वाराणसीः भारत-जापान के रिश्ते को मजबूती देने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के टिकरी गांव में उगाया जाने वाला मशरूम अब जल्द ही जापान सहित कई अन्य देशों के लोग खाएंगे. इस बाबत भारतीय सब्जी अनुसंधान केंद्र ने पहल शुरू कर दी है. काशी हिंदू विश्वविद्यालय से सटे गांव टिकरी के खेतों में उगाया जाने वाला मशरूम जल्द ही जापान वाले भी खाएंगे. क्योंकि यह मशरूम अब जापान, इंडोनेशिया सहित कई देशों में जाएगा. पूर्वांचल को मशरूम की खेती का हब बनाने के लिए भारतीय सब्जी अनुसंधान केंद्र ने इस बाबत पहल तेज कर दिया है.
किसानों को दिया गया प्रशिक्षण
मशरूम की खेती करने के लिए पूर्वांचल के चार जिलों के 25 किसानों को प्रतिमाह प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है. इस बाबत प्रथम चरण में वाराणसी, चंदौली सहित सोनभद्र के पांच-पांच तथा गाजीपुर के दस किसानों को प्रशिक्षित किया गया है. प्रशिक्षित किसानों ने ओयस्टर व वटन प्रजाति के मशरूम की खेती शुरू कर दी है.
वाराणसी में मशरूम की उत्पादन कम, खपत ज्यादा
वर्तमान में मशरूम का उत्पादन प्रतिदिन 100 किलो के हिसाब से हो रहा है, वाराणसी में 500 किलो प्रतिदिन की खपत है. इस प्रकार वाराणसी में सालाना मशरूम की खपत 36 हजार 500 किलो की है, जबकि डिमांड 182500 किलो का है. इसे देखते हुए सालभर में मशरूम का उत्पादन 5 गुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिससे इसका निर्यात भी किया जा सके.
सब्जियों का होता है निर्यात
वाराणसी सहित पूर्वांचल के आसपास के जिलों से सब्जी व फलों के निर्यात के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के माध्यम से वेजिटेबल एंड फ्रूट एक्सपोर्ट एसोसिएशन और फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन के बीच समझौते के तहत कृषि व खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण के माध्यम से कई देशों में सब्जियों का निर्यात हो रहा है.
पूर्वी उत्तरी देशों में ओयस्टर मशरूम की मांग अधिक है और इसकी खेती पूर्वांचल के चार जिलों में शुरू कर दी गई है. हालांकि जापान, इंडोनेशिया सहित कई देशों में मशरूम के सूप की डिमांड है. ऐसे में पाउडर बनाने की प्रक्रिया जल्द शुरू करने की योजना है.
-डॉ. रामकुमार राय, निदेशक एसपीओ