वाराणसी : कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों से होकर गुजरता है. यहीं वज़ह हैं कि उत्तर प्रदेश में होने वाला चुनाव काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. पर यहां की राजनीति में एक अहम ध्रुव ब्राह्मण वोटर हैं.
इतिहास गवाह है कि जब भी ब्राह्मणों ने एकजुट होकर किसी भी पार्टी को वोट दिया तो वह पार्टी न केवल सत्ता में आई बल्कि दिल्ली की सत्ता पर भी या तो काबिज हुई या किंग मेकर की भूमिका में रही.
बता दें कि यूपी में 403 में से 115 सीटों का निर्णय पूरी तरह से ब्राह्मण ही करते हैं. इसके अलावा करीब 100 अन्य सीटों पर भी जनमत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
शायद यही वजह है कि आजादी के बाद से कांग्रेस का पूरा रूझान ब्राह्मण वोटरों की ओर रहा. इसी के चलते उत्तर प्रदेश में उसने करीब 40 वर्षों तक निष्कंटक राज किया. पर ब्राह्मणों का वोट बैंक खसकते ही न केवल यह पार्टी सत्ता से बाहर हुई बल्कि आज यह प्रदेश में अपने अस्तित्व के लिए भी संघर्ष करती दिखाई देती है.
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पिछले 20-30 सालों में मायावती रहीं हों, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश या फिर योगी आदित्यनाथ. सभी की ताजपोशी में उत्तर प्रदेश के लगभग 13 फ़ीसदी ब्राह्मणों का प्रमुख योगदान रहा है.
यही वजह है कि वर्तमान में सभी राजनीतिक पार्टियां ब्राह्मणों को लुभाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहीं हैं. जहां सपा भगवान परशुराम की प्रतिमा लगवा रही है तो बसपा ब्राह्मण सम्मेलनों को आयोजित कर ब्राह्मणों को अपने पाले में करने की जुगत लगा रही है.
वहीं, भाजपा ब्राह्मणों को अपनी ओर करने के लिए हिंदुत्व और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों को हथियार बना रही है. इस बीच इन पार्टियों द्वारा की जा रही इन तमाम क़वायदों को यूपी का ब्राह्मण किस नजरिए से देखता है, इसे लेकर काशी में ब्राह्मणों ने अपनी बात रखी.
यहां के ब्राह्मणों ने कहा कि हमारा वोट उसके लिए है जो ब्राह्मणों के विकास पर ध्यान देगा, जो ब्राह्मणों का समझेगा. अभी हमारे सामने कोई ऐसा बेहतर विकल्प नहीं आया है. कहा कि वर्तमान में राजनीतिक पार्टियों द्वारा दिए जाने वाले लॉलीपॉप के चक्कर में ब्राह्मण नहीं आने वाले.