वाराणसी: इंटीग्रेटेड काशी कोविड रिस्पॉन्स सेंटर 'मेस' (MASE) यानि मॉनिटरिंग (निगरानी), एनालिसिस (विश्लेषण), स्ट्रेटजी (रणनीति) और एक्सीक्यूशन (क्रियान्वयन) के फॉर्मूले पर काम कर रहा है. इसका फार्मूला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मूल मंत्र ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट से निकला है. सीएम योगी के वाराणसी मॉडल से कोविड पर तेजी से कंट्रोल हो रहा है. कोरोना को काबू करने के लिए कमांड सेंटर एक छत के नीचे रातों दिन काम कर रहा है और सभी को चिकित्सा सेवा मुहैया करा रहा है.
कमांड सेंटर सिर्फ फौरी तौर पर ही मदद नहीं करता बल्कि कोरोना को कंट्रोल करने की दीर्घकालीन रणनीति भी बनाता है, जिससे कोरोना के पांव पसारने से पहले ही उसके कदम रोक दिए जाते हैं. इसके लिए स्वास्थ विभाग, प्रशासन और अन्य कई विभाग एक साथ मिल कर काम कर रहे है. पिछले दिनों यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ 'इंटीग्रेटेड काशी कोविड रिस्पॉन्स सेंटर' का निरीक्षण भी किये थे और आवश्यक निर्देश दिए थे.
छोटी-छोटी चीजों पर है बारीक नजर
इंटीग्रेटेड काशी कोविड कमांड सेंटर रोजाना हजारों लोगों की मदद करता है, लेकिन ये कमांड सेंटर अपने को इसी काम तक सीमित नहीं किये हुए हैं. इसकी सबसे खास बात ये है कि यह कोविड को रोकने, फैलने व इलाज की रणनीति भी बनाता है. यह सेंटर योगी के वाराणसी मॉडल मेस (MASE) के फॉर्मूले पर काम करता है. मतलब रोजाना आने वाली शिकायत हो या किसी क्षेत्र में बढ़ रहे कोरोना के मामलों को कैसे कंट्रोल किया जाए, सभी की बारीकी से रणनीति बनाई जाती है.
कोविड मरीजों से सम्बंधित जानकारी जनपद के अलग-अलग क्षेत्रों से रोजाना कंट्रोल रूम में आती हैं, जिसे स्वास्थ विभाग के अलावा और कई विभाग के लोग भी संकलित करते हैं. मसलन टेस्ट रिपोर्ट, संक्रमित मरीजों की संख्या, ठीक होने वाले मरीजों की संख्या, मौतों की संख्या, टीकारण की संख्या, दवा वितरण, सैनिटाइजेशन, एम्बुलेंस, अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों की संख्या, आइसोलेशन बेड, होम आइसोलेशन में रह रहे मरीजों के आंकड़े, जैसे कई प्रकार के डाटा रोज के आधार पर कमांड सेंटर में दर्ज होते हैं.
कुछ ऐसी स्ट्रेटजी से हो रहा काम
इंटीग्रेटेड काशी कोविड रिस्पॉन्स सेंटर के सह नोडल अधिकारी आईएएस नंद किशोर कलाल, जो चिकित्सक भी हैं, ने बताया कि कोविड कमांड सेंटर कोविड की सूक्ष्म व बड़े पैमाने पर मॉनिटरिंग करता है. इससे प्राप्त आकड़ों का 'एनॉलिसिस' यानी विश्लेषण किया जाता है. मतलब डाटा का सूक्ष्म परिक्षण होता है. जैसे किन क्षेत्रों में अधिक पॉजिटिव मरीज पाए जा रहे हैं, मौतें किस क्षेत्रों में अधिक है, किस इलाकों में ऑक्सीजन की डिमांड ज्यादा है. उन्होंने बताया कि रोज की रिपोर्ट के आधार पर डाटा एकत्रित किया जाता है, जिसके लिए शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ केंद्रों से भी मदद ली जाती है. ग्रामीण इलाकों में क्षेत्र ब्लॉक स्तर पर विभाजित है. शहरी क्षेत्रो को भी विभाजित किया गया है, जिसके नोडल अधिकारी सब डिविजनल मजिस्ट्रेट रैंक के अधिकारी है. आंकड़ों के मिल जाने से ये पता चल जाता है कि किस क्षेत्रों में किन वस्तुओं की कमी है, जिसके चलते संक्रमण दर या कोरोना का केस बढ़ रहा है.
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अब शुरू होता है स्ट्रेटजी या रणनीति बनाने का काम, जिसमें विशेषज्ञ और प्रशासन मिलकर यह तय करते हैं कि किसी विशेष क्षेत्र में कोरोना के बढ़ते मरीजों को कैसे रोका जाए और संक्रमण की चेन को कैसे ब्रेक किया जाए. इसके बाद बारी आती है 'एक्सीक्यूशन' की यानी जिस क्षेत्र में कोरोना को कंट्रोल करना है, उस क्षेत्र में तेजी से काम करना ताकि संक्रमित मरीजों तक जल्द से जल्द डॉक्टर व दवा पहुंच सके. जो संक्रमित नहीं हुए हैं, उनको संक्रमण से बचाया जा सके और गंभीर मरीजों के लिए नजदीक में ही चिकित्सकीय सुविधा मुहैया हो सके.
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16 दिन के सर्वे में तेजी से गिरा ग्राफ
नंद किशोर कलाल ने बताया कि 'इंटीग्रेटेड काशी कोविड रिस्पॉन्स सेंट' की मेस रणनीति का अध्ययन वाराणसी जिले, शहर और विद्यापीठ ब्लॉक को लेकर किया गया तो 1 मई से 16 मई तक का पॉजिटिव केस का ग्राफ तेजी से घटता हुआ दिख रहा है. 1 मई को जिले में 1849 पॉजिटिव केस थे जो 16 मई तक तेजी से घट कर महज 303 रह गए. यानी 80 प्रतिशत की कमी आई. इसी तरह वाराणसी सिटी का ग्राफ देखा गया तो 718 से घट कर 202 पॉजिटिव केस ही रह गए.
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शहर में कोरोना मामलों में 70 प्रतिशत की कमी आई है. विद्यापीठ ब्लॉक में भी 'मेस' रणनीति का खासा असर देखने को मिला. इस ब्लॉक में संक्रमण का दर ज्यादा था. यहां 1 मई को 440 केस थे, वहीं जब 'इंटीग्रेटेड काशी कोविड रिस्पॉन्स सेंटर' की 'मेस' रणनीति से काम किया गया तो 16 मई तक तेजी से गिरावट आते हुए 108 केस ही रह गया. इसमें कोरोना मामलों में 75 प्रतिशत के करीब कमी दर्ज की गई.