथि 18 मार्च मिलने की वजह से इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए तथ्यों के आधार पर तत्काल इस प्रोजेक्ट को रोकने और अगली सुनवाई 15 अप्रैल को करने के आदेश दिए हैं. इसके बाद इस प्रोजेक्ट के सुपरविजन करने वाले वाराणसी विकास प्राधिकरण के सामने कई चुनौतियां आ गई हैं.

वाराणसी रोपवे प्रोजेक्ट की खासियत.
वाराणसी रोपवे प्रोजेक्ट की खासियत. (ETV Bharat Gfx)

वाराणसी प्राधिकरण ने कहां की गलतीः हालांकि इस पूरे मामले में कानूनी जानकार वाराणसी विकास प्राधिकरण की ही गलती मान रहे हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता विनय शंकर तिवारी का कहना है कि नियम के मुताबिक जब भूमि अधिग्रहण होता है उसके 1 साल के अंदर पैसा संबंधित पक्ष के खाते में ट्रांसफर होना अनिवार्य है. यदि ऐसा नहीं होता तो अधिग्रहण रद्द कर दिया जाता है. उसके लिए भी नियम यही है कि अधिग्रहण से पहले नोटिस जारी किया जाता है. नोटिस के बाद जब डॉक्यूमेंट और सारी चीज जमा हो जाती हैं, उसके बाद ही वहां पर संबंधित विभाग या संस्था कार्य शुरू कर सकती है. अधिवक्ता का कहना है कि नियम यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि का चार गुना और शहरी क्षेत्र में अधिग्रहण होने वाली भूमि सरकारी सर्किल रेट के दोगुना हिसाब देना होता है, मार्केट रेट के हिसाब से नहीं.

वाराणसी रोपवे प्रोजेक्ट की खासियत.
वाराणसी (ETV Bharat Gfx)

मुआवजे की रकम बढ़ाने के लिए कोर्ट पहुंची बहनेंः वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग का कहना है कि कोर्ट में सिर्फ पिलर नंबर 29 के लिए आदेश दिया है. जिसका हमारे पूरे प्रोजेक्ट पर कोई असर नहीं पड़ेगा. तीन महिलाओं द्वारा पहले हाई कोर्ट में एप्लीकेशन दी गई थी. जहां हमने अपना पक्ष मजबूती से रखा है. सुप्रीम कोर्ट में भी अपना पक्ष रखेंगे. यह पूरा मामला सिर्फ और सिर्फ मुआवजे की रकम को बढ़ाने के लिए है. मुआवजे की रकम नियम के मुताबिक सर्किल रेट की दोगुनी होती है, जो हम देने के लिए भी तैयार हैं.

वाराणसी विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष.
वाराणसी विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष. (ETV Bharat Gfx)

तीनों बहनों को 6 करोड़ मुआवजा देने को तैयारः पुलकित गर्ग का कहना है कि हमने तीनों बहनों से कहा था कि रजिस्ट्री पेपर और सारी चीज जमा कीजिए और नोटिस भी उनको जारी किया गया है. लेकिन उन्होंने न ही कोई पेपर जमा किया ना ही रजिस्ट्री के लिए तैयार हुई. उन्होंने अपना मकान खुद खाली किया था, हमने कोई जोर जबरदस्ती नहीं की थी. इसकी वजह से हमने उनके मकान को हटाने के बाद ही अपना काम शुरू किया, लेकिन अब वह इसका विरोध कर नहीं है और पैसे बढ़ाने का भी दबाव बनाया जा रहा है. जिसकी वजह से हम कोर्ट से अपनी बातों को रखकर चीजों को स्पष्ट करने का अनुरोध करेंगे. वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष का कहना है कि हम उन्हें लगभग 6 करोड़ रुपए देने को तैयार हैं, लेकिन वह उससे भी ज्यादा की डिमांड कर रहे हैं जिसके कारण अभी तक मामला फंसा हुआ है.


बुरे वक्त के लिए पिता और भाइयों ने तोहफे में दी थी जमीनः इस मामले में मनसा सिंह और प्रतिमा सिंह वादी तो है लेकिन पूरा प्रकरण सुचित्रा सिंह और उनके पति सुरेंद्र सिंह देख रहे हैं. सुचित्रा सिंह ने ETV Bharat से इस मामले पर बात करते करते-करते रोने लगी. आंसू भरी आंखों के साथ सुचित्रा सिंह ने कहा 'मुझे मेरे पिता और मेरे भाइयों की ओर से यह जमीन तोहफे में मिली थी, ताकि बुरे वक्त में इसका इस्तेमाल कर सकें. लेकिन जो स्थिति बन रही है, उससे तो यही लग रहा है कि हम अपने आने वाले भविष्य को कैसे सुरक्षित करेंगे. बाजार रेट के मुताबिक इस जमीन की कीमत लगभग 32 करोड़ रुपए है, लेकिन हमें सरकारी रेट के हिसाब से 6 करोड़ रुपए मिलना है. तीनों बहनों के पास क्या पैसा ही आएगा. जिसके कारण हम अपना आगे का भविष्य सुरक्षित करेंगे. यह जमीन हमारे पिता जी ने खरीदी थी. बाद में 2014 में हमारे भाइयों ने हमें यह गिफ्ट कर दी. पिताजी ने पहले से ही यह हमारे नाम कर रखी थी, लेकिन सरकार हमारा नहीं पक्ष लेना चाहती है. हम तो प्रधानमंत्री मोदी और योगी को बहुत मानते हैं लेकिन हमें यह उम्मीद नहीं थी कि हमारे साथ ही ऐसा होगा.

शिकायतकर्ता सुचित्रा सिंह.
शिकायतकर्ता सुचित्रा सिंह. (ETV Bharat Gfx)

4083 स्क्वायर फीट जमीन के बदले मिले 32 करोड़ मुआवजाः सुचित्रा के पति सुरेंद्र सिंह का कहना है कि उनकी मांग है कि हमें 4083 स्क्वायर फीट जमीन के बदले उतनी ही जमीन कहीं शहर में दी जाए. जो रकम सरकार दे रही है, हम उसे लेने के लिए तैयार हैं. अगर वह जमीन नहीं देते हैं तो हमें उसके बदले में 32 करोड़ रुपये मुआवजा दे, जो मार्केट वैल्यू है. करोड़ों की जमीन का हमें सिर्फ कुछ ही पैसा मिल रहा है. जिसके कारण हमारे लिए भी तो संकट है. इस वजह से हमने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. सुरेंद्र सिंह ने कहा कि हमें ना ही मुआवजा का पैसा मिला है, ना ही अधिग्रहण की कार्रवाई को पूरा किया गया है, ना ही कोई नोटिस जारी किया गया है. हमें निकाल कर 30 दिसंबर 2024 को मकान गिरा दिया गया.

डेवलपर और प्रोजेक्ट प्लानर श्याम लाल सिंह का कहना है कि वाराणसी में किसी भी प्रोजेक्ट पर काम करना और उसके पुरातन स्वरूप को सुरक्षित रखना ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है. जैसे विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण जिस वक्त हुआ था, उस समय 390 मकान को गिराकर इस पूरे कॉरिडोर की भव्यता और दिव्यता के साथ इसे तैयार करना था. यह चैलेंज था, उस वक्त भी दिक्कतें बहुत सी आई थी. सबसे बड़ी दिक्कत तो मकान की खरीद फरोख्त में आई थी. कई बार कोर्ट के चक्कर भी लगे थे, लेकिन प्रशासन और लोगों ने मिलकर इसका समाधान निकाला.

अब तक 300 करोड़ रुपये खर्चः गौरतलब है कि वाराणसी रोपवे प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है. इस प्रोजेक्ट में 300 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके हैं. इस प्रोजेक्ट के तैयार होने के बाद सबसे बड़ा फायदा तो यहां की ट्रैफिक व्यवस्था में मिलेगा ही साथ ही पर्यटकों के लिए भी एक नया एक्सपीरियंस होगा. पर्यटन कारोबार से जुड़े राहुल सिंह का कहना है कि ट्रांसपोर्ट सर्विसेज के तौर पर बनारस में ऑटो ई रिक्शा, रिक्शा संचालित होते हैं. लेकिन ट्रैफिक जाम इतना ज्यादा होता है कि पर्यटक परेशान हो जाते हैं. ऐसे में बनारस का यह रोपवे प्रोजेक्ट पर्यटन कारोबार के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाला है. वाराणसी के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में भी इसका महत्वपूर्ण रोल होगा. क्योंकि ट्रैफिक व्यवस्था ध्वस्त होने के कारण बहुत सी चीजों में परेशानियां होती हैं. जब ट्रैफिक व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित होगी और रोपवे का संचालन सही तरीके से होगा तो इसका असर सीधे-सीधे इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर भी पड़ेगा. रोपवे वाले रूट पर बहुत सी सुविधाओं के साथ लोगों को भी फायदा मिलेगा. स्थानीय लोगों का कहना है किबनारस में कुछ नया और अनूठा होना जरूरी है. इसलिए रोपवे प्रोजेक्ट बंद नहीं होना चाहिए. फिलहाल यह रोपवे प्रोजेक्ट जब तैयार होगा तभी इसका फायदा मिलेगा, लेकिन अभी यह पूरा प्रोजेक्ट आधार में लटक गया है.

15 अप्रैल को होगी स्थिति साफः फिलहाल अब 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई में रोपवे प्रोजेक्ट का भविष्य तय होगा. इस पूरे प्रोजेक्ट पर रोक लगेगी कि सिर्फ पिलर नंबर 29 का काम ही प्रभावित होगा या फिर वाराणसी विकास प्राधिकरण इस प्रोजेक्ट को पीड़ित पक्ष के साथ मिलकर समझौते के साथ आगे बढ़ाएगी.

इसे भी पढ़ें-वाराणसी रोपवे परियोजना ; पहले चरण का काम लगभग पूरा, अप्रैल-मई में हो सकता है लोकार्पण

वाराणसी: बनारस में देश के पहले अर्बन ट्रांसपोर्ट के रूप में रोपवे प्रोजेक्ट की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के रूप में की थी. क्योंकि पुरातन शहर बनारस में मेट्रोमैन श्रीधरन ने मेट्रो और मोनो रेल चलाने में असमर्थता जाहिर कर दी थी. इसके बाद प्रधानमंत्री ने रोपवे प्रोजेक्ट की परिकल्पना को साकार करने का बीड़ा उठाया. अधिकारियों ने उनके सपने को पूरा करने में जान लगा दी. लेकिन पीएम मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर ग्रहण लगता हुआ दिखाई दे रहा है. प्रधानमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन सगी बहनों की याचिका पर रोक लगाने का आदेश दिया है.

तीन बहनों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोकः बनारस में रोपवे का निर्माण स्विट्जरलैंड की कंपनी की देखरेख में हो रहा है. नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया कार्यशाली संस्था के तौर पर काम कर रही है . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को आने वाले 3 महीना में शुरू करने की भी तैयारी चल रही है. इस वक्त फर्स्ट फेज के ट्रायल के लिए गोंडोला को तारों पर दौड़ाया भी जा रहा है, लेकिन इन सारी चीजों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. क्योंकि वाराणसी की रहने वाली तीन सगी बहनों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमएम सुंदरेष और संजय करोल की पीठ ने तथ्यों पर विचार विमर्श करने के बाद संबंधित प्राधिकरण को रोपवे के निर्माण की यथा स्थिति बनाए रखते हुए उसे तत्काल रोकने और अगली सुनवाई अप्रैल में करने के आदेश दिए हैं.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली महिला ने बताई पूरी कहानी. (Video Credit; ETV Bharat)

पिलर नंबर 29 पर फंसा पेंचः वाराणसी की रहने वाली मंशा सिंह, उनकी बहन सुचित्रा सिंह और प्रतिमा सिंह की फ्री होल्ड प्रॉपर्टी गोदौलिया इलाके में है. तीन-तीन मंजिल के मकान के साथ ही आगे पांच दुकानें भी हैं, जिसे रोपवे प्रोजेक्ट के लिए तोड़ दिया गया है. यहां रोपवे के पिलर नंबर 29 यानी अंतिम पिलर का काम जारी था. तीनों महिलाओं ने एप्लीकेशन देकर पहले हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी कि उनकी प्रॉपर्टी का न ही अधिग्रहण किया गया है न ही मुआवजे की रकम दी गई है. जिसकी वजह से पहले हाई कोर्ट में मामला जारी है. हाई कोर्ट में सुनवाई की जा रही थी लेकिन अगली तिथि 18 मार्च मिलने की वजह से इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए तथ्यों के आधार पर तत्काल इस प्रोजेक्ट को रोकने और अगली सुनवाई 15 अप्रैल को करने के आदेश दिए हैं. इसके बाद इस प्रोजेक्ट के सुपरविजन करने वाले वाराणसी विकास प्राधिकरण के सामने कई चुनौतियां आ गई हैं.

वाराणसी रोपवे प्रोजेक्ट की खासियत.
वाराणसी रोपवे प्रोजेक्ट की खासियत. (ETV Bharat Gfx)

वाराणसी प्राधिकरण ने कहां की गलतीः हालांकि इस पूरे मामले में कानूनी जानकार वाराणसी विकास प्राधिकरण की ही गलती मान रहे हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता विनय शंकर तिवारी का कहना है कि नियम के मुताबिक जब भूमि अधिग्रहण होता है उसके 1 साल के अंदर पैसा संबंधित पक्ष के खाते में ट्रांसफर होना अनिवार्य है. यदि ऐसा नहीं होता तो अधिग्रहण रद्द कर दिया जाता है. उसके लिए भी नियम यही है कि अधिग्रहण से पहले नोटिस जारी किया जाता है. नोटिस के बाद जब डॉक्यूमेंट और सारी चीज जमा हो जाती हैं, उसके बाद ही वहां पर संबंधित विभाग या संस्था कार्य शुरू कर सकती है. अधिवक्ता का कहना है कि नियम यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि का चार गुना और शहरी क्षेत्र में अधिग्रहण होने वाली भूमि सरकारी सर्किल रेट के दोगुना हिसाब देना होता है, मार्केट रेट के हिसाब से नहीं.

वाराणसी रोपवे प्रोजेक्ट की खासियत.
वाराणसी (ETV Bharat Gfx)

मुआवजे की रकम बढ़ाने के लिए कोर्ट पहुंची बहनेंः वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग का कहना है कि कोर्ट में सिर्फ पिलर नंबर 29 के लिए आदेश दिया है. जिसका हमारे पूरे प्रोजेक्ट पर कोई असर नहीं पड़ेगा. तीन महिलाओं द्वारा पहले हाई कोर्ट में एप्लीकेशन दी गई थी. जहां हमने अपना पक्ष मजबूती से रखा है. सुप्रीम कोर्ट में भी अपना पक्ष रखेंगे. यह पूरा मामला सिर्फ और सिर्फ मुआवजे की रकम को बढ़ाने के लिए है. मुआवजे की रकम नियम के मुताबिक सर्किल रेट की दोगुनी होती है, जो हम देने के लिए भी तैयार हैं.

वाराणसी विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष.
वाराणसी विकास प्राधिकरण उपाध्यक्ष. (ETV Bharat Gfx)

तीनों बहनों को 6 करोड़ मुआवजा देने को तैयारः पुलकित गर्ग का कहना है कि हमने तीनों बहनों से कहा था कि रजिस्ट्री पेपर और सारी चीज जमा कीजिए और नोटिस भी उनको जारी किया गया है. लेकिन उन्होंने न ही कोई पेपर जमा किया ना ही रजिस्ट्री के लिए तैयार हुई. उन्होंने अपना मकान खुद खाली किया था, हमने कोई जोर जबरदस्ती नहीं की थी. इसकी वजह से हमने उनके मकान को हटाने के बाद ही अपना काम शुरू किया, लेकिन अब वह इसका विरोध कर नहीं है और पैसे बढ़ाने का भी दबाव बनाया जा रहा है. जिसकी वजह से हम कोर्ट से अपनी बातों को रखकर चीजों को स्पष्ट करने का अनुरोध करेंगे. वाराणसी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष का कहना है कि हम उन्हें लगभग 6 करोड़ रुपए देने को तैयार हैं, लेकिन वह उससे भी ज्यादा की डिमांड कर रहे हैं जिसके कारण अभी तक मामला फंसा हुआ है.


बुरे वक्त के लिए पिता और भाइयों ने तोहफे में दी थी जमीनः इस मामले में मनसा सिंह और प्रतिमा सिंह वादी तो है लेकिन पूरा प्रकरण सुचित्रा सिंह और उनके पति सुरेंद्र सिंह देख रहे हैं. सुचित्रा सिंह ने ETV Bharat से इस मामले पर बात करते करते-करते रोने लगी. आंसू भरी आंखों के साथ सुचित्रा सिंह ने कहा 'मुझे मेरे पिता और मेरे भाइयों की ओर से यह जमीन तोहफे में मिली थी, ताकि बुरे वक्त में इसका इस्तेमाल कर सकें. लेकिन जो स्थिति बन रही है, उससे तो यही लग रहा है कि हम अपने आने वाले भविष्य को कैसे सुरक्षित करेंगे. बाजार रेट के मुताबिक इस जमीन की कीमत लगभग 32 करोड़ रुपए है, लेकिन हमें सरकारी रेट के हिसाब से 6 करोड़ रुपए मिलना है. तीनों बहनों के पास क्या पैसा ही आएगा. जिसके कारण हम अपना आगे का भविष्य सुरक्षित करेंगे. यह जमीन हमारे पिता जी ने खरीदी थी. बाद में 2014 में हमारे भाइयों ने हमें यह गिफ्ट कर दी. पिताजी ने पहले से ही यह हमारे नाम कर रखी थी, लेकिन सरकार हमारा नहीं पक्ष लेना चाहती है. हम तो प्रधानमंत्री मोदी और योगी को बहुत मानते हैं लेकिन हमें यह उम्मीद नहीं थी कि हमारे साथ ही ऐसा होगा.

शिकायतकर्ता सुचित्रा सिंह.
शिकायतकर्ता सुचित्रा सिंह. (ETV Bharat Gfx)

4083 स्क्वायर फीट जमीन के बदले मिले 32 करोड़ मुआवजाः सुचित्रा के पति सुरेंद्र सिंह का कहना है कि उनकी मांग है कि हमें 4083 स्क्वायर फीट जमीन के बदले उतनी ही जमीन कहीं शहर में दी जाए. जो रकम सरकार दे रही है, हम उसे लेने के लिए तैयार हैं. अगर वह जमीन नहीं देते हैं तो हमें उसके बदले में 32 करोड़ रुपये मुआवजा दे, जो मार्केट वैल्यू है. करोड़ों की जमीन का हमें सिर्फ कुछ ही पैसा मिल रहा है. जिसके कारण हमारे लिए भी तो संकट है. इस वजह से हमने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. सुरेंद्र सिंह ने कहा कि हमें ना ही मुआवजा का पैसा मिला है, ना ही अधिग्रहण की कार्रवाई को पूरा किया गया है, ना ही कोई नोटिस जारी किया गया है. हमें निकाल कर 30 दिसंबर 2024 को मकान गिरा दिया गया.

डेवलपर और प्रोजेक्ट प्लानर श्याम लाल सिंह का कहना है कि वाराणसी में किसी भी प्रोजेक्ट पर काम करना और उसके पुरातन स्वरूप को सुरक्षित रखना ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है. जैसे विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण जिस वक्त हुआ था, उस समय 390 मकान को गिराकर इस पूरे कॉरिडोर की भव्यता और दिव्यता के साथ इसे तैयार करना था. यह चैलेंज था, उस वक्त भी दिक्कतें बहुत सी आई थी. सबसे बड़ी दिक्कत तो मकान की खरीद फरोख्त में आई थी. कई बार कोर्ट के चक्कर भी लगे थे, लेकिन प्रशासन और लोगों ने मिलकर इसका समाधान निकाला.

अब तक 300 करोड़ रुपये खर्चः गौरतलब है कि वाराणसी रोपवे प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है. इस प्रोजेक्ट में 300 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके हैं. इस प्रोजेक्ट के तैयार होने के बाद सबसे बड़ा फायदा तो यहां की ट्रैफिक व्यवस्था में मिलेगा ही साथ ही पर्यटकों के लिए भी एक नया एक्सपीरियंस होगा. पर्यटन कारोबार से जुड़े राहुल सिंह का कहना है कि ट्रांसपोर्ट सर्विसेज के तौर पर बनारस में ऑटो ई रिक्शा, रिक्शा संचालित होते हैं. लेकिन ट्रैफिक जाम इतना ज्यादा होता है कि पर्यटक परेशान हो जाते हैं. ऐसे में बनारस का यह रोपवे प्रोजेक्ट पर्यटन कारोबार के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाला है. वाराणसी के इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट में भी इसका महत्वपूर्ण रोल होगा. क्योंकि ट्रैफिक व्यवस्था ध्वस्त होने के कारण बहुत सी चीजों में परेशानियां होती हैं. जब ट्रैफिक व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित होगी और रोपवे का संचालन सही तरीके से होगा तो इसका असर सीधे-सीधे इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट पर भी पड़ेगा. रोपवे वाले रूट पर बहुत सी सुविधाओं के साथ लोगों को भी फायदा मिलेगा. स्थानीय लोगों का कहना है किबनारस में कुछ नया और अनूठा होना जरूरी है. इसलिए रोपवे प्रोजेक्ट बंद नहीं होना चाहिए. फिलहाल यह रोपवे प्रोजेक्ट जब तैयार होगा तभी इसका फायदा मिलेगा, लेकिन अभी यह पूरा प्रोजेक्ट आधार में लटक गया है.

15 अप्रैल को होगी स्थिति साफः फिलहाल अब 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई में रोपवे प्रोजेक्ट का भविष्य तय होगा. इस पूरे प्रोजेक्ट पर रोक लगेगी कि सिर्फ पिलर नंबर 29 का काम ही प्रभावित होगा या फिर वाराणसी विकास प्राधिकरण इस प्रोजेक्ट को पीड़ित पक्ष के साथ मिलकर समझौते के साथ आगे बढ़ाएगी.

इसे भी पढ़ें-वाराणसी रोपवे परियोजना ; पहले चरण का काम लगभग पूरा, अप्रैल-मई में हो सकता है लोकार्पण

Last Updated : Feb 26, 2025, 9:54 PM IST
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