वाराणसी: तंग गलियों का शहर बनारस, जहां न सिर्फ सभ्यता और संस्कृति का अद्भुत समागम देखने को मिलता है, बल्कि यहां की शिल्पकला, बुनकारी और जरदोजी की अद्भुत कला भी इस शहर को एक अलग पहचान देती है. सकरी गलियों में हथकरघों की खटर-पटर के बीच तैयार होने वाली डिजाइन बनारसी साड़ी के प्रेमियों के साथ रेशमी कपड़ों और जरदोजी के दीवानों को भी अपनी तरफ आकर्षित करती है.
यही वजह है कि क्रिसमस के महापर्व पर रेशम और जरी से तैयार यहां के लबादे विदेशों तक जाते हैं. दुनिया के कई देशों में इन कपड़ों को पहनकर पादरी क्रिसमस के मौके पर होने वाली प्रार्थना सभा में शिरकत करते हैं. ऐसे में क्रिसमस के मौके पर विदेशों में भी काशी की भागीदारी दिखाई देती है. पश्चिमी देशों में क्रिसमस पर होने वाले भव्य आयोजनों के दौरान चर्च में पादरी और धार्मिक अनुष्ठान से जुड़े अन्य लोग काशी के रोमन टेक्निक हैंड एंब्रायडरी से तैयार होने वाले लबादे, दुपट्टे और टोपी पहनकर सभी धार्मिक कार्यक्रम संपूर्ण कराते हैं. काशी से पश्चिमी देशों का यह नाता कोई नया नहीं है, बल्कि कई सालों से शहर के आदमपुर इलाके के कटेहर मोहल्ले में रहने वाले बुनकर स्पेशल ऑर्डर में इन कपड़ों को तैयार कर यहां से दूसरे देशों को भेजते हैं.
काशी अनूठी कारीगरी की है मिसाल
बनारस कटेहर इलाके के रहने वाले बुनकर सैयद हसन अंसारी बीते 15 सालों से अपनी अद्भुत कला को वेटिकन सिटी समेत ग्रीस, इटली और अमेरिका के कई चर्चों तक रहे हैं. इन चर्चों में पादरी जब बनारस में बने सुंदर कपड़ों को पहनकर क्रिसमस के धार्मिक आयोजन में पहुंचते हैं तो हर कोई मंत्रमुग्ध हो उठता है.
2005 से शुरू हुआ कारोबार
बुनकर सैयद हसन अंसारी का कहना है कि 2005 में वह पहली बार जर्मनी गए थे. जर्मनी, यूरोप और रोम समेत कई देशों की यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात वहां पर बड़े कारोबारियों से हुई. वे लोग बनारसी हैंडलूम के कायल हैं और उन्होंने अपने फैब्रिक के कुछ डिजाइन उस समय सैयद अंसारी को दिखाए. साथ ही उन लोगों ने अंसारी से बनारसी जरी-जरदोजी और बनारसी कपड़े पर उस डिजाइन को विकसित करने की बात कही.
इस बात पर सैयद अंसारी ने हामी भरी और बनारस आने के बाद स्पेशल फैब्रिक तैयार कर उस पर क्रॉस और जरी जरदोजी से अलग-अलग डिजाइन तैयार किए. इसके बाद लबादे, दुपट्टे और टोपी डिजाइन कर वहां भेजे. उन लोगों को वे डिजाइन बेहद पसंद आए. तभी से विदेशों से उनके पास ऑर्डर आने शुरू हो गए. हर साल क्रिसमस के पहले ही रोम, इटली और अमेरिका समेत जर्मनी के अलग-अलग हिस्सों से बड़े ऑर्डर यहां आते हैं. इस बार भी करोड़ों रुपये का सामान ऑर्डर पर तैयार कर भेजे जा चुके हैं.
गाउन के लिए बनाया जाता है स्पेशल कपड़ा
सैयद हसन अंसारी का कहना है कि क्रिसमस के मौके पर पश्चिमी देशों के पादरी उनके डिजाइन और तैयार किए गए कपड़े पहनकर धार्मिक अनुष्ठानों को पूरा करते हैं. इसके लिए सैकड़ों साल पुराने गाउन और स्टॉल की तस्वीरें उन्हें भेजी जाती हैं. जिसको वह अपने नए डिजाइन के आधार पर तैयार करके विदेशों में भेजते हैं.
कपड़ों को बनाने में लगता है वक्त
बुनकर हसन अंसारी का कहना है कि इन स्पेशल कपड़ों को तैयार करने व कारीगरों को जरदोजी का काम पूरा कराने में लगभग 8 महीने का वक्त लगता है. लबादे की डुप्लीकेट कॉपी पुराने परिधान की तरह बनाने के लिए उसमें सोने-चांदी की जरी का प्रयोग भी किया जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि कोरोना काल में हुए लॉकडाउन के बाद भी इस क्रिसमस के पर्व पर बनारस के बुनकरों को अच्छे ऑर्डर मिले हैं. जिसे तैयार कर यहां से भेजा चुका है.