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जानें क्या है देवउठनी एकादशी का महत्व, कब से शुरू हो रहे मांगलिक मुहूर्त - मांगलिक मुहूर्त

देवउठनी एकादशी पर बुधवार को लोगों ने व्रत व पूजन किया. गुरुवार से शुभ मुहूर्त शुरू हो रहे हैं. 26 नवंबर से 15 दिसंबर तक विवाह एवं अन्य मांगलिक कार्य किए जा सकेंगे.

देवउठनी एकादशी
देवउठनी एकादशी
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Published : Nov 25, 2020, 2:32 PM IST

Updated : Nov 27, 2020, 11:30 AM IST

वाराणसीः 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी के पूजन के साथ ही 26 नवम्बर से शुभ मुहूर्त की शुरुआत हो जाएगी. 26 नवंबर से 15 दिसंबर तक यह शुभ मुहूर्त चलेंगे. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार इस दौरान शुभ मुहूर्त होते हैं, जबकि विवाह आदि मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं.

क्या होती है देवउठनी एकादशी
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं. माना जाता है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु देव शयन करते हैं और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन तक सोते हैं. इस वजह से इसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में आराम करते हैं और चार माह उपरांत जगते हैं. विष्णु जी की शयन काल के चार माह में मांगलिक कार्यों का आयोजन नहीं किया जाता और देवउठनी एकादशी के बाद से ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है. इस एकादशी पर मां तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह भी किया जाता है.

देवउठनी एकादशी पर देखें विशेष रिपोर्ट

देवउठनी एकादशी व तुलसी विवाह को लेकर के मान्यताएं
बुधवार को व्रती महिलाओं ने बताया कि देवउठनी एकादशी पर ऐसा कहा जाता है इस दिन मां तुलसी व भगवान शालिग्राम की पूजा की जाती है. ऐसा कहा जाता है कि तुलसी विवाह का आयोजन करना बेहद ही शुभ फलदायक होता है और एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करने की भी परंपरा है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह कराने से मानव जीवन के सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है. जो व्यक्ति तुलसी विवाह कराते हैं उनके ऊपर हरि की विशेष कृपा होती है. इस विवाह में किए जाने वाले कन्यादान को बेहद ही शुभ माना जाता है.

यह है पौराणिक मान्यता
इस बाबत पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि ऐसा कहा जाता है कि चतुर्मास के दिनों में एक जगह व्यक्ति को रोकना जरूरी है. यही वजह है कि साधु सन्यासी इन दिनों किसी एक नगर बस्ती या फिर आश्रम में ही रहकर हरि ध्यान करते हैं. देवोत्थान एकादशी चतुर्मास का होता है. पौराणिक मान्यताएं हैं कि इस दिन देवता जाग उठते हैं. ऐसा कहा जाता है कि देवशयनी एकादशी के दिन सभी देवता और भगवान हरि सो जाते हैं. इसके बाद 4 मास उपरांत देवोत्थान एकादशी को दिन वह जगते हैं, जिसके बाद ही कोई मांगलिक कार्य की शुरुआत होती है. यही वजह है कि 4 माह तक मांगलिक कार्य बंद रहते हैं. पौराणिक मान्यताएं हैं कि देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के जगने के उपरांत सभी मंदिरों में घंटी घड़ियाल बजाकर के भगवान विष्णु की आराधना की जाती है और उनसे सर्व मंगल की कामना की जाती है.

26 नवम्बर से हो रही है शुभ मुहूर्त की शुरुआत
पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि देवउठनी एकादशी के बाद 26 नवंबर से विवाह के शुभ मुहूर्त की शुरुआत हो रही है, जो कि 15 दिसंबर तक रहेगी. उन्होंने बताया कि इस अंतराल पर सिर्फ 11 ही विवाह के मुहूर्त बने हुए हैं और आखरी विवाह का मुहूर्त 15 दिसंबर है.इसके बाद खरमास लग जाएगा उस दौरान मांगलिक कार्य पूरी तरीके से निषेध रहेंगे.

एकादशी का यह है शुभ मुहूर्त
देवउठनी एकादशी व्रत बुधवार के दिन है. हिंदू पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि दोपहर 2 बजकर 42 मिनट पर लगेगी और एकादशी तिथि का समापन 26 नवंबर गुरुवार को शाम 5 बजकर 10 मिनट पर समाप्त हो जाएगा. बुधवार को गृहस्थ देवउठनी एकादशी का पर्व मनाएंगे तो वहीं गुरुवार को संत समुदाय के लोग विधि विधान पूर्वक श्री हरि की पूजा कर एकादशी का पर्व मनाएंगे.

वाराणसीः 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी के पूजन के साथ ही 26 नवम्बर से शुभ मुहूर्त की शुरुआत हो जाएगी. 26 नवंबर से 15 दिसंबर तक यह शुभ मुहूर्त चलेंगे. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार इस दौरान शुभ मुहूर्त होते हैं, जबकि विवाह आदि मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं.

क्या होती है देवउठनी एकादशी
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं. माना जाता है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु देव शयन करते हैं और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन तक सोते हैं. इस वजह से इसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में आराम करते हैं और चार माह उपरांत जगते हैं. विष्णु जी की शयन काल के चार माह में मांगलिक कार्यों का आयोजन नहीं किया जाता और देवउठनी एकादशी के बाद से ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है. इस एकादशी पर मां तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह भी किया जाता है.

देवउठनी एकादशी पर देखें विशेष रिपोर्ट

देवउठनी एकादशी व तुलसी विवाह को लेकर के मान्यताएं
बुधवार को व्रती महिलाओं ने बताया कि देवउठनी एकादशी पर ऐसा कहा जाता है इस दिन मां तुलसी व भगवान शालिग्राम की पूजा की जाती है. ऐसा कहा जाता है कि तुलसी विवाह का आयोजन करना बेहद ही शुभ फलदायक होता है और एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करने की भी परंपरा है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह कराने से मानव जीवन के सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है. जो व्यक्ति तुलसी विवाह कराते हैं उनके ऊपर हरि की विशेष कृपा होती है. इस विवाह में किए जाने वाले कन्यादान को बेहद ही शुभ माना जाता है.

यह है पौराणिक मान्यता
इस बाबत पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि ऐसा कहा जाता है कि चतुर्मास के दिनों में एक जगह व्यक्ति को रोकना जरूरी है. यही वजह है कि साधु सन्यासी इन दिनों किसी एक नगर बस्ती या फिर आश्रम में ही रहकर हरि ध्यान करते हैं. देवोत्थान एकादशी चतुर्मास का होता है. पौराणिक मान्यताएं हैं कि इस दिन देवता जाग उठते हैं. ऐसा कहा जाता है कि देवशयनी एकादशी के दिन सभी देवता और भगवान हरि सो जाते हैं. इसके बाद 4 मास उपरांत देवोत्थान एकादशी को दिन वह जगते हैं, जिसके बाद ही कोई मांगलिक कार्य की शुरुआत होती है. यही वजह है कि 4 माह तक मांगलिक कार्य बंद रहते हैं. पौराणिक मान्यताएं हैं कि देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के जगने के उपरांत सभी मंदिरों में घंटी घड़ियाल बजाकर के भगवान विष्णु की आराधना की जाती है और उनसे सर्व मंगल की कामना की जाती है.

26 नवम्बर से हो रही है शुभ मुहूर्त की शुरुआत
पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि देवउठनी एकादशी के बाद 26 नवंबर से विवाह के शुभ मुहूर्त की शुरुआत हो रही है, जो कि 15 दिसंबर तक रहेगी. उन्होंने बताया कि इस अंतराल पर सिर्फ 11 ही विवाह के मुहूर्त बने हुए हैं और आखरी विवाह का मुहूर्त 15 दिसंबर है.इसके बाद खरमास लग जाएगा उस दौरान मांगलिक कार्य पूरी तरीके से निषेध रहेंगे.

एकादशी का यह है शुभ मुहूर्त
देवउठनी एकादशी व्रत बुधवार के दिन है. हिंदू पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि दोपहर 2 बजकर 42 मिनट पर लगेगी और एकादशी तिथि का समापन 26 नवंबर गुरुवार को शाम 5 बजकर 10 मिनट पर समाप्त हो जाएगा. बुधवार को गृहस्थ देवउठनी एकादशी का पर्व मनाएंगे तो वहीं गुरुवार को संत समुदाय के लोग विधि विधान पूर्वक श्री हरि की पूजा कर एकादशी का पर्व मनाएंगे.

Last Updated : Nov 27, 2020, 11:30 AM IST
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