वाराणसी: या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमःII नवरात्रि के पावन पर्व पर देवी दुर्गा की आराधना इन्हीं मंत्रों के साथ की जाती है और आज नवरात्र का छठा दिन है. नवरात्र की षष्ठी तिथि विशेष महत्व इसलिए भी रखती है क्योंकि आज मां दुर्गा की प्रतिमा पूजा पंडालों में स्थापित कर दी जाती है. चार दिनों तक देवी दुर्गा की आराधना पूजा पंडालों में करने के बाद दशमी पर विसर्जन किया जाता है.
..नहीं देखी होगी मां की इतनी पुरानी प्रतिमा
वाराणसी का देवनाथपूरा इलाका जो आबादी के मामले में बंगाली परिवारों की मौजूदगी की वजह से बनारस शहर में भी आपको बंगाल का एहसास दिलाएगा. इसी इलाके में मौजूद है दुर्गा बाड़ी. बंगाली में बाड़ी का अर्थ घर होता है यानी यह घर दुर्गा का है. इसका नाम 1767 में दुर्गाबाड़ी रखा गया था इसके पीछे एक बड़ी कहानी है. यहां पर रहने वाले मुखर्जी परिवार के मुखिया ने उस वक्त यहां भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, माता सरस्वती और कार्तिकेय के साथ माता के वाहन सिंह और महिषासुर मर्दिनी के रूप में माता की प्रतिमा की स्थापना की थी. चार दिन पूजन पाठ के बाद जब इसे दशहरे पर विसर्जन के लिए ले जाने की तैयारियां हुई तो माता यहां से उठना ही नहीं चाहा.
देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोsखिलस्य। प्रसीद विश्वेतरि पाहि विश्वं त्वमीश्चरी देवी चराचरस्य।
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252 सालों से विराजमान है मां दुर्गा
बताया जाता है कि लगभग 50 से ज्यादा लोगों ने प्रतिमा को उठाने की कोशिश की लेकिन 1 इंच भी प्रतिमा नहीं हिल सकी और उस प्रतिमा को फिलहाल वहीं छोड़ दिया गया. इस दौरान रात में माता की आराधना करने वाले पुजारी को स्वप्न आया, जिसमें माता ने काशी वास की इच्छा जाहिर की और तब से लेकर अब तक माता इसी रूप में यहां विराजमान है और 252 सालों से भक्तों को दर्शन देकर उनके कष्टों को हर रही हैं. जिसके बाद उस वक्त से लेकर अब तक इस प्रतिमा की पूजा आराधना साल के 365 दिन की जाती हैं.
शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे! सर्वस्यार्तिंहरे देवि! नारायणि! नमोऽस्तुते॥
सपने में बात करती है मां दुर्गा..
100 साल से ज्यादा हो जाने की वजह से मुखर्जी परिवार का यह दुर्गाबाड़ी और प्रतिमा को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में अपनी निगरानी में भी रख रखा है. परिवार के लोग बताते हैं कि उस वक्त जब पुजारी ने माता से कहा कि इतने दिन तक आपकी सेवा भाव कैसे होगी तो माता ने सपने में कहा था मुझे सिर्फ गुड और चने का भोग लगाना, बस मैं काशी में ही रहूंगी. तब से लेकर आज तक मां को गुड़ और चने का भोग लग रहा है. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि चार दिनों तक बैठाए जाने वाली प्रतिमा की तर्ज पर यह प्रतिमा भी कच्ची मिट्टी, रस्सी और पुवाल से बनी है लेकिन इतने सालों तक पूजन पाठ के बाद भी इस प्रतिमा में जरा सी भी कोई कमी नहीं दिखाई देगी. जिस रूप में मां उस वक्त विराजी थी आज भी उसी रूप में भक्तों को दर्शन देकर उनकी तकलीफों को दूर कर रही हैं.
र्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:। स्वस्थै स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।। द्रारिद्र दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या। सर्वोपकारकारणाय सदाह्यद्र्रचिता।।