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होम आइसोलेशन में इन चीजों का रखें खास ध्यान, रहेंगे सुरक्षित

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Published : May 22, 2021, 2:36 PM IST

एक तरफ जहां कोरोना वायरस से संक्रमित हजारों मरीज अस्पतालों की ओर भागे तो कई मरीज ऐसे भी थे, जो होम आइसोलेशन में रहकर ठीक हो गए. ऐसे मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. वहीं इन सबके बीच होम आइसोलेशन में रहने वाले मरीजों के द्वारा कोरोना प्रोटोकॉल का पालन किए जाने को लेकर सवाल उठ रहे हैं. ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट में जानिए कि हम होम आइसोलेशन में किन बातों का ध्यान रखकर सुरक्षित रह सकते हैं...

home isolation guideline in varanasi
वाराणसी में होम आइसोलेशन गाइडलाइन.

वाराणसी: कोविड-19 के संक्रमण ने जिस तरह से रफ्तार पकड़ी और लोग अस्पतालों की तरफ भागे, वह कहीं न कहीं चिंता बढ़ाने वाला जरूर था, लेकिन बहुत से ऐसे लोग थे जो अपने घरों पर ही रह कर ठीक हो गए. होम आसोलेशन में रहने वाले मरीजों के ठीक होने के आंकड़े में भी काफी तेजी से इजाफा हो रहा है, लेकिन इन सबके बीच होम आइसोलेशन में रहने वाले लोगों की तरफ से कोविड-19 प्रोटोकॉल के फॉलो किए जाने या ना किए जाने को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं. जिन लोगों के मकान बड़े हैं या जो लोग अलग कमरे में खुद को होम आइसोलेशन में अपने परिवार के साथ सुरक्षित रख सकते हैं, उनके लिए तो होम आइसोलेशन या भीड़-भाड़ से अलग होकर रहना एक बेहतर विकल्प है, लेकिन झोपड़पट्टी या फिर एक कमरे के किराए के मकान से लेकर अपार्टमेंट कल्चर में रहने वाले परिवारों के लिए क्या होम आइसोलेशन सुरक्षित है, इसको लेकर सवाल उठ रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट...

सवाल यह उठता है कि यदि किसी संक्रमित व्यक्ति के रहने के साथ ही उसके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शौचालय का इस्तेमाल घर के अन्य लोगों द्वारा भी किया जा रहा है तो क्या ऐसी स्थिति में इस वायरस का प्रसार संभव है. निश्चित तौर पर यह संभव है. जानकारों के साथ ही अधिकारियों का साफ तौर पर कहना है कि यह बार-बार कहा जा रहा है कि संक्रमित व्यक्ति परिवार या समाज से बिल्कुल अलग रहे, लेकिन जिनके पास सुविधा या व्यवस्था नहीं है, वह सरकारी तंत्र का प्रयोग करके एल-1 हॉस्पिटल से लेकर निगरानी समितियों के संपर्क में आने के बाद आश्रय केंद्रों में आइसोलेट या क्वारंटाइन हो सकते हैं.

पॉजिटिव या संशय होने पर अलग कमरे में रहना ही सुरक्षित
दरअसल, कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में खुद के साथ परिवार को सुरक्षित रखना एक बड़ा चैलेंज है, क्योंकि बहुत से लोगों के पास होम आइसोलेशन या होम क्वारंटाइन होने की स्थिति नहीं होने के बाद भी वह अस्पताल जाने से बचते हैं और खुद को घर पर ही रहना बेहतर समझते हैं, लेकिन ऐसे लोग जिनके पास अलग कमरों की व्यवस्था नहीं है, वे इस खतरनाक वायरस के संक्रमण को और लोगों तक भी फैला सकते हैं. इस बारे में मेडिकल एक्सपर्ट डॉक्टर अनिल गुप्ता का साफ तौर पर कहना है कि यह बातें आज से नहीं लंबे वक्त से डब्ल्यूएचओ और अन्य एक्सपर्ट डॉक्टरों द्वारा बताई जा रही है कि संक्रमित होने की हालत में या फिर सिम्टम्स दिखने पर ही व्यक्ति को परिवार और अन्य लोगों से खुद को अलग कर लेना चाहिए. क्योंकि कई बार लोगों को यह पता भी नहीं होता कि वह संक्रमित हैं और वायरस का फैलाव तेजी से होने लगता है.

home isolation guideline in varanasi
सीएमओ कार्यालय.
'घर पर नहीं व्यवस्था तो एल-1 अस्पताल है विकल्प'
डॉक्टर अनिल की मानें तो ऐसी स्थिति में यदि किसी भी व्यक्ति को यह लग रहा है कि वह संक्रमित है या उसके अंदर कोई लक्षण है तो वह खुद को परिवार से सबसे पहले अलग करे और अगर घर एक कमरे का है या छोटा है या परिवार से अलग रहने की व्यवस्था नहीं है तो तत्काल अपनी जांच करवाएं और संबंधित जिले की मेडिकल हेल्पलाइन के जरिए निगरानी समिति से संपर्क करके आश्रय केंद्र या फिर एल-1 अस्पताल में ही जाकर भर्ती हों. एल-1, एल-2 और एल-3 तीन केटेगरी के हॉस्पिटल्स हैं, जहां पर हल्के लक्षण वाले, कुछ ज्यादा गंभीर लक्षण वाले और बेहद गंभीर लक्षण वाले मरीजों को अलग-अलग रखा जा रहा है.

home isolation guideline in varanasi
इंटीग्रेटेड कोविड कमांड कंट्रोल सेंटर.


एल-1 अस्पतालों में हल्के लक्षण वाले या नॉन सिंप्टोमेटिक मरीजों को रखने की व्यवस्था की गई है. ऐसी स्थिति में ग्रामीण क्षेत्र के लोग निगरानी समितियों से संपर्क करके अलग-अलग आश्रय केंद्रों में शरण ले सकते हैं और शहर के लोग अस्पतालों में भर्ती हो सकते हैं.

जरा सी गलती पड़ सकती है भारी
एक्सपर्ट की मानें तो यह बेहद जरूरी है कि भीड़-भाड़ वाले स्थान से लेकर घरों में लोगों के संपर्क में किसी हालत में नहीं आना है क्योंकि यह वायरस इतना तेज है कि एक बार में 20 से 25 लोगों को बंद कमरे में अकेले संक्रमित कर सकता है. ऐसी स्थिति में यह बेहद जरूरी है कि लोगों से दूरी बनाकर संक्रमित व्यक्ति सिंगल रूम में रहे. सिम्टम्स आने पर संशय होने की स्थिति में खुद को दूर कर लेना ही बेहतर विकल्प है. किसी भी हालत में ऐसे स्थान पर वह न रहे, जहां भीड़ भाड़ हो या घर में रहने की व्यवस्था न हो.

न हो व्यवस्था तो लें मदद
अधिकारियों का भी साफ तौर पर कहना है कि यह बातें बार बताई जा चुकी हैं कि संक्रमित व्यक्ति को किसी के संपर्क में नहीं आना है. घर पर रहने की व्यवस्था नहीं है तो मेडिकल टीम से संपर्क करके अस्पतालों में या फिर निगरानी समितियों से संपर्क कर आश्रय केंद्रों में आइसोलेट होने की व्यवस्था की जा सकती है, लेकिन घर पर संक्रमित व्यक्ति को अलग रहना है. वह भी कम से कम 14 दिनों तक या जब तक रिपोर्ट निगेटिव न आ जाए.

ये भी पढ़ें: अस्पताल से नहीं मिले CCTV फुटेज, पीएम-सीएम से गुहार लगाएंगे छन्नूलाल मिश्र

मदद के लिए इस नंबर पर करें फोन
कोरोना हेल्पलाइन- 0542- 2508077, 8114001673

वाराणसी: कोविड-19 के संक्रमण ने जिस तरह से रफ्तार पकड़ी और लोग अस्पतालों की तरफ भागे, वह कहीं न कहीं चिंता बढ़ाने वाला जरूर था, लेकिन बहुत से ऐसे लोग थे जो अपने घरों पर ही रह कर ठीक हो गए. होम आसोलेशन में रहने वाले मरीजों के ठीक होने के आंकड़े में भी काफी तेजी से इजाफा हो रहा है, लेकिन इन सबके बीच होम आइसोलेशन में रहने वाले लोगों की तरफ से कोविड-19 प्रोटोकॉल के फॉलो किए जाने या ना किए जाने को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं. जिन लोगों के मकान बड़े हैं या जो लोग अलग कमरे में खुद को होम आइसोलेशन में अपने परिवार के साथ सुरक्षित रख सकते हैं, उनके लिए तो होम आइसोलेशन या भीड़-भाड़ से अलग होकर रहना एक बेहतर विकल्प है, लेकिन झोपड़पट्टी या फिर एक कमरे के किराए के मकान से लेकर अपार्टमेंट कल्चर में रहने वाले परिवारों के लिए क्या होम आइसोलेशन सुरक्षित है, इसको लेकर सवाल उठ रहा है.

स्पेशल रिपोर्ट...

सवाल यह उठता है कि यदि किसी संक्रमित व्यक्ति के रहने के साथ ही उसके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शौचालय का इस्तेमाल घर के अन्य लोगों द्वारा भी किया जा रहा है तो क्या ऐसी स्थिति में इस वायरस का प्रसार संभव है. निश्चित तौर पर यह संभव है. जानकारों के साथ ही अधिकारियों का साफ तौर पर कहना है कि यह बार-बार कहा जा रहा है कि संक्रमित व्यक्ति परिवार या समाज से बिल्कुल अलग रहे, लेकिन जिनके पास सुविधा या व्यवस्था नहीं है, वह सरकारी तंत्र का प्रयोग करके एल-1 हॉस्पिटल से लेकर निगरानी समितियों के संपर्क में आने के बाद आश्रय केंद्रों में आइसोलेट या क्वारंटाइन हो सकते हैं.

पॉजिटिव या संशय होने पर अलग कमरे में रहना ही सुरक्षित
दरअसल, कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में खुद के साथ परिवार को सुरक्षित रखना एक बड़ा चैलेंज है, क्योंकि बहुत से लोगों के पास होम आइसोलेशन या होम क्वारंटाइन होने की स्थिति नहीं होने के बाद भी वह अस्पताल जाने से बचते हैं और खुद को घर पर ही रहना बेहतर समझते हैं, लेकिन ऐसे लोग जिनके पास अलग कमरों की व्यवस्था नहीं है, वे इस खतरनाक वायरस के संक्रमण को और लोगों तक भी फैला सकते हैं. इस बारे में मेडिकल एक्सपर्ट डॉक्टर अनिल गुप्ता का साफ तौर पर कहना है कि यह बातें आज से नहीं लंबे वक्त से डब्ल्यूएचओ और अन्य एक्सपर्ट डॉक्टरों द्वारा बताई जा रही है कि संक्रमित होने की हालत में या फिर सिम्टम्स दिखने पर ही व्यक्ति को परिवार और अन्य लोगों से खुद को अलग कर लेना चाहिए. क्योंकि कई बार लोगों को यह पता भी नहीं होता कि वह संक्रमित हैं और वायरस का फैलाव तेजी से होने लगता है.

home isolation guideline in varanasi
सीएमओ कार्यालय.
'घर पर नहीं व्यवस्था तो एल-1 अस्पताल है विकल्प'
डॉक्टर अनिल की मानें तो ऐसी स्थिति में यदि किसी भी व्यक्ति को यह लग रहा है कि वह संक्रमित है या उसके अंदर कोई लक्षण है तो वह खुद को परिवार से सबसे पहले अलग करे और अगर घर एक कमरे का है या छोटा है या परिवार से अलग रहने की व्यवस्था नहीं है तो तत्काल अपनी जांच करवाएं और संबंधित जिले की मेडिकल हेल्पलाइन के जरिए निगरानी समिति से संपर्क करके आश्रय केंद्र या फिर एल-1 अस्पताल में ही जाकर भर्ती हों. एल-1, एल-2 और एल-3 तीन केटेगरी के हॉस्पिटल्स हैं, जहां पर हल्के लक्षण वाले, कुछ ज्यादा गंभीर लक्षण वाले और बेहद गंभीर लक्षण वाले मरीजों को अलग-अलग रखा जा रहा है.

home isolation guideline in varanasi
इंटीग्रेटेड कोविड कमांड कंट्रोल सेंटर.


एल-1 अस्पतालों में हल्के लक्षण वाले या नॉन सिंप्टोमेटिक मरीजों को रखने की व्यवस्था की गई है. ऐसी स्थिति में ग्रामीण क्षेत्र के लोग निगरानी समितियों से संपर्क करके अलग-अलग आश्रय केंद्रों में शरण ले सकते हैं और शहर के लोग अस्पतालों में भर्ती हो सकते हैं.

जरा सी गलती पड़ सकती है भारी
एक्सपर्ट की मानें तो यह बेहद जरूरी है कि भीड़-भाड़ वाले स्थान से लेकर घरों में लोगों के संपर्क में किसी हालत में नहीं आना है क्योंकि यह वायरस इतना तेज है कि एक बार में 20 से 25 लोगों को बंद कमरे में अकेले संक्रमित कर सकता है. ऐसी स्थिति में यह बेहद जरूरी है कि लोगों से दूरी बनाकर संक्रमित व्यक्ति सिंगल रूम में रहे. सिम्टम्स आने पर संशय होने की स्थिति में खुद को दूर कर लेना ही बेहतर विकल्प है. किसी भी हालत में ऐसे स्थान पर वह न रहे, जहां भीड़ भाड़ हो या घर में रहने की व्यवस्था न हो.

न हो व्यवस्था तो लें मदद
अधिकारियों का भी साफ तौर पर कहना है कि यह बातें बार बताई जा चुकी हैं कि संक्रमित व्यक्ति को किसी के संपर्क में नहीं आना है. घर पर रहने की व्यवस्था नहीं है तो मेडिकल टीम से संपर्क करके अस्पतालों में या फिर निगरानी समितियों से संपर्क कर आश्रय केंद्रों में आइसोलेट होने की व्यवस्था की जा सकती है, लेकिन घर पर संक्रमित व्यक्ति को अलग रहना है. वह भी कम से कम 14 दिनों तक या जब तक रिपोर्ट निगेटिव न आ जाए.

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मदद के लिए इस नंबर पर करें फोन
कोरोना हेल्पलाइन- 0542- 2508077, 8114001673

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