वाराणसी: 'रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम' राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह भजन आज भी हर किसी के जुबान पर है. महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर हर कोई उन्हें नमन कर रहा है. पूरा देश उनके दिखाए मार्ग पर चलकर बदलाव की एक नई कवायद में जुटा है.
आज हम आपको धर्मनगरी वाराणसी के उस स्थान पर ले चलते हैं, जिसकी स्थापना स्वयं महात्मा गांधी ने की थी. आजादी की लड़ाई में युवाओं को जोड़ने और राजनीतिक आजादी से हटकर पूर्ण आजादी की दिशा में काम करने के लिए महात्मा गांधी ने चार विद्यापीठों की स्थापना की, जिनमें से एक है वाराणसी में स्थित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, यह यूनिवर्सिटी बापू के हाथों स्थापित है और उनके आदर्शों पर आज भी चलकर यहां के युवा महात्मा गांधी से प्रेरणा लेते हैं.
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यह वही पावन जगह है, जहां पर महात्मा गांधी ने बैठकर अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन का बिगुल फूंका और अंग्रेजी फंडिंग से इतर होकर देश के युवाओं को शिक्षा के साथ देश भक्ति की भावना जगाने के लिए महात्मा गांधी ने काशी विद्यापीठ की स्थापना की.
काशी विद्यापीठ कैंपस में मौजूद गांधी अध्ययन पीठ के निदेशक प्रोफेसर राम प्रकाश द्विवेदी ने बताया कि 10 फरवरी सन 1921 को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की नींव रखी गई. इसके बाद 1963 में इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मानद विश्वविद्यालय घोषित किया गया. इसे 15 जनवरी 1975 में विश्वविद्यालय का दर्जा मिल गया.
महात्मा गांधी के स्वाबलंबन और स्वराज के आवाह्न पर ब्रिटिश शासन काल में भारतीयों द्वारा स्थापित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ पहला आधुनिक विश्वविद्यालय था. इसका उद्घाटन अपने समकालीन गुजरात विद्यापीठ और जामिया इस्लामिया की भांति करते हुए इसे भी पूरी तरह से ब्रिटिश अधिकारियों के नियंत्रण और सहायता से अलग रखा गया.
महात्मा गांधी ने जिस वक्त इस विद्यापीठ की स्थापना की उस वक्त देश के बड़े शिक्षाविद इस यूनिवर्सिटी का प्रबंधन देखते थे. आचार्य नरेंद्र देव, डॉ राजेंद्र प्रसाद, जीवत राम कृपलानी, बाबू श्री प्रकाश, बाबू संपूर्णानंद आदि महान लोग इस विद्यापीठ से जुड़कर अपनी सेवाएं देते थे.
आज भी मौजूद हैं बापू की स्मृतियां
प्रोफेसर राम प्रकाश द्विवेदी ने बताया कि यह जगह बापू की यादों को आज भी संजोकर रखे हुए हैं. केंद्र सरकार ने बापू के बारे में लोगों को बताने उन पर रिसर्च करने और अन्य जानकारियों के उद्देश्य से काशी विद्यापीठ परिसर में ही गांधी अध्ययन पीठ की शुरुआत की थी.
यहां छात्रों को बापू के बारे में पढ़ाया और रिसर्च कराया जाता है. यहां पर उनके जीवन से जुड़ी तमाम जानकारियां उपलब्ध हैं. इसके अलावा इस पवित्र स्थल पर बापू के जीवन से जुड़ी तस्वीरें आज भी मौजूद हैं, जिसमें उन्होंने देश की आजादी के लिए शुरू हुए आंदोलन से लेकर अपने निजी जीवन की यादें हैं. प्रोफेसर द्विवेदी बताते हैं कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ का इतिहास काफी अद्भुत है.