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लोकसभा चुनाव 2024 से पहले "काशी-तमिल संगमम" के क्या हैं मायने, क्या वाराणसी से खुलेंगे दक्षिण के द्वार - UP News

PM Modi Varanasi Visit : काशी से उत्तर और दक्षिण को जोड़ने की कोशिश. ये कोशिश की जा रही है देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के माध्यम से और इस कोशिश का नाम है 'काशी-तमिल संगमम'. काशी-तमिल संगमम का पहला संस्करण 16 नवंबर से 16 दिसंबर 2022 तक आयोजित किया गया था. अब इसका दूसरा संस्करण 17 दिसंबर से शुरु होने जा रहा है. यानी उत्तर से दक्षिण को और दक्षिण को उत्तर से जोड़ने की ये कोशिश एक साल बाद फिर की जा रही है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी इस तरह का आयोजन इतनी जल्दी-जल्दी में क्यों करा रहे हैं? इसके कितने राजनीतिक फायदे मिल रहे हैं और क्या असर हो रहा है दक्षिण के संबंधों पर.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 17, 2023, 1:47 PM IST

काशी तमिल संगमम पर संवाददाता प्रतिमा तिवारी की खास रिपोर्ट.

वाराणसी: धर्म नगरी काशी एक बार फिर तमिल-काशी की एकता की साक्षी बनने को तैयार है. वाराणसी में 'काशी-तमिल संगमम' का आयोजन किया जाएगा. इस कार्यक्रम को भव्य और दिव्य बनाने की तैयारी की जा रही है. कार्यक्रम के लिए आने वाले मेहमान तमिलनाडु से ट्रेन से पहुंच रहे हैं. कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अब तक लगभग 30,000 लोगों का पंजीकरण हुआ था, जिसमें से 1500 लोगों को चुना गया है. इन्हें काशी सात शिफ्ट में पहुंचना है. तमिलनाडु और पुडुचेरी के लगभग 1500 लोगों को सात समूहों में बांटा गया है. ये सभी प्रयागराज और अयोध्या का भी भ्रमण करेंगे. रेलवे इनके लिए स्पेशल ट्रेन चला रहा है.

काशी में तमिल की क्यों याद आ रहीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए जा रहे इस आयोजन के राजनीतिक पहलू पर राजनितिक विश्लेषक टीके लारी ने बताया, 'पहले तो यह सवाल उठता है कि उनको दूसरा काशी-तमिल संगमम करने की क्या जरूरत पड़ी. इतिहास की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले भी संगमम कराए जा चुके हैं. इतनी जल्दी-जल्दी संगमम का आयोजन तो दक्षिण भारत के राजा भी नहीं करते थे, जितनी जल्दी में प्रधानमंत्री मोदी कर रहे हैं. पीएम मोदी को इतनी ही जल्दी में दो संगमम आयोजित कराने की क्या जरूरत पड़ गई? उन्हें काशी में तमिल की क्यों याद आ रही है? तमिल भाषा को लेकर पीएम इतना अधिक बेचैन क्यों हो गए हैं?'

दक्षिण भारत में वोट प्रतिशत बढ़ाने की कोशिशः टीके लारी कहते हैं, 'दक्षिण भारत में अन्नाद्रमुक अब सरेंडर मोड में हैं. डीएमके परिवारवाद से ग्रसित है. तमिलनाडु में सरकार को लेकर एंटी एंकंबेंसी है. तेलंगाना में उन्हें रिकॉर्ड तोड़ सीटें मिली हैं. इनकी सीटें सात गुना बढ़ी हैं और दो गुना इनका वोट प्रतिशत बढ़ा है. ये सारे फैक्टर्स कहीं न कहीं इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि दक्षिण भारत में भाजपा अपनी पकड़ मजबूत कर रही है. उत्तर भारत में करीब-करीब 250 सीटें हैं. यह एक बड़ा चक्र है. इसे लेकर प्रधानमंत्री मोदी काफी सतर्क हैं. अब तमिलनाडु के जरिए वह बड़ा अभियान चलाने की कोशिश कर रहे हैं.'

तेलंगाना में 7 फीसदी सीट और 2 प्रतिशत वोट बढ़ाः अगर हम बात करें कि दक्षिण से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाजपा के नेता के रूप में लगाव दिखाने से क्या फायदे हुए? तो हम देखते हैं कि कुछ दिन पहले आए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा दक्षिण में अपनी बढ़त बनाती दिखी है. तमिल को करीब रखने की कोशिश का परिणाम ये रहा कि जहां भाजपा को तेलंगाना में महज एक सीट मिली थी. वहीं इस बार के परिणाम में वह 7 सीटों से बढ़त बनाकर चल रही है. यानी कि भाजपा के खाते में अब 8 विधानसभा सीटें हैं. हालांकि, सरकार बनाने के लिहाज से यह बहुत कम नंबर है, लेकिन अगर बढ़त देखें तो वोट शेयर करीब 2 फीसदी बढ़ा है, जबकि 7 गुना सीटें बढ़ी हैं.

दक्षिण की राजनीति में ये है भाजपा का हालः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ठीक लोकसभा चुवाव-2024 से पहले ही 'काशी-तमिल संगमम' का आयोजन कर रहे हैं. ऐसे में यह गणित देखते हैं कि आखिर लोकसभा चुनाव में दक्षिण में भाजपा कहां पर दिखाई देती है. दक्षिण के 6 राज्यों में 130 लोकसभा सीटें हैं, जिसमें से बीजेपी के पास 29 सीटें हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से भाजपा सरकार में आई, लेकिन दक्षिण में कई राज्यों में खाता भी नहीं खुल सका. हालांकि कर्नाटक में 28 में से 25 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी. वहीं अगर विधायकों की बात करें तो भाजपा के पास तमिलनाडु में 4, कर्नाटक में 65, तेलंगाना में 8 विधायक हैं.

उत्तर और दक्षिण में समन्वय चाहती है भाजपाः राजनीतिक विश्लेषक प्रो. रवि प्रकाश का कहना है कि, काशी का शुरू से दक्षिण के प्रति और दक्षिण का काशी के प्रति बहुत ही गहरा लगाव रहा है. जब राजनीतिक संदर्भ में यह लगाव और तीव्र होगा तो निश्चित तौर पर इसके कुछ सकारात्मक परिणाम आएंगे. सेंटीमेंट और घटना दो चीजें होती हैं. घटनाएं एक जगह होती हैं तो छोटी सी जनसंख्या को ही जो उस घटना से संबंधित होते हैं उन्हीं को प्रभावित करती है. मगर सेंटीमेंट बड़े पैमाने पर समुदाय और समूह को प्रभावित करते हैं. जब यह संगमम होगा तो यह घटना के साथ ही सेंटीमेंट का भी काम करेगा. उत्तर और दक्षिण दोनों समुदायों में ये संदेश जाएगा कि भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो दोनों के बीच समन्वय चाहती है.

आध्यात्म से मजबूत होंगे उत्तर-दक्षिण के संबंधः काशी से तमिल का नाता बहुत पुराना है. यह संबंध राजनीतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक हैं. इस मामले में बीजेपी से माहिर खिलाड़ी कोई नहीं दिखता. काशी में विराजमान श्री काशी विश्वनाथ से तमिल का गहरा नाता है. इतिहास के मुताबिक 15वीं शताब्दी में मदुरै के राजा पराक्रम पांड्या भगवान शिव का एक मंदिर बनाना चाहते थे. उन्होंने एक शिवलिंग को वापस लाने के लिये काशी की यात्रा की थी. वहां से लौटते समय वे रास्ते में एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिये रुके. जब उन्होंने यात्रा के लिए आगे बढ़ने की कोशिश की तो शिवलिंग ले जा रही गाय ने आग बढ़ ही नहीं रही थी.

तमिलनाडु में भी हैं श्री काशी विश्वनाथः इतिहासकार बताते हैं कि, जब गाय ने आगे बढ़ने से मना कर दिया तो पराक्रम पंड्या ने इसे भगवान की इच्छा समझी. इसके बाद शिवलिंग को वहीं पर स्थापित कर दिया, जिसे बाद में शिवकाशी, तमिलनाडु के नाम से जाना जाने लगा. बताया जाता है कि जो भक्त भगवान शिव के दर्शन करने काशी (वाराणसी) नहीं जा सकते थे, उनके लिये पांड्यों ने काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था, जो आज दक्षिण-पश्चिमी तमिलनाडु में तेनकासी के नाम से जाना जाता है. यह केरल के साथ लगता है. बता दें कि आज चेन्नई से दक्षिण के मेहमानों को लेकर एक ट्रेन काशी के लिए आ रही है. जो इस संगमम में शामिल होंगे.

ये भी पढ़ेंः पीएम मोदी का बनारस का 43वां दौरा आज: 26 घंटे रुकेंगे, 19 हजार करोड़ की परियोजनाओं का शिलान्यास-उद्घाटन, काशी में घूमने भी निकलेंगे

काशी तमिल संगमम पर संवाददाता प्रतिमा तिवारी की खास रिपोर्ट.

वाराणसी: धर्म नगरी काशी एक बार फिर तमिल-काशी की एकता की साक्षी बनने को तैयार है. वाराणसी में 'काशी-तमिल संगमम' का आयोजन किया जाएगा. इस कार्यक्रम को भव्य और दिव्य बनाने की तैयारी की जा रही है. कार्यक्रम के लिए आने वाले मेहमान तमिलनाडु से ट्रेन से पहुंच रहे हैं. कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अब तक लगभग 30,000 लोगों का पंजीकरण हुआ था, जिसमें से 1500 लोगों को चुना गया है. इन्हें काशी सात शिफ्ट में पहुंचना है. तमिलनाडु और पुडुचेरी के लगभग 1500 लोगों को सात समूहों में बांटा गया है. ये सभी प्रयागराज और अयोध्या का भी भ्रमण करेंगे. रेलवे इनके लिए स्पेशल ट्रेन चला रहा है.

काशी में तमिल की क्यों याद आ रहीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए जा रहे इस आयोजन के राजनीतिक पहलू पर राजनितिक विश्लेषक टीके लारी ने बताया, 'पहले तो यह सवाल उठता है कि उनको दूसरा काशी-तमिल संगमम करने की क्या जरूरत पड़ी. इतिहास की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले भी संगमम कराए जा चुके हैं. इतनी जल्दी-जल्दी संगमम का आयोजन तो दक्षिण भारत के राजा भी नहीं करते थे, जितनी जल्दी में प्रधानमंत्री मोदी कर रहे हैं. पीएम मोदी को इतनी ही जल्दी में दो संगमम आयोजित कराने की क्या जरूरत पड़ गई? उन्हें काशी में तमिल की क्यों याद आ रही है? तमिल भाषा को लेकर पीएम इतना अधिक बेचैन क्यों हो गए हैं?'

दक्षिण भारत में वोट प्रतिशत बढ़ाने की कोशिशः टीके लारी कहते हैं, 'दक्षिण भारत में अन्नाद्रमुक अब सरेंडर मोड में हैं. डीएमके परिवारवाद से ग्रसित है. तमिलनाडु में सरकार को लेकर एंटी एंकंबेंसी है. तेलंगाना में उन्हें रिकॉर्ड तोड़ सीटें मिली हैं. इनकी सीटें सात गुना बढ़ी हैं और दो गुना इनका वोट प्रतिशत बढ़ा है. ये सारे फैक्टर्स कहीं न कहीं इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि दक्षिण भारत में भाजपा अपनी पकड़ मजबूत कर रही है. उत्तर भारत में करीब-करीब 250 सीटें हैं. यह एक बड़ा चक्र है. इसे लेकर प्रधानमंत्री मोदी काफी सतर्क हैं. अब तमिलनाडु के जरिए वह बड़ा अभियान चलाने की कोशिश कर रहे हैं.'

तेलंगाना में 7 फीसदी सीट और 2 प्रतिशत वोट बढ़ाः अगर हम बात करें कि दक्षिण से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाजपा के नेता के रूप में लगाव दिखाने से क्या फायदे हुए? तो हम देखते हैं कि कुछ दिन पहले आए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा दक्षिण में अपनी बढ़त बनाती दिखी है. तमिल को करीब रखने की कोशिश का परिणाम ये रहा कि जहां भाजपा को तेलंगाना में महज एक सीट मिली थी. वहीं इस बार के परिणाम में वह 7 सीटों से बढ़त बनाकर चल रही है. यानी कि भाजपा के खाते में अब 8 विधानसभा सीटें हैं. हालांकि, सरकार बनाने के लिहाज से यह बहुत कम नंबर है, लेकिन अगर बढ़त देखें तो वोट शेयर करीब 2 फीसदी बढ़ा है, जबकि 7 गुना सीटें बढ़ी हैं.

दक्षिण की राजनीति में ये है भाजपा का हालः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ठीक लोकसभा चुवाव-2024 से पहले ही 'काशी-तमिल संगमम' का आयोजन कर रहे हैं. ऐसे में यह गणित देखते हैं कि आखिर लोकसभा चुनाव में दक्षिण में भाजपा कहां पर दिखाई देती है. दक्षिण के 6 राज्यों में 130 लोकसभा सीटें हैं, जिसमें से बीजेपी के पास 29 सीटें हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से भाजपा सरकार में आई, लेकिन दक्षिण में कई राज्यों में खाता भी नहीं खुल सका. हालांकि कर्नाटक में 28 में से 25 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी. वहीं अगर विधायकों की बात करें तो भाजपा के पास तमिलनाडु में 4, कर्नाटक में 65, तेलंगाना में 8 विधायक हैं.

उत्तर और दक्षिण में समन्वय चाहती है भाजपाः राजनीतिक विश्लेषक प्रो. रवि प्रकाश का कहना है कि, काशी का शुरू से दक्षिण के प्रति और दक्षिण का काशी के प्रति बहुत ही गहरा लगाव रहा है. जब राजनीतिक संदर्भ में यह लगाव और तीव्र होगा तो निश्चित तौर पर इसके कुछ सकारात्मक परिणाम आएंगे. सेंटीमेंट और घटना दो चीजें होती हैं. घटनाएं एक जगह होती हैं तो छोटी सी जनसंख्या को ही जो उस घटना से संबंधित होते हैं उन्हीं को प्रभावित करती है. मगर सेंटीमेंट बड़े पैमाने पर समुदाय और समूह को प्रभावित करते हैं. जब यह संगमम होगा तो यह घटना के साथ ही सेंटीमेंट का भी काम करेगा. उत्तर और दक्षिण दोनों समुदायों में ये संदेश जाएगा कि भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो दोनों के बीच समन्वय चाहती है.

आध्यात्म से मजबूत होंगे उत्तर-दक्षिण के संबंधः काशी से तमिल का नाता बहुत पुराना है. यह संबंध राजनीतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक हैं. इस मामले में बीजेपी से माहिर खिलाड़ी कोई नहीं दिखता. काशी में विराजमान श्री काशी विश्वनाथ से तमिल का गहरा नाता है. इतिहास के मुताबिक 15वीं शताब्दी में मदुरै के राजा पराक्रम पांड्या भगवान शिव का एक मंदिर बनाना चाहते थे. उन्होंने एक शिवलिंग को वापस लाने के लिये काशी की यात्रा की थी. वहां से लौटते समय वे रास्ते में एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिये रुके. जब उन्होंने यात्रा के लिए आगे बढ़ने की कोशिश की तो शिवलिंग ले जा रही गाय ने आग बढ़ ही नहीं रही थी.

तमिलनाडु में भी हैं श्री काशी विश्वनाथः इतिहासकार बताते हैं कि, जब गाय ने आगे बढ़ने से मना कर दिया तो पराक्रम पंड्या ने इसे भगवान की इच्छा समझी. इसके बाद शिवलिंग को वहीं पर स्थापित कर दिया, जिसे बाद में शिवकाशी, तमिलनाडु के नाम से जाना जाने लगा. बताया जाता है कि जो भक्त भगवान शिव के दर्शन करने काशी (वाराणसी) नहीं जा सकते थे, उनके लिये पांड्यों ने काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था, जो आज दक्षिण-पश्चिमी तमिलनाडु में तेनकासी के नाम से जाना जाता है. यह केरल के साथ लगता है. बता दें कि आज चेन्नई से दक्षिण के मेहमानों को लेकर एक ट्रेन काशी के लिए आ रही है. जो इस संगमम में शामिल होंगे.

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