वाराणसी: धनतेरस, नरक चतुर्दशी और हनुमान जयंती के बाद दीपावली फिर अन्नकूट और भैया दूज तक पांच दिनों तक चलने वाले महापर्व का शनिवार को दूसरा दिन है. दूसरे दिन यानी नरक चतुर्दशी के दिन को हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है. शनिवार को देश भर में हनुमान मंदिरों में महावीर की पूजा की जा रही है.
इस दिन की है विशेष मान्यता
आज के दिन की मान्यता है कि शाम के वक्त गोधूलि बेला में अपने घर के मुख्य द्वार पर यमदीप का दान करना चाहिए. हालांकि इस बार नरक चतुर्दशी को लेकर विद्वानों में मतभेद भी है क्योंकि चतुर्दशी तिथि शाम को प्रदोष काल में मिल रही है. इसलिए शाम को यानी 26 अक्टूबर को माना जाएगा, लेकिन 27 अक्टूबर की सुबह 12:00 बज कर 23 मिनट तक चतुर्दशी माना जा रहा है, इसलिए जो लोग 26 अक्टूबर को चतुर्दशी नहीं मान रहे हैं, वो 27 अक्टूबर यानी दीपावली के दिन दोपहर 12:23 से पहले तक चतुर्दशी तिथि का व्रत व स्नान आदि कर सकते हैं.
आज के दिन ही नरकासुर का हुआ था अंत
नरक चतुर्दशी के बारे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय ने बताया कि नरकासुर नाम के राक्षस का अंत आज ही के दिन हुआ था. पौराणिक मान्यताओं पर अगर गौर करें तो श्रीमद्भागवत पुराण में इस बात का जिक्र है कि नरकासुर नामक असुर ने अपनी शक्ति से देवी-देवताओं को परेशान कर दिया था. असुर ने संतों के साथ 16000 स्त्रियों को भी बंदी बनाकर रखा था. उसके अत्याचार को बढ़ता हुआ देखकर देवता और ऋषि मुनि हर कोई त्राहिमाम कर रहा था.
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ऋषि-मुनियों ने की नरकासुर के अंत की प्रार्थना
इस दौरान ऋषि-मुनियों ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण ली और नरकासुर का अंत करने की प्रार्थना की, जिस पर भगवान श्री कृष्ण ने आश्वासन दिया और नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का श्राप दिया था. इसलिए भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध किया. जिस दिन नरकासुर का वध हुआ उस दिन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी, जिसे नरक चतुर्दशी तिथि के नाम से जाना गया.
गोधूलि बेला के समय जलाया जाता है दीपक
पंडित विनय का कहना है कि आज के दिन नरकासुर के वध की खुशी में लोग अपने घरों के बाहर दीपदान करते हैं. दीपदान का महत्व विशेष तौर पर माना जाता है, क्योंकि यह काफी महत्वपूर्ण है कि किसी भी घर में अकाल मृत्यु न हो इसी मनोकामना को लेकर लोग आज शाम प्रदोष काल, जिसे गोधूलि बेला कहते हैं, यानी शाम 7:00 से 8:30 के बीच अपने घर के मुख्य द्वार पर चार बत्तियों का दीपक जलाकर यमराज से प्रार्थना करते हैं कि घर में सुख शांति बनी रहे और अकाल मृत्यु का भय घर के किसी भी व्यक्ति को न सताए. इससे पहले सुबह और शाम को पानी में चिचड़ा की पत्तियां डालकर स्नान करने का भी विधान है.