वाराणसीः विधानसभा चुनाव 2022 अब सिर पर है. ऐसे में धर्मनगरी वाराणसी में अब तो चाय-पान की दुकानों पर भी राजनैतिक सरगर्मी देखने को मिलने लगी है और इसी राजनीतिक परिचर्चा के बीच ईटीवी भारत आपको वाराणसी में चल रहे राजनैतिक माहौल की तस्वीरें दिखा रहा है. आज हम आपको लेकर चलते हैं वाराणसी के शहर दक्षिणी विधानसभा की गलियों में जहां पर जमने लगी है चुनावी चौपाल और हो रही है जमकर राजनीतिक चर्चा.
गलियों में जमा चुनावी माहौल
वाराणसी के शहर दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव को लेकर चर्चा बेहद अलग और खास होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह बनारस का हृदय स्थली कहा जाता है. शहर दक्षिणी विधानसभा बनारस के पुराने माहौल में बसता है. यहां पर सकरी गलियों में जमने वाली चुनावी अड़ी कई बार जाम की वजह बन जाती है. इस बार हमने बनारस के इस विधानसभा क्षेत्र की एक पान और चाय की दुकान पर लोगों के बीच पहुंचकर चुनावी माहौल को भापने की कोशिश की. हाथों में चाय की प्याली संग चुस्कियां लेते हुए लोग अपने-अपने राजनैतिक दल को जिताने की जुगत में दिखाई दिये. हालांकि मुद्दा हर का अलग अलग था. कोई विकास के नाम पर सरकार के साथ खड़ा था तो कोई दिखावे की राजनीति की बात करते हुए बदलाव की बात करने लगा और किसी ने तो कोविड-19 के दौर में अपनी नौकरी जाने की वजह से खुद को राजनीति से दूर बताया.
रखी अपनी बात
बनारस की इस अड़ीबाजी में हमने यहां पर पहुंच कर जब लोगों से बातचीत की, तो लोग खुलकर सामने आने लगे. हाथों में चाय की प्याली पकड़कर रविकांत विश्वकर्मा ने अपनी बात रखना शुरू किया. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि हम वाराणसी तो बड़े सीधे हैं. बाबा भोलेनाथ के गले में पड़े सांप को भी दूध पिलाते हैं और उसे भगवान मानते हैं. शायद यही वजह है कि लंबे वक्त से बीजेपी के लोगों को यहां की जनता जीताती आ रही है. लेकिन अब बहुत हो चुका इस बार प्रदेश नहीं बनारस में भी बदलाव आकर रहेगा. आठों विधानसभा पर जो इनके विधायक जीतते हैं. वह इस बार हार का स्वाद चखेंगे. वही एक अन्य व्यक्ति ने अपनी बातों को रखते हुए खुद के दर्द को बयां किया. उन्होंने साफ तौर पर कहा 2 साल के इस खतरनाक दौर में मेरी नौकरी चली गई नौकरी तलाशने के लिए रोज इंटरव्यू दे रहा हूं. मुझे राजनीति से क्या लेना देना. लेकिन यह बात सच है सरकार किसी की भी हो. कोई जनता के बारे में नहीं सोचता बस सबको अपनी पड़ी रहती है.
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विकास नहीं मुद्दा होगा यह
वहीं अन्य लोग सरकार के कामों से नाराज दिखाई दिए. लोगों का साफ तौर पर कहना था कि विकास को मुद्दा बनाकर बीजेपी भले ही चुनाव लड़े. लेकिन विकास कहीं दिखाई नहीं दे रहा है. वह तो आने वाला वक्त बताएगा चुनाव में क्या होता है. हर किसी ने अपने तरीके से अपनी बात को रखा. लोगों ने बेरोजगारी और महंगाई को इन चुनावों में सबसे बड़ा मुद्दा माना है. लोगों का साफ तौर पर कहना था कि महंगाई कमर तोड़ती जा रही है. ऊपर से बेरोजगारी का आलम यह है कि लोगों के सामने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल हो गया है. सरकार विकास का ढिंढोरा पीटकर अपनी छवि सुधारना चाह रही है. लेकिन इस बार यह सब काम नहीं आने वाला है. फिलहाल बनारस की इस अड़ी पर होने वाली चर्चा से यह तो साफ हो गया कि जनता इस बार विकास नहीं बल्कि महंगाई और बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर अपना प्रतिनिधि चुनने की तैयारी कर रही है. देखने वाली बात यह होगी कि चुनाव नजदीक आने के साथ क्या वर्तमान सत्ताधारी राजनीतिक दल लोगों के इस भाव को समझ कर आखरी बॉल पर लंबा शॉट खेल पाता है.