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आज है देवोत्थान एकादशी, शालिग्राम के साथ तुलसी विवाह के लिए यह है शुभ मुहूर्त

देवोत्थान एकादशी हिंदूओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी पर यह पर्व मनाया जाता है. मान्यता है कि आज के दिन श्री हरि विष्णु चार माह की निद्रा के बाद जागते हैं.

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Published : Nov 8, 2019, 8:43 AM IST

वाराणसी: सनातन धर्म में हर पर्व और त्यौहार का अलग महत्व है. इन सबके बीच दो ऐसे पर्व होते हैं, जो सनातन धर्म में शुभ और मांगलिक कार्यों के कृत्यों को निर्धारित करते हैं. यह पर्व हैं देवशयनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी. इसे देव उठनी या फिर प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान श्री हरि विष्णु आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को क्षीरसागर में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं और चार माह तक विश्राम करने के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है, उस दिन निंद्रा से जागते हैं.

आज मनेगी देवोत्थान एकादशी.


देवोत्थान एकादशी के दिन होता है तुलसी और शालिग्राम का विवाह
इसके बाद शुभ कार्यों का दौर शुरू होता है. इस दिन को इसलिए भी विशेष माना जाता है. क्योंकि आज ही के दिन शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न कराया जाता है. आइए जानते हैं इस खास दिन का महत्व और कैसे करें शालिग्राम और तुलसी का पाणिग्रहण संस्कार.
शुक्रवार 8 नवंबर को प्रबोधिनी एकादशी का पर्व मनाया जा रहा है. इस खास दिन को लेकर पुराणों में एक कथा वर्णित है जिसकी वजह से आज ही के दिन शालिग्राम और तुलसी के विवाह की रस्म को निभाया जाता है.


यह है इस पर्व की पौराणिक कथा
इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि शास्त्रों में वर्णित है कि देवोत्थान एकादशी भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप और देवी वृंदा यानी तुलसी के विवाह का दिन है. इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की निंद्रा के बाद जागते हैं. आज के बाद से शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है. इसके पीछे एक कथा वर्णित है यह कथा है दैत्य जालंधर और उनकी पत्नी वृंदा से जुड़ी. शास्त्र अनुसार सती धर्म का पालन करने वाली वृंदा की वजह से जालंधर का अंत मुश्किल था. इसलिए भगवान श्री हरि विष्णु ने जालंधर का रूप धरकर वृंदा का सतीत्व भंग करने के लिए उन्हें स्पर्श किया और देवताओं से युद्ध कर रहे जालंधर की मृत्यु हुई.

इसे भी पढ़ें:- जौनपुर: एकादशी व्रत पर छाया महंगाई का साया, दो गुने दाम पर बिक रहे सामान

इससे क्षुब्ध होकर वृंदा ने श्री हरि विष्णु को पत्थर के होने का अभिशाप दिया, लेकिन जब भगवान श्री हरि विष्णु अपने असली रूप में आए तो वृंदा को बहुत पश्चाताप हुआ. तब श्री हरि ने उन्हें यह वरदान दिया कि अपने पति के साथ सती होने के बाद वह तुलसी के रूप में पूजी जाएगी. वृंदा के अभिशाप से पत्थर में बदल चुके श्री हरि विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्री हरि विष्णु के साथ संपन्न कराया जाएगा.


तुलसी पूजन के बिना अधूरी होती है श्री हरि विष्णु की पूजा
इससे सुहागिन महिलाओं का सुहाग बना रहेगा और भगवान हरि विष्णु ने तुलसी के रूप में पूजे जाने वाले वृंदा के बिना अपनी कोई भी पूजा संपन्न न होने का भी वरदान दिया. इसके बाद तुलसी के बगैर भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा पूरी नहीं मानी जाती है.


आज से शुरू होंगे मांगलिक कार्य
ज्योतिषाचार्य पवन त्रिपाठी का कहना है कि आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि तक चातुर्मास के दौरान श्री हरि विष्णु के निद्रा में होने की वजह से कोई शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होता. श्री हरि विष्णु के निद्रा से उठने के साथ ही उनका विवाह तुलसी के साथ संपन्न कराया जाता है. इसके साथ ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है.


यह है शुभ लग्न
ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि एकादशी तिथि शुक्रवार को प्राप्त हो रही है, लेकिन दोपहर में 12:30 तक भद्रा है. इसकी वजह से विवाह संपन्न नहीं हो सकता. दोपहर 12:30 के बाद विवाह का मुहूर्त दोपहर 1:04 से 8 नवंबरर की रात 12:24 तक है. इस वक्त तक एकादशी तिथि है. उत्रात्र्य नक्षत्र में निर्धारित वक्त और मुहूर्त में विवाह करना ही उत्तम है.


ऐसे करें पूजन और विवाह
आज के दिन भगवान श्री हरि विष्णु और तुलसी का विवाह कराने का विधान है. इसमें विवाह और पूजन के लिए इन बातों का ध्यान रखना चाहिए. सबसे पहले चूना या गेरू से श्री हरि और तुलसी के विवाह के मंडप के स्थान पर रंगोली बनाएं और घी का दीपक जलाएं. इसके बाद तुलसी विवाह के लिए गन्ने से मंडप को तैयार करें. इसके बाद तुलसी जी पर लाल चुनरी ओढ़ा कर उन्हें श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें.


तुलसी को गमले पर भगवान विष्णु के दूसरे स्वरूप यानी शालिग्राम को रखें और उस पर तिल चढ़ाएं. इसके बाद दूध, हल्दी अर्पित करें. भूलकर भी चावल का प्रयोग न करें. इसके बाद रक्षा सूत्र के एक छोर को तुलसी के ऊपर और दूसरे छोर को शालिग्राम के ऊपर रखते हुए गठबंधन पूर्ण करें और मिट्टी से बने पात्र में आंवला, गन्ना, केला, सिंघाड़ा, बताशे, मूली और अन्य ऋतु फल समेत अन्य पूजा सामग्री भगवान को अर्पित कर आरती संपन्न करें. घर के सभी सदस्य बारी-बारी से तुलसी और शालिग्राम की फेरी लेकर उनका आशीर्वाद लें.


इस मंत्र से करें श्री हरि विष्णु को जागृत
उत्तिष्ठ गोविंद त्यज निंद्रा त्वयि सुप्ते।
जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम्‌।।
उत्तिष्ठते चेष्ठते सर्वमुक्तीस्थोतिष्ट माधव।
गतामेघा वियच्चिव निर्मलं निर्मलादिशा:।।
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।


यदि मंत्रोच्चारण करने में परेशानी हो तो फिर उठो देवता जागो श्री हरि विष्णु कहकर भगवान पर पुष्प छोड़ते हुए उन्हें उठाएं.

इसे भी पढ़ें:- वाराणसी: निर्जला एकादशी पर निकाली गई कलश यात्रा, बाबा विश्वनाथ का किया जलाभिषेक

एकादशी पर यह न करें कभी

  • आज के दिन चावल बिल्कुल नहीं खाना चाहिए.
  • तुलसी विवाह के दिन तुलसी पत्ते को पेड़ों से नहीं तोड़ना चाहिए.
  • आज के दिन मांस-मदिरा या लहसुन प्याज का प्रयोग पूरी तरह से वर्जित है.
  • सुबह देर तक न सोएं और दोपहर में या शाम को सूर्य अस्त होने से पहले बिस्तर पर न रहें.
  • झूठ न बोलें और क्रोध से दूर रहें.

वाराणसी: सनातन धर्म में हर पर्व और त्यौहार का अलग महत्व है. इन सबके बीच दो ऐसे पर्व होते हैं, जो सनातन धर्म में शुभ और मांगलिक कार्यों के कृत्यों को निर्धारित करते हैं. यह पर्व हैं देवशयनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी. इसे देव उठनी या फिर प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान श्री हरि विष्णु आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को क्षीरसागर में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं और चार माह तक विश्राम करने के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है, उस दिन निंद्रा से जागते हैं.

आज मनेगी देवोत्थान एकादशी.


देवोत्थान एकादशी के दिन होता है तुलसी और शालिग्राम का विवाह
इसके बाद शुभ कार्यों का दौर शुरू होता है. इस दिन को इसलिए भी विशेष माना जाता है. क्योंकि आज ही के दिन शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न कराया जाता है. आइए जानते हैं इस खास दिन का महत्व और कैसे करें शालिग्राम और तुलसी का पाणिग्रहण संस्कार.
शुक्रवार 8 नवंबर को प्रबोधिनी एकादशी का पर्व मनाया जा रहा है. इस खास दिन को लेकर पुराणों में एक कथा वर्णित है जिसकी वजह से आज ही के दिन शालिग्राम और तुलसी के विवाह की रस्म को निभाया जाता है.


यह है इस पर्व की पौराणिक कथा
इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि शास्त्रों में वर्णित है कि देवोत्थान एकादशी भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप और देवी वृंदा यानी तुलसी के विवाह का दिन है. इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु चार माह की निंद्रा के बाद जागते हैं. आज के बाद से शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है. इसके पीछे एक कथा वर्णित है यह कथा है दैत्य जालंधर और उनकी पत्नी वृंदा से जुड़ी. शास्त्र अनुसार सती धर्म का पालन करने वाली वृंदा की वजह से जालंधर का अंत मुश्किल था. इसलिए भगवान श्री हरि विष्णु ने जालंधर का रूप धरकर वृंदा का सतीत्व भंग करने के लिए उन्हें स्पर्श किया और देवताओं से युद्ध कर रहे जालंधर की मृत्यु हुई.

इसे भी पढ़ें:- जौनपुर: एकादशी व्रत पर छाया महंगाई का साया, दो गुने दाम पर बिक रहे सामान

इससे क्षुब्ध होकर वृंदा ने श्री हरि विष्णु को पत्थर के होने का अभिशाप दिया, लेकिन जब भगवान श्री हरि विष्णु अपने असली रूप में आए तो वृंदा को बहुत पश्चाताप हुआ. तब श्री हरि ने उन्हें यह वरदान दिया कि अपने पति के साथ सती होने के बाद वह तुलसी के रूप में पूजी जाएगी. वृंदा के अभिशाप से पत्थर में बदल चुके श्री हरि विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्री हरि विष्णु के साथ संपन्न कराया जाएगा.


तुलसी पूजन के बिना अधूरी होती है श्री हरि विष्णु की पूजा
इससे सुहागिन महिलाओं का सुहाग बना रहेगा और भगवान हरि विष्णु ने तुलसी के रूप में पूजे जाने वाले वृंदा के बिना अपनी कोई भी पूजा संपन्न न होने का भी वरदान दिया. इसके बाद तुलसी के बगैर भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा पूरी नहीं मानी जाती है.


आज से शुरू होंगे मांगलिक कार्य
ज्योतिषाचार्य पवन त्रिपाठी का कहना है कि आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि तक चातुर्मास के दौरान श्री हरि विष्णु के निद्रा में होने की वजह से कोई शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होता. श्री हरि विष्णु के निद्रा से उठने के साथ ही उनका विवाह तुलसी के साथ संपन्न कराया जाता है. इसके साथ ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है.


यह है शुभ लग्न
ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि एकादशी तिथि शुक्रवार को प्राप्त हो रही है, लेकिन दोपहर में 12:30 तक भद्रा है. इसकी वजह से विवाह संपन्न नहीं हो सकता. दोपहर 12:30 के बाद विवाह का मुहूर्त दोपहर 1:04 से 8 नवंबरर की रात 12:24 तक है. इस वक्त तक एकादशी तिथि है. उत्रात्र्य नक्षत्र में निर्धारित वक्त और मुहूर्त में विवाह करना ही उत्तम है.


ऐसे करें पूजन और विवाह
आज के दिन भगवान श्री हरि विष्णु और तुलसी का विवाह कराने का विधान है. इसमें विवाह और पूजन के लिए इन बातों का ध्यान रखना चाहिए. सबसे पहले चूना या गेरू से श्री हरि और तुलसी के विवाह के मंडप के स्थान पर रंगोली बनाएं और घी का दीपक जलाएं. इसके बाद तुलसी विवाह के लिए गन्ने से मंडप को तैयार करें. इसके बाद तुलसी जी पर लाल चुनरी ओढ़ा कर उन्हें श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें.


तुलसी को गमले पर भगवान विष्णु के दूसरे स्वरूप यानी शालिग्राम को रखें और उस पर तिल चढ़ाएं. इसके बाद दूध, हल्दी अर्पित करें. भूलकर भी चावल का प्रयोग न करें. इसके बाद रक्षा सूत्र के एक छोर को तुलसी के ऊपर और दूसरे छोर को शालिग्राम के ऊपर रखते हुए गठबंधन पूर्ण करें और मिट्टी से बने पात्र में आंवला, गन्ना, केला, सिंघाड़ा, बताशे, मूली और अन्य ऋतु फल समेत अन्य पूजा सामग्री भगवान को अर्पित कर आरती संपन्न करें. घर के सभी सदस्य बारी-बारी से तुलसी और शालिग्राम की फेरी लेकर उनका आशीर्वाद लें.


इस मंत्र से करें श्री हरि विष्णु को जागृत
उत्तिष्ठ गोविंद त्यज निंद्रा त्वयि सुप्ते।
जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम्‌।।
उत्तिष्ठते चेष्ठते सर्वमुक्तीस्थोतिष्ट माधव।
गतामेघा वियच्चिव निर्मलं निर्मलादिशा:।।
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।


यदि मंत्रोच्चारण करने में परेशानी हो तो फिर उठो देवता जागो श्री हरि विष्णु कहकर भगवान पर पुष्प छोड़ते हुए उन्हें उठाएं.

इसे भी पढ़ें:- वाराणसी: निर्जला एकादशी पर निकाली गई कलश यात्रा, बाबा विश्वनाथ का किया जलाभिषेक

एकादशी पर यह न करें कभी

  • आज के दिन चावल बिल्कुल नहीं खाना चाहिए.
  • तुलसी विवाह के दिन तुलसी पत्ते को पेड़ों से नहीं तोड़ना चाहिए.
  • आज के दिन मांस-मदिरा या लहसुन प्याज का प्रयोग पूरी तरह से वर्जित है.
  • सुबह देर तक न सोएं और दोपहर में या शाम को सूर्य अस्त होने से पहले बिस्तर पर न रहें.
  • झूठ न बोलें और क्रोध से दूर रहें.
Intro:स्पेशल स्टोरी:

वाराणसी: सनातन धर्म में हर पर्व और त्योहार का एक अपना अलग महत्व और अलग स्थान है, लेकिन इन सबके बीच दो ऐसे पर्व होते हैं, जो सनातन धर्म में शुभ एवं मांगलिक कार्यों के कृत्यों को निर्धारित करते हैं. यह पर्व हैं देवशयनी एकादशी व देवोत्थान एकादशी जिसे देव उठनी या फिर प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान श्री हरि विष्णु आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को क्षीरसागर में विश्राम करने के लिए चले जाते हैं और चार माह तक विश्राम करने के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है, उस दिन श्री हरि विष्णु निंद्रा से जागते हैं. जिसके बाद शुरू होता है शुभ कार्यों का दौर और इस दिन को इसलिए भी विशेष माना जाता है क्योंकि आज ही के दिन संपन्न कराया जाता है शालिग्राम और तुलसी का विवाह, तो क्या है इस खास दिन का महत्व और कैसे करें शालिग्राम और तुलसी का पाणिग्रहण संस्कार जानिए.


Body:वीओ-01 शुक्रवार 8 नवंबर को प्रबोधिनी एकादशी का पर्व मनाया जा रहा है. इस खास दिन को लेकर पुराणों में एक कथा वर्णित है जिसकी वजह से आज ही के दिन शालिग्राम और तुलसी के विवाह की रस्म को निभाया जाता है.

ये है इस पर्व की पौराणिक कथा
इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी ने बताया कि शास्त्रों में वर्णित है कि देवोत्थान एकादशी भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप और देवी वृंदा यानी तुलसी के विवाह का दिन है. इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु 4 माह की निंद्रा के बाद जागते हैं और शुभ एवं मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है. इसके पीछे एक कथा वर्णित है यह कथा है दैत्य जालंधर और उनकी पत्नी वृंदा से जुड़ी. शास्त्र अनुसार सती धर्म का पालन करने वाली वृंदा की वजह से जालंधर का अंत मुश्किल था. इसलिए भगवान श्री हरि विष्णु ने जालंधर का रूप धरकर वृंदा का सतीत्व भंग करने के लिए उसे स्पर्श किया और देवताओं से युद्ध कर रहे जालंधर की मृत्यु हुई. जिससे क्षुब्ध होकर वृंदा ने श्री हरि विष्णु को पत्थर के होने का अभिशाप दिया, लेकिन जब भगवान श्री हरी विष्णु अपने असली रूप में आए तो वृंदा को बहुत पश्चाताप हुआ तब श्री हरि ने उसे यह वरदान दिया कि अपने पति के साथ सती होने के बाद वह तुलसी के रूप में पूजी जाएगी और वृंदा के अभिशाप से पत्थर में बदल चुके श्री हरि विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्री हरि विष्णु के साथ संपन्न कराया जाएगा. जिससे सुहागिन महिलाओं का सुहाग बना रहेगा और भगवान हरि विष्णु ने तुलसी के रूप में पूजे जाने वाले वृंदा के बिना अपनी कोई भी पूजा संपन्न ना होने का भी वरदान दिया. जिसके बाद तुलसी के बगैर भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा पूरी नहीं मानी जाती है.


Conclusion:वीओ-02

आज से शुरू होंगे मांगलिक कार्य
ज्योतिषाचार्य पवन त्रिपाठी का कहना है कि आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि तक चातुर्मास के दौरान श्री हरि विष्णु के निद्रा में होने की वजह से कोई शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होता, लेकिन श्री हरि विष्णु के निद्रा से उठने के साथ ही उनका विवाह तुलसी के साथ संपन्न कराया जाता और मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है.

यह शुभ लग्न
ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि एकादशी तिथि शुक्रवार को प्राप्त हो रही है लेकिन दोपहर में 12:30 तक भद्रा है. जिसकी वजह से विवाह संपन्न नहीं हो सकता, दोपहर 12:30 के बाद विवाह का मुहूर्त दोपहर 1:04 से 8 नवम्बर की रात्रि 12:24 तक है. इस वक़्त तक एकादशी तिथि है. उत्रात्र्य नक्षत्र में निर्धारित वक्त और मुहूर्त में विवाह करना ही उत्तम है.

ऐसे करें पूजन और विवाह
आज के दिन भगवान श्री हरि विष्णु और तुलसी का विवाह कराने का विधान है जिसमें विवाह व पूजन के लिए इन बातों का ध्यान रखना चाहिए. सबसे पहले चूना या गेरू से श्री हरि और तुलसी के विवाह के मंडप के स्थान पर रंगोली बनाएं और घी का दीपक जलाएं. इसके बाद तुलसी विवाह के लिए गन्ने से मंडप को तैयार करें. इसके बाद तुलसी जी पर लाल चुनरी ओढ़ा कर उन्हें श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें. इसके बाद तुलसी को गमले पर भगवान विष्णु के दूसरे स्वरूप यानी शालिग्राम को रखें और उस पर तिल चढ़ाएं. इसके बाद दूध हल्दी अर्पित करें भूलकर भी चावल का प्रयोग ना करें. इसके बाद रक्षा सूत्र के एक छोर को तुलसी के ऊपर और दूसरे छोर को शालिग्राम के ऊपर रखते हुए गठबंधन पूर्ण करें और मिट्टी से बने पात्र में आंवला, गन्ना, केला सिंघाड़ा बताशे, मूली और अन्य ऋतु फल समेत अन्य पूजा सामग्री भगवान को अर्पित कर आरती संपन्न कर घर के सभी सदस्य बारी-बारी से तुलसी और शालिग्राम की फेरी लेकर उनका आशीर्वाद लें.

इस मंत्र से करें श्री हरि विष्णु को जागृत

उत्तिष्ठा गोविंद त्यज निंद्रा त्वयि सुपते।
जगन्नाथ जगत सुप्तम भवेदीदम।।
उत्तिष्ठते चेष्ठते सर्वमुक्तीस्थोतिष्ट माधव।
गतामेघा वियच्चिव निर्मलं निर्मलादिशा:।।
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।

यदि मंत्रोच्चारण करने में परेशानी हो तो फिर उठो देवता जागो श्री हरि विष्णु कहकर भगवान पर पुष्प छोड़ते हुए उन्हें उठाएं.


एकादशी पर यह ना करें कभी
- आज के दिन चावल बिल्कुल नहीं खाना चाहिए
- तुलसी विवाह के दिन तुलसी पत्ते को पेड़ों से नहीं तोड़ना चाहिए
- आज के दिन मांस मदिरा या लहसुन प्याज का प्रयोग पूरी तरह से वर्जित है
- सुबह देर तक ना सोए और दोपहर में या शाम को सूर्य अस्त होने से पहले बिस्तर पर ना रहें
- झूठ ना बोलें और क्रोध से दूर रहें.

बाईट- पंडित पवन त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य

गोपाल मिश्र

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