वाराणसी : बनारस धर्म, संस्कृति, सभ्यता के साथ संगीत का भी पुरातन शहर है. बनारस घराना पूरे विश्व में एक अलग पहचान रखता है, लेकिन इस घराने की नींव या फिर यूं कहें पुरस्कार पाने वाले कलाकारों की लंबी सूची बनारस की इन्हीं गलियों से तैयार होती है. ऐसी ही एक गलियों का मोहल्ला है, बनारस का कबीरचौरा. कबीर दास इसी मोहल्ले की गली में निवास करते थे. इसलिए इस इलाके को ही कबीरचौरा के नाम से जाना जाता है. लेकिन इसके गलियों की पहचान इसके अलावा संगीत से भी जुड़ी हैं. तो आइए हम लेकर चलते हैं आपको बनारस की उन गलियों में जहां हर घर में न सिर्फ संगीत बसता है, बल्कि यहां की मिट्टी में ही संगीत समाया है.
बसते हैं संगीत के पुरोधा
इस मोहल्ले में संगीत जगत के एक से एक पुरोधाओं ने जन्म लिया. जिन्होंने अपनी तपस्या और संगीत साधना के साथ सुर को साधते हुए बनारस का नाम पूरे विश्व में रोशन किया. कबीर चौरा को पद्म पुरस्कारों वाली गली भी कहा जाता है' क्योंकि यहां एक दो नहीं बल्कि दर्जनों की संख्या में पद्म पुरस्कार पाने वाले कलाकार रहते हैं. इस गली में ऐसे-ऐसे गुरु हुए, जिन्होंने संगीत के प्रशिक्षुओं को इस कदर तराशा कि उन्होंने बनारस को विश्व पटल पर एक अलग मुकाम पर पहुंचा दिया.
इसी गली से निकले संगीत के मूर्धन्य
हम बात करें संगीत सूर्य स्वर्गीय पंडित बड़े रामदास मिश्र की या बनारस घराने के तबला प्रवर्तक स्वर्गीय पंडित रामसहाय जी की. ये कुछ ऐसे नाम हैं, जो कबीरचौरा मोहल्ले की इन गलियों में रहकर ऐसे-ऐसे संगीत नगीनों को तलाशने में जुटे रहे, जिनका नाम लेना भी आज के समय में मां सरस्वती की साधना मानी जाती है. कबीर चौरा मोहल्ले से ही विश्व को पंडित कंठे महाराज, पंडित अनोखेलाल जी, पंडित शांता प्रसाद मिश्र, पंडित किशन महाराज, पंडित हरिशंकर मिश्रा, पंडित शारदा सहाय, गिरिजा देवी, सितारा देवी, गोपी कृष्ण, पंडित राजन साजन मिश्र, पंडित रामू मिश्र, पंडित गणेश प्रसाद मिश्र, पंडित जमुना प्रसाद मिश्र, पंडित गोवर्धन मिश्रा पंडित पूरण महाराज के अलावा न जाने कितने और संगीत के मूर्धन्य विद्वान दिए.
भारत रत्न करते थे रियाज
एक से बढ़कर एक कलाकारों ने अपनी साधना से यह सिद्ध किया कि कबीरचौरा को बनारस को संगीत का केंद्र बिंदु ऐसे ही नहीं कहा जाता. यह वही मोहल्ला है, जहां पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, भारत रत्न रविशंकर, भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान इत्यादि कलाकार बैठकर कलाकारों के साथ संगीत के स्वर की बारीकियों पर चर्चा किया करते थे. रियाज सुबह से शाम तक चला करता था, लेकिन समय बदला तो पाश्चात्य संस्कृति हर किसी पर हावी होने लगी लेकिन आज भी इस मोहल्ले में रहने वाले संगीत कलाकारों के घरों के युवा पाश्चात्य संस्कृति को ना सिर्फ अपने से दूर रखे हुए हैं. बल्कि इस मोहल्ले का नाम आगे बढ़ाने का अथक प्रयास कर रहे हैं.
युवा बढ़ा रहे हैं ख्याति
पद्म पुरस्कारों और पुरस्कारों वाली इस गली में रहने वाले युवा अपनी दिनचर्या को एक अलग तरीके से शुरू करते हैं. सुबह उठकर अपने कला की साधना में लग जाते हैं और घंटों रियाज कर अपनी परंपरा और संगीत की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश में लगे रहते हैं. कबीर चौरा एक ऐसा मोहल्ला है. जहां गायक, तबला वादक, सारंगी वादक, सितार वादक, नर्तक और संगीत विधाओं के बड़े-बड़े नामचीन कलाकार और गुरुओं ने जन्म लिया.
कई कलाकारों को मिला पद्म पुरस्कार
झनक-झनक पायल बाजे, मेरी सूरत तेरी आंखें, बसंत बहार और सुपर हिट फिल्म शोले जैसी फिल्मों में अपनी कला का लोहा मनवाने वाले संगीतकार और प्रख्यात तबला वादक पंडित कामता प्रसाद मिश्र को 1972 में पद्मश्री और 1991 में पद्म भूषण मिला. तबले को मान दिलाने वाले और अपने वादन के अलग अंदाज के लिए पूरे विश्व में अलग पहचान बना चुके पंडित किशन महाराज को 1973 में पद्मश्री और 2002 में पद्म विभूषण मिला. शास्त्रीय संगीत को एक अलग मुकाम देने वालीं गिरिजा देवी को 1989 में पद्म भूषण और 2016 में पद्म विभूषण से नवाजा गया. देश दुनिया में शास्त्रीय संगीत और शास्त्रीय गायन को एक अलग स्तर पर पहुंचाने वाले पंडित राजन साजन मिश्र भी पद्म भूषण से नवाजे जा चुके हैं. बॉलीवुड में अनेक फिल्म अभिनेत्रियों को नृत्य का प्रशिक्षण देने के लिए एक अलग स्तर पर बनारस के कबीरचौरा मोहल्ले को पहचान दिलवाने वाली पद्मश्री सितारा देवी भी इन्हीं गलियों में रही हैं. उनके भतीजे पद्मश्री गोपीकृष्ण आज भी कोरियोग्राफर और डांसर के रूप में पूरे देश में विख्यात हैं.
गली नहीं, विश्वविद्यालय है
इस गली में न सिर्फ एक से बढ़कर एक कलाकार तैयार हुए, बल्कि इन कलाकारों को तैयार करने वाले गुरु आज भी यहां रहते हैं. इसलिए इस गली को संगीत के विश्वविद्यालय से कम नहीं आंका जा सकता. हर घर से आज भी सुबह सूरज की पहली किरण के साथ संगीत और वाद्य यंत्रों की मधुर आवाज गुंजती है. जो इस गली को बनारस में सबसे जुदा करती है.