वाराणसी: आज (11 जनवरी) पूरा देश पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि पर उनको श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. 2 अक्टूबर 1904 को पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ था और 11 जनवरी 1966 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कर दिया. लेकिन, आज भी उनकी सादगी, कर्मठता और आदर्श की राजनीति के बारे में जानने के लिए लोग उनके आदर्शों को पढ़ते हैं. वाराणसी के रामनगर में काशी नरेश के किले से 150 मीटर की दूरी पर आज भी उनका पुराना मकान स्थित है. जहां लोग उनकी सादगी और ईमानदारी की राजनीति का आईना देखने आते हैं. यहां पर शास्त्री जी के पुराने सामान के साथ उनकी यादों को सहेज कर रखा गया है.
काशी नरेश के किले से महज डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर घुमावदार गली में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का पैतृक आवास है. यहां पर बैठक रूम से लेकर रसोईघर, स्ट्रांग रूम व कच्चे मकान में लाल बहादुर शास्त्री का स्वयं का कमरा आज भी मौजूद है. जहां पर उनकी यादों और उनके सामान को सहेज कर रखा गया है. उन सामानों की सादगी को देखकर ऐसा महसूस होता है कि आज भी लाल बहादुर शास्त्री यहीं मौजूद हैं.
उनके पैतृक आवास के संरक्षक और क्षेत्रीय पुरातात्विक अधिकारी सुभाष यादव ने बताया कि सांस्कृतिक मंत्रालय की ओर से 2018 में दूसरे प्रधानमंत्री के मिट्टी के घर को म्यूजियम के रूप में तब्दील कर दिया गया. जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया था. उन्होंने बताया कि संग्रहालय में कुल 14 कमरे हैं. जिसमें उनके जीवन की महत्वपूर्ण तिथियों के साथ उनके पूरे जीवन काल की जानकारियां संरक्षित की गई हैं.
यहां उनकी स्मृतियों में 150 से ज्यादा चित्र लगाए गए हैं. इसके साथ ही उनके भाषण और उनकी कहे वाक्य को स्लोगन बनाकर लगाया गया है. उन्होंने बताया कि संग्रहालय में उनकी पत्नी ललिता शास्त्री की भी प्रतिमा और उनके संघर्षों की दास्तान को लिखा गया है.
आज भी है सुतली-पटूवा की खाट और मिट्टी का चूल्हा
डॉ. सुभाष यादव ने बताया कि आज भी लाल बहादुर शास्त्री भवन के रसोई घर में मिट्टी का चूल्हा, ओखली-मुसर, पत्थर की चक्की, चौका-बेलन, केतली, मचिया, ग्लास, लोटा, पानी भरने का पीतल का गगरा सहित तमाम सामान रखे गए हैं. इसके साथ ही इस घर में वह लालटेन भी है, जिसके रोशनी में लाल बहादुर शास्त्री पढ़ा करते थे.
उन्होंने बताया कि इस भवन में लोग शास्त्री जी के आदर्शों को याद करने के लिए आते हैं. बनारस आने वाले दक्षिण भारतीय पर्यटक यहां जरूर आते हैं. पर्यटक भवन में आते ही कच्ची मिट्टी को अपने माथे पर तिलक के रूप में लगाते हैं और शास्त्री को याद करते हैं.