वाराणसी: ई-कचरा प्रबंधन आज पूरी दुनिया के लिए एक जरूरी हिस्सा बन गया है. बढ़ती जनसंख्या और इलेक्टॉनिक उपकरणों का प्रयोग ई-कचरा को बढा रहा है. ऐसे में ई-कचरा हमारे लिए एक बड़ा नुकसान का कारण बन सकता है. ऐसे में आज इसी मुद्दे पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (IIT-BHU) में ई-कचरा प्रबंधन पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया. स्वच्छता पखवाड़ा 3.0 के अंतर्गत छात्रों और प्रोफेसर्स के बीच ई-कचरा प्रबंधन और उसके नुकसान पर चर्चा की गई. अगर ई-कचरा बढ़ता रहा तो आने वाले समय में लिथियम की मांग बढ़ जाएगी (Lithium demand for will increase due to e waste in India).
अगर ई-कचरा बढ़ता रहा तो आने वाले समय में लिथियम की मांग बढ़ जाएगी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (IIT-BHU) में बुधवार को स्वच्छता पखवाड़ा 3.0 के अंतर्गत ऐनी बेसेंट लेक्चर थियेटर में छात्रों और कर्मचारियों के लिए ई-कचरा प्रबंधन पर व्याख्यान का आयोजन किया गया. यह व्याख्यान मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर कमलेश कुमार सिंह द्वारा किया गया. इस दौरान प्रो. कमलेश ने छात्रों को ई-कचरा से होने वाले नुकसान पर चर्चा की. साथ ही यह भी बताया कि कैसे ई-कचरा देश में तेजी से बढ रहा है. इसके साथ ही उन्होंने ई-कचरे के भविष्य में होने वाले प्रयोग और बढ़ती मांग पर भी चर्चा की. साथ ही ई-कचरे पर नियंत्रण के बारे में बात की.साल 2015 में 1.7 मिलियन टन हुआ ई-कचरा: प्रो. कमलेश कुमार सिंह ने बताया, 'उपयोग में न आने वाले या खराब पड़े इलेक्ट्रिक्स और इलेक्ट्रिॉनिक्स उपकरण ई-कचरा कहलाते हैं. भारत में साल 2014 में 1.3 मिलियन टन ई-कचरा निकला था. ई-कचरा साल 2015 में बढ़कर 1.7 मिलियन टन हो गया. यह उम्मीद से बहुत ज्यादा है. उन्होंने कहा कि इस ई-कचरे का मात्र 20 प्रतिशत भाग ही अधिकृत स्थानों पर रिसाइकिल हो रहा है, जबकि 4 प्रतिशत कूड़े में और बाकी का 76 प्रतिशत अवैध तरीके से रिसाइकिल हो रहा है. इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है.ई-कचरा प्रबंधन और उसके नुकसान पर चर्चा रिसाइकिल करने वाले गंभीर बीमारी से जूझ रहे: उन्होंने कहा कि जो ई-कचरा अवैध तरीके से रिसाइकिल हो रहा है, उसमें सुरक्षा उपकरणों को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है. इससे अवैध रिसाइकिलिंग की प्रक्रिया में शामिल लोगों को कुछ ही वर्षों के अंदर टीबी, कैंसर जैसी बिमारियों से जूझना पड़ रहा है. प्रो. कमलेश कुमार सिंह ने बताया कि दुनियाभर में हुए शोधों में यह पता चला है कि ई-कचरा जैसे टीवी, कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, डीवीडी, कैलकुलेटर आदि में सिर्फ नुकसान पहुंचाने वाले तत्व प्लास्टिक, शीशा ही नहीं बल्कि कई बहुमूल्य तत्व जैसे लिथियम, सोना, चांदी, कॉपर, एल्यूमिनियम आदि भी पाए जाते हैं. 2050 तक तीन गुना बढ़ जाएगी लिथियम की मांग: प्रो. कमलेश का कहना है कि एक टन पत्थर काटने पर 1-5 ग्राम सोना निकलता है. मगर 1 टन ई-कचरा (स्मार्टफोन, कंप्यूटर, लैपटॉप) में 100 से 300 ग्राम सोना भी निकल सकता है. वर्तमान में गहनों के लिए पसंद बन रहा टैंटलम मेटल और लिथियम भी ई-कचरे से मिल रहा है. वर्तमान परिदृश्य में इलेक्ट्रॉनिक वाहनों की मांग बढ़ रही है. ऐसे में 2050 तक लिथियम की मांग तीन गुना तक बढ़ जाएगी. ऐसे में अगर शहरों और ग्रामीण स्तर पर ई-कचरा कलेक्शन सेंटर बनाए जाएं तो इससे न सिर्फ रोजगार के लिए बेहतर विकल्प बनेगा बल्कि ई-कचरा से पर्यावरण को होने वाले नुकसान से भी बचाया जा सकता है. बढ़ती जनसंख्या और इलेक्टॉनिक उपकरणों का प्रयोग ई-कचरा को बढा रहा है दोबारा प्रयोग होने वाले उपकरण का उपयोग करें: उन्होंने छात्रों, कर्मचारियों से अपील की कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का कम से कम उपयोग करें, ज्यादा से ज्यादा रिपेयर कराएं. खराब हो गए उपकरण को दोबारा ठीक कराएं. दोबारा प्रयोग में लाने वाले उपकरणों का उपयोग करें. इससे पर्यावरण बचाने में योगदान मिलेगा. ऐनी बेसेंट लेक्चर थियेटर में आयोजित हुए इस कार्यक्रम में उपकुलसचिव मेजर निशा बलोरिया शामिल थीं. इसके साथ ही कार्यक्रम में सहायक कुलसचिव प्रशासन श्री रवि कुमार, प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी व छात्र-छात्राएं उपस्थित थे. इस कार्यक्रम का संचालन उपकुलसचिव मेजर निशा बलोरिया ने किया.ये भी पढ़ें- Gang Rape : तेलंगाना की युवती से लखनऊ में गैंग रेप, पुलिस ने तीन युवकों को किया गिरफ्तार