वाराणसी: गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर काशी के ठुमरी शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र को पद्म विभूषण सम्मान दिए जाने की घोषणा की गई. इसके साथ ही इतिहास के पन्नों में एक नया अध्याय भी जुड़ने जा रहा है. छन्नूलाल मिश्र को यह सम्मान मिलने के बाद वह बेहद खुश हैं और बार-बार भारत सरकार और देश के लोगों को बधाई दे रहे हैं. पंडित छन्नूलाल मिश्र का जीवन किस तरह से संघर्षों से भरा रहा और उन्होंने एक के बाद एक कैसे उपलब्धियां हासिल कीं, यह सब पंडित छन्नूलाल मिश्र ने ईटीवी भारत से साझा किया. उन्होंने इस सम्मान को बनारस घराने के संगीत घराने का सम्मान बताया.
आजमगढ़ में जन्मे पंडित छन्नूलाल मिश्र का जन्म 3 अगस्त 1936 को हुआ. 2010 में उन्हें पद्म भूषण और 2012 में उन्हें उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार की तरफ से यश भारती सम्मान से नवाजा गया. इसके अलावा पंडित छन्नूलाल मिश्र को 2011 में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड भी मिल चुका है. वह किराना घराना और बनारस गायकी के मुख्य गायक हैं. ख्याल, ठुमरी, भजन, दादरा, कजरी और चैती के लिए छन्नूलाल मिश्र को दुनिया भर में जाना जाता है.
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लगभग 8 दशकों से जीवन के इस कठिन यात्रा में कैसे उन्हें एक के बाद एक कई सम्मान मिले, इस पर उन्होंने कहा कि बचपन बड़े ही गरीबी में बीता. पिताजी 10 रुपये का मनीआर्डर भेजा करते थे, जिसमें 10 दिनों तक परिवार के 14 लोगों का पेट भरना होता था. उस समय एक रुपये में 12 सेर चावल मिलता था. उस समय अन्न सस्ता लेकिन रुपये की कीमत ज्यादा थी. पंडित छन्नूलाल मिश्र ठुमरी के लब्ध प्रतिष्ठित गायक हैं. इन दिनों वह वाराणसी के छोटी गैबी इलाके में अपने परिवार के साथ रहते हैं. पंडित छन्नू लाल मिश्र के जीवन की बात करें तो वह जमीन पर ही बिस्तर बिछा कर सोते हैं और सिर्फ एक समय खाना (खिचड़ी) खाते हैं.
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6 साल की उम्र में पिता बद्री प्रसाद मिश्र ने छन्नूलाल मिश्र को संगीत के क्षेत्र में प्रवेश कराया. उन्होंने संगीत के लिए चार मत बताएं. शिव मत, भरत मत, नारद मत और हनुमान मत को शिव मंत्रों के साथ जोड़कर देखा. इसी उद्देश्य से उन्होंने संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ने की ठानी. 9 साल की उम्र में पहले गुरु गनी अली साहब ने उन्हें ख्याल सिखाया. स्वर और शब्द का समावेश कर उन्होंने शिव के चरणों से संगीत सीखने की शुरुआत की. देश का पहला लोक संगीत सोहर और निर्गुण के रूप में देखा. पंडित छन्नूलाल मिश्र ने न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी शास्त्रीय संगीत का मान बढ़ाया है.