वाराणसी: शारदीय नवरात्र में शक्ति स्वरूपा जगदंबा की नौ अलग-अलग रूपों में पूजा की जाती है. पहले दिन से शुरू हुआ यह सिलसिला 9 दिनों तक लगातार चलता है और भक्त मां के अलग-अलग रूप को पूजकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. इस क्रम में आज देवी दुर्गा के छठवें में रूप यानी कात्यायनी देवी के पूजा का विधान है. माता कात्यायनी को शत्रुओं का नाश करने वाली देवी के साथ ऋषि मुनियों की तपस्या के बल पर उत्पन्न हुई देवी के रूप में जाना जाता है. वहीं वामन पुराण में कात्यायन ऋषि के आश्रम में इकट्ठा हुए शक्तिपुंज से देवी कात्यायनी की उत्पत्ति का भी जिक्र मिलता है. तो आइए जानते हैं कैसे करें माता कात्यायनी की आराधना और कैसे उन्हें प्रसन्न करें.
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दिव्य अलौकिक है मां कात्यायनी का रूप
देवी कात्यायनी के रूप तेज से भरा हुआ है. इस बारे में पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि मां का रूप दिव्य अलौकिक और प्रकाशमान है. चार भुजाओं वाली माता के दाहिने हाथ ऊपर की तरफ है. नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है. जबकि बाई और के ऊपर वाले हाथ में माता के तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल मौजूद है. सिंह पर सवार मां कात्यायनी अपने भक्तों के सभी दुखों का नाश करती हैं.
कृष्ण को पाने के लिए गोपियों ने किया था मां का पूजन
ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि देवी कात्यायनी की पूजा शत्रु का नाश करने के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है. लेकिन इससे जुड़ी एक कथा भी है जो की अविवाहित कन्याओं को मनचाहा वर पाने से जुड़ी हुई है. श्रीमद्भागवत में भी माता कात्यायनी का जिक्र है. जिसमें लाखों की संख्या में गोपियों ने एक कृष्ण को वर के रूप में पाने के लिए माता कात्यायनी की पूजा की थी और वह सफल भी हुई थी. इसलिए मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए माता कात्यायनी की पूजा करना विशेष फलदाई माना जाता है. इसके साथ ही माता कात्यायनी को रोग, भय, शोक नाश करने वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है.